उत्तराखंड दुनिया देश

धन कुबेरों के पलायन से त्रस्त है उत्तराखण्ड-भारत व चीन सहित पूरी दुनिया

अमेरिका में ही बसना चाहते है विश्व भर के धन कुबेर !

 
चार सालों में 23000 भारतीय धन कुबेरों ने भारतीय नागरिकता छोड़ कर बसे विदेशों में

 
गैरसैंण राजधानी न बनने से शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य व शासन से वंचित पर्वतीय जनपदों से हुआ विनाशकारी पलायन

देवसिंह रावत

एक तरफ भारत के सीमान्त प्रांत उत्तराखण्ड की सरकार पर्वतीय जनपदों से हो रहे परेशान है पलायन से परेशान है । भारत व चीन सहित दुनिया के अधिकांश देश अपने धन कुबेरों के देश की नागरिकता छोड़ कर अमेरिका आदि देशों में बसने से परेशान है। दुनिया में हर 30 में से एक व्यक्ति अमेरिका में बसना चाहता है। वहीं दूसरी तरफ विश्व की महाशक्ति अमेरिका इस बात से परेशान है कि पूरे विश्व से लाखों लोग बसने के लिए वैध व अवैध तरीके से उनके देश में बसने को आ रहे है।इसमें हजारों हजार लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने अपने देश से भ्रष्टाचार, कत्ल,तस्करी आदि अपराध करने के बाद विदेश में अपनी बदनामी के इस दाग को ढक कर जीने के लिए दूसरे देशों की नागरिकता ले लेते है। 

इस पृथ्वी के तमाम धन कुबैर भी अपने अपने देशों से उब चूके है। लोग इसीलिए कभी चांद व कभी मंगल व कभी समुद्र के नीचे नयी बस्तियां बसा कर रहना चाहते। इसका मूल कारण यह है कि प्राणी खासकर मनुष्य संसार के तमाम भौतिक संसाधनों से कुछ ही समय में उपभोग करने के बाद उब सा जाता है। वह सुख की लालशा में नयी नयी चीजों (रिश्ते,पद, प्रतिष्ठा व संसाधनों) में ढूढने में लगा रहता है।यह बेहतर सुख ढूंढने की अंधी दौड़ कभी पूरी नहीं होती। कितनी भी ज्यादा सम्पदा, पद व शौहरत आदि क्यों न मिल जाय इंसान इनको प्राप्त होने के बाद इससे उब जाता है। इसका अंध लालशा का समाधान भारतीय संस्कृति के प्राण आध्यात्म से ही होता है। नहीं तो जीवन भर सुख की तलाश में अंधा भटकाव बना रहता है। इसी कारण लोग दुनियाभर में भटकते रहते है। भारतीय संस्कृति में कहा गया है कि
ना सुख काजी पण्डिता, ना सुख भूप भया,
सुख सहजासी आवसी, तृष्णा रोग गया।
यानी सुख न काजी, पण्डित, विद्धान  व  न दौलत के सम्राट राजा के पास ही होता है। सुख तो तब ही सहज ही आ सकता है जब इंसान तृष्णा नामक रोग से मुक्त होता है। यह अंध पलायन तभी रूक सकता है जब यह तृष्णा नामक रोग से जीव मुक्त हो पाये।
तृष्णा नामक रोग तभी दूर होगा जब भारतीय संस्कृति के प्राणी आध्यात्म का पान इंसान विधायली शिक्षा में ग्रहण करे। परन्तु दुनिया में पतनोमुख पश्चिमी शिक्षा के कारण पलायन के दंश से पूरी दुनिया परेशान है। इसी परेशानी से यूरोप, आस्ट्रेलिया, कनाडा आदि देश भी त्रस्त है।

इससे उनके देश का एक दशक पुराना चरित्र ही बदल गया। वहीं भारत अपने देश में बाग्लादेश से हो रहे करोड़ों की संख्या में अवैध घुसपेट से देश के असम व बंगाल तो पूरी तरह बग्लादेशी घुसपेटियों के शिकंजे में जकड़ चूका है। वहीं देश के अधिकांश राज्यों में ये घुसपेटियें अपना मजबूत ठिकाने बना चूके है। परन्तु देश के हुक्मरानों को देश को सीरिया सा बनाने वाले इस प्रकरण पर कबुतर की तरह आंखें बंद किये हुए है।
लायन के कारण एक जेसे नही है। परन्तु जहां उत्तराखण्ड से पलायन का कारण वहां के बुद्धिजीवी राजधानी गैरसैंण न बना कर देहरादून में कुण्डली मार कर बैठने से हुआ। इस कारण पर्वतीय जनपदों से शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व शासन सब देहरादून में कुण्डली मारे जाने से पर्वतीय जनपदों के लोग मजबूरी में बेहरतर शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा के लिए देहरादून व दिल्ली आदि शहरों में पलायन होने के लिए मजबूर है। लोगों को विश्वास है कि अगर गैरसैंण राजधानी बन जाय और यहां के मुख्यमंत्री परमार की तरह प्रदेश के विकास के लिए समर्पित हो जाय तो उत्तराखण्ड भी हिमाचल की तरह विकसित होकर पलायन पर अंकुश लगाने वाला खुशहाल राज्य बन जायेगा। इसीलिए प्रदेश के लिए समर्पित लोग राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए निरंतर आंदोलनरत हैं।
वहीं अपना देश की नागरिकता छोड़ कर अमेरिका आदि देशों में बसने वाले धन कुबेरों के लिए पलायन संसाधनों की कमी न होकर  और बेहतर जीने की लालशा में किया जाता है।
आज इस प्रकार से पूरे विश्व पर सरसरी नजर डालें तो पूरी दुनिया पलायन के दंश से किसी न किसी प्रकार से परेशान है।पलायन के कारण ही वर्तमान समय में अमेरिका एक प्रकार से लघु विश्व बन गया है। दुनिया के अधिकांश लोगों का पहला पसंदीदा स्थान अमेरिका है। लोग अपना देश छोड़कर अमेरिका में बसे है। इसका प्रमुख कारण है कि अमेरिका में बिना भय व पक्षपात के अपने परिवार के साथ अपना व्यवसाय व जिंदगी सुखमय व्यतीत कर सकते है। यहां पर लोगों को अपने सपनों को साकार करने का संसार का सबसे अनुकुल देश लगता है। यहां का प्रशासन कहीं इस मामले में रूकावट खड़ी नहीं करती। अधिकतर अमेरिकी, प्रवासियों को आसानी से अपने समुदायों में स्वीकार कर लेते हैं।

इसका ताजा उदाहरण है पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा। जिनके पिताजी केन्या से रोजगार की तलाश में अमेरिका में आये। परन्तु अमेरिका की खुली व्यवस्था में ऐसा माहौल रहा कि दूसरे देश के मूल का होने के बाबजूद अमेरिका की जनता ने ओबामा की प्रतिभा का सम्मान करके उनको अपने देश का सर्वोच्च पद पर आसीन किया । हां रंग भेद के शताब्दियों के विवाद व रेड इंडियनों के खात्मा के बदनुमा दाग के बाबजूद  प्रतिभाओं का सम्मान करने वाला देश संसार में अन्यत्र कहीं दूसरा देखने में नहीं मिलता।
खबर है कि विश्व में हो रहे पलायन पर हुए एक अध्ययन  के अनुसार दुनिया की करीब 13 प्रतिशत आबादी यानी 64 करोड़ लोग अपने देश को छोड़कर दूसरे देशों में बसना चाहते हैं। इनमें सर्वाधिक 15 करोड़ लोगों की पहली पसंद अमेरिका है। संसार के अधिकांश देशों के धन कुवेरों की पहली पसंद अमेरिका में बसने की लालशा है। अमेरिका में बसने की संख्या की दृष्टि में सबसे अधिक लोग चीन के है। दूसरे नम्बर पर भारत, ब्राजील, नाइजीरिया व बाग्लादेश के है। अमेरिका के बाद लोग ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस व सउदी अरब में बसने को प्राथमिकता देते है।

भारत के सीमान्त प्रांत उत्तराखण्ड की सरकार परेशान है कि राज्य गठन के 17 सालों में कुल 16,793 गांवों में से 3 हजार गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उत्तराखंड के पहाड़ों से बढ़ते पलायन को चिंताजनक करार दिया है। उत्तराखंड के गठन के 17 सालों में ही प्रदेश के कुल 16,793 गांवों में से 3 हजार गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं। 2.5लाख से ज्यादा घरों में ताले लटके हुए हैं। 2013 में प्रदेश में आयी विनाशकारी प्राकृतिक आपदा के बाद यहां पलायन की गति में तेजी आयी। अल्मोड़ा जिले में 36,401, पौड़ी 35,654, टिहरी में 33,689 व पिथौरागढ़ में 22,936 घरों में ताले लटके हुए हैं। ये घर धीरे धीरे खंडहरों में तब्दील हो रहे हैं।
उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों में हो रही इस दुर्दशा के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार और उनकी नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। आयोग ने सरकारों पर यहां पर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं मनुष्य की मूलभूत सेवाओं को उपलब्ध न कराने के लिए फटकार लगायी। सरकार को फटकार लगाते हुए आयोग ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर, नर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ और विशेषज्ञ चिकित्सकों की जबर्दस्त कमी है। इससे आम लोगों को बुनियादी सुविधाएं और उचित इलाज तक नहीं मिल रहा है। उन्होंने इस दिशा में आवश्यक सुधार करने के निर्देश दिए। इसके अलावा उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की दिशा में भी कोई प्रगति न होने पर भी निराशा व्यक्त की। देहरादून में संपन्न राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के 2 दिवसीय समारोह के समापन अवसर पर आयोग के सदस्य और न्यायाधीश पी. सी. घोष, डी. मुरुगेशन और ज्योति कालरा ने अफसरों के साथ बैठक भी की। आयोग के सदस्यों ने कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं न होने के कारण लोग यहां से पलायन करने के लिए मजबूर हुए। प्रदेश की वर्तमान सरकार ने इस पलायन के मूल राजधानी गैरसैंण बनाने के बजाय एक पलायन आयोग बना कर जख्मों को और कुदेरने का कृत्य किया जा रहा है।
वहीं 2014 से 2018 में भारत से करीब 23000 धन कुबेरों द्वारा भारत की नागरिकता छोड़ कर दूसरे देशों में बससे से भारत सरकार बेहद परेशान है।  करोड़पतियों का इस तरह से देश छोड़ने की मूल वजह  जानने के लिए सरकार ने केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के 5 सदस्यीय टीम बनायी है। ग्लोबल फाइनैशल सर्विस कंपनी ‘ माॅर्गन स्टैनली’ के एक अध्ययन के अनुसार 2014 से 2018 तक इन चार सालों में 23000 करोड़पति भारत छोड़ चूके है। भारत सरकार इन आंकडों से हैरान है । आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार सरकार की चिंतित होने केे पीछे मुख्य कारण यह है कि विकास के लिए भले ही विदेशी निवेश के साथ साथ घरेलू निवेश का होना भी बेहद जरूरी है। देशी कम्पनियां अपना व्यापार बढायेगी तो देश में रोजगार के अवसर भी बढेंगे।  परन्तु जब धनकुवैर ही देश छोड़ कर विदेश में बस जायेगा तो वह देश में नहीं अपितु जहां रहता है उस देश यानी विदेश में ही अपना अधिकांश निवेश करेगा। जिससे देश में रोजगार के अवसर भी कम होंगे। यह कमेटी यह जानने की कोशिश करेगी कि धन कुवैर देश को छोड़कर विदेश में क्यों बस रहे है? क्या इसका कारण कराधान है या नोटबंदी, कानून व्यवस्था है या आर्थिक सुधार या सरकार की आर्थिक नीतियां?
इन्हीं आकडों की सच्चाई पर मुहर लगाने वाली रिपोर्ट न्यू बल्र्ड वैल्थ के अनुसार 2017 में 7000 , 2016 में 6000, 2015 में 4000 भारतीय धन कुवैरों ने देश की नागरिकता छोड़ कर दूसरे देशों की नागरिकता ली। वहीं 2017 में चीन के 10000 धन कुवैरों ने दूसरे देश की नागरिकता ली।
भारत व चीन आदि देशों की नागरिकता छोड़ कर विदेश में बसने वालों की पहली पसंद अमेरिका, कनाड़ा व आस्टेªलिया है। वहीं भारतीय धन कुवैर देश की नागरिकता छोड़ कर विदेश में बसने वाले उपरोक्त देशों के अलावा संयुक्त राज्य अमिरात व न्यूजीलैंड भी है। भारत की करीब 36 फीसदी आबादी शहरों में रहती है. बाकी 64 फीसदी लोग गांवों या कस्बों में रहते हैं। इसके बावजूद ज्यादातर गांवों में आज भी पेयजल उपलब्ध न होने से अभिशापित है।
वेहतर शिक्षा व रोजगार की खोज के लिए पलायन के लिए जहां सरकारें जिम्मेदार होती है। सरकारें हिमाचल की तर्ज पर विकास पर ऐसे पलायन पर अंकुश लगा सकते है। परन्तु जो पलायन भारत व चीन सहित विश्व के अधिकांश देशों से धन कुवेरों का हो रहा है उसके पीछे इंसान की भौतिक संसार में और बेहतर जीवन के लिए अंध भटकाव ही है। जिसे भारतीय आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा प्रदान कर दूर किया जा सकता है।

About the author

pyarauttarakhand5