उत्तराखंड

राज्य गठन के बाद हुई विधानसभा व बाहय नियुक्तियों की निष्पक्ष जांच हो तो बडे चेहरे बेनकाब हो जायेगे

जब बाड़ ही फसल चरने लगे तो किस पर विश्वास करे,

 

अंधा बांटे रेवड़ी अपने अपने दे, जैसे ही रहा नियुक्तियों का गड़बडझाला

 

उत्तराखण्ड विधानसभा अध्यक्ष अग्रवाल के बेटे की नियुक्ति प्रकरण से उजागर हुआ हुक्मरानों को मुखौटा बेनकाब

देहरादून(प्याउ)। इंटरनेटी दुनिया में भाजपा, सरकार व विधानसभा अध्यक्ष की भारी किरकिरी होने के बाद आखिरकार विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के बेटे ने जल संस्थान में संविदा पर मिली सहायक अभियंता की नौकरी छोड़ कर विवाद से पीछा छूडाना चाहा। परन्तु एक सप्ताह तक हुए इस विवाद ने न केवल विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल को जनता की नजरों में कटघरे में खडा किया  अपितु प्रदेश की त्रिवेन्द्र सरकार सहित उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद अब तक की सभी सरकारों को पूरी तरह बेनकाब ही कर दिया। यहां पर प्रश्न यह नहीं है कि विधानसभा के अध्यक्ष के बेटे को उसकी योग्यता के अनुसार नियुक्ति क्यों मिली। सवाल यह है कि जब प्रदेश के लाखों बेरोजगार रोजगार के लिए वर्षों से इंतजार कर रहे है, उनको रोजगार देने की जगह पुलिस प्रशासन लाठियांें की मार देती है। परन्तु प्रदेश के हुक्मरान पिछले दरवाजे से संवैधानिक पदों पर आसीन जनप्रतिनिधियों के परिजनों व चेहतों को उपनल आदि के नाम से सरकारी नोकरियों में नियुक्ति दी जाती है। इसके लिए सार्वजनिक नियुक्ति के लिए आवेदन आमंत्रित नहीं की जाती। ऐसा भी नहीं कि यह मामला केवल वर्तमान त्रिवेन्द्र सरकार के कार्यकाल में हुआ हो। गत विधानसभा अ ध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के कार्यकाल में भी यह मामला बडे जोरों से उठा था। परन्तु तब किसी भी जनप्रतिनिधी के नियुक्त हुए परिजनों या चेहतों ने अपनी नियुक्ति से इस्तीफा नहीं दिया था। ऐसा नहीं कि यह मामला केवल गोविन्द सिंह कुंजवाल के जमाने व वर्तमान अध्यक्ष अग्रवाल के जमाने में ही हुआ हो। यह मामला प्रथम निर्वाचित तिवारी सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष यशपाल आर्य के कार्यकाल में भी सुनायी दिया। पहले सरकारें ऐसे कार्य करती रही। परन्तु जबसे लोगों के पास सूचना का अधिकार व जागरूकता आयी तब ये गडबड झाले आम जनता के सामने आ रहे है।
यह मामला में हायतौबा मचने से जहां विधानसभा अध्यक्ष भौचंक्के हैं वही वे बहुत ही मासुमियत से प्रश्न उठाने वालों से नाराज विधानसभा अध्यक्ष श्री अग्रवाल ने कहा कि बहुत हुआ, उनका बेटा विस अध्यक्ष..पढ़ा लिखा है, योग्य है। उसने अपने स्तर से प्रयास किया था और अपना सेटेलमेंट किया था। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि वे उत्तराखंड में पैदा हुए और 38-40 साल के राजनीतिक कैरियर में बहुत सारे आंदोलन किये और जनता की आवाज उठायी। उनके आज तक के कैरियर में कोई भी लांछन नहीं लगा। राजनीति काजल की कोठरी होने के बाद भी उन्होंने राजनीति में सुचिता को प्राथमिकता दी।  अपने वेटे के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल नहीं किया और यदि वह ऐसा करते तो उसे बड़ी नौकरी दिलाते। बेटे का चयन पूरी तरह से उसके अपने प्रयासों से हुआ।
विधानसभा अध्यक्ष श्री अग्रवाल सवाल करते है कि उपनल के माध्यम से 24000 लोगों को आउटसोर्स किया गया है। इसमें 20 हजार से ज्यादा ऐसे लोग हैं जो न तो पूर्व सैनिक हैं और न ही उनके आश्रित। आउटसोर्स किये गये ये लोग विभिन्न विभागों में अनेक पदों पर तैनात हैं। बडी संख्या में नियुक्ती पाये लोग गैर पूर्वसैनिक हैं तो सिर्फ उनके बेटे के प्रकरण को ही तूल क्यों दिया गया।
वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष का यह आरोप सही है। बेटे द्वारा विवाद के बाद इस्तीफा देने से भले ही वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष श्री अग्रवाल को लगातार सवालों के प्रहार से तत्काल राहत मिल गयी हो पर इस प्रकरण ने राज्य गठन के बाद अब तक विधानसभा व बाहय स्रोतों से हुई नियुक्तियों में अब तक की सरकारों को पूरी तरह से कटघरे में खडा कर गयी। पूरे प्रकरण की जांच कराने की हिम्मत न तो वर्तमान भाजपा सरकार में है व नहीं आने वाली कांग्रेस सरकार में ही होगी। क्योंकि जो भी अब तक 17 सालों से प्रदेश की सत्ता में आसीन रहे उनके नाक के नीचे विधानसभा व बाहय स्रोतों द्वारा की गयी नियुक्तियों की कहानी खुद इनके चेहरों को पूरी तरह से बेनकाब करती है। इसी आशंका से तमाम दल इस प्रकरण पर पर्दा ही डालने का काम करेंगे?हकीकत यह है कि प्रदेश गठन के बाद आम जनता को जहां रोजगार के नाम पर सरकारों ने ठेंगा दिखाया है वहीं अपने अपने परिजनों व चेहतों को नियुक्ति देने के लिए विधानसभा व बाहय स्रोतों के द्वारा नियुक्तियां दी गयी, इनकी अगर सही ढंग से जांच हो तो सभी सरकारें व इनके बडे चेहरे पूरी तरह बेनकाब हो जायेंगे।

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