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सपा, बसपा व कांग्रेस के महागठबंधन के चक्रव्यूह को मुलायमी दाव से ध्वस्थ करेगी भाजपा

सपा प्रमुख अखिलेश ने किया महागठबंधन के लिए बडे त्याग करने का ऐलान  

11 मार्च के गोरखपुर व फूलपुर लोकसभाई सीटों के उपचुनाव में भाजपा को हराने के लिए बसपा ने दिया सपा को समर्थन

देवसिंह रावत
11 मार्च को होने वाले गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा सीटों के लिए हो रहे उपचुनाव में मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में अब तक अपने सबसे बडे प्रबल विरोधी समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को समर्थन देने की खबर 4 मार्च को  खबरिया चैनलों में सुन कर भले ही लोेग हैरान हो गये। परन्तु उप्र की राजनीति की समझ रखने वाले इस सियासी मजबूरी के समझोता की आशंका पहले से ही प्रकट कर रहे थे। भले ही मायावती ने इसे मात्र दो सीटों पर मतों का हस्तांतरण है गठबंधन नहीं। परन्तु इस दिशा में दो कदम आगे बढ़ कर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने साफ शब्दों में कहा कि देश की रक्षा के लिए वह किसी प्रकार का त्याग करने के लिए तैयार हॅू। सपा प्रमुख का यह बयान 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी के खिलाफ एकजूट विपक्ष की भविष्य की तस्वीर साफ हो रही है। ऐसा भी माना जा रहा है राज्यसभा चुनाव में सपा व बसपा के बीच आपसी समर्थन के तार भी जुड़े हुए हैं।

ले ही लोेग हैरान हो गये। परन्तु उप्र की राजनीति की समझ रखने वाले इस सियासी मजबूरी के समझोता की आशंका पहले से ही प्रकट कर रहे थे।

जिस प्रकार से मोदी की सरपरस्ती वाली भाजपा ने लोकसभा व उप्र विधानसभा चुनाव में उप्र से सपा व बसपा का एक तरह से सफाया किया था, राजनीति के मर्मज्ञ उसी समय से सपा व बसपा में ठीक ऐसे ही गठजोड़ होने की जरूरत बता रहे थे जैसे काशीराम व मुलायम के नेतृत्व वाली बसपा व सपा के बीच पहले हुई थी। परन्तु अतिथिगृह काण्ड के बाद सपा व बसपा के बीच रिश्ते इस कदर बिगड गये थे कि दोनों एक दूसरे का नाम लेना भी पसंद करते थे। इन रूखे रिश्तों की वर्फ को भले ही पिघलाने का काम भले ही मोदी के नेतृत्व में देश व उत्तर प्रदेश की सत्ता में अभूतपूर्व ढंग से काबिज भाजपा ने किया। वहीं इन रिश्तों के बीच जमी बर्फ को पिघालने का काम  मुलायम के बेटे व सपा के प्रमुख अखिलेश यादव ने बसपा प्रमुख मायावती को बुआ बोल कर अपने सदव्यवहार से किया। भले ही अखिलेश यादव ने भाजपा के खिलाफ विपक्ष के महागठबंधन में कांग्रेस को साथ लाने में सफलता प्राप्त की परन्तु वह चाह कर भी बसपा को साथ नहीं ला पाये।
अब मायावती को उप्र विधानसभा चुनाव व देश के अन्य राज्यों में मिल रही भाजपा को मिल रही भारी सफलता के बाद समझ में आ गया कि अगर भाजपा के खिलाफ विपक्ष ने संयुक्त रूप से मुकाबला नहीं किया तो भाजपा को हराया नहीं जा सकेगा। अकेले चुनाव लडने से भाजपा को ही लाभ होगा और विपक्षी दल अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल होगा।
मायावती के इस आशंका को बल तब मिला जब 3 मार्च को भाजपा को पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, नागालैण्ड व मेघालय की विधानसभा चुनाव में मिली अभूतपूर्व सफलता से जहां 2019 को देश की सत्ता पर अपना कब्जा बनाये रखने के लिए रणनीति बना रही मोदी की सरपरस्ती वाली भाजपा का आत्मविश्वास सातों आसमान पर है।
इसके बाद स्थिति को भांपते हुए बसपा ने अपना अहं छोड़ कर बसपा ने उप्र की लोकसभा की दो सीटों के लिए 11 मार्च को हो रहे उप चुनाव के लिए अपना प्रत्याशी न उतार कर अपने प्रबल विरोधी समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। बसपा ही नहीं देश  के तमाम विपक्षी दलों की नजर इन उप चुनाव के परिणामों पर है। अगर इस प्रयोग में बसपा को अनुकुल सफलता मिलती है और फूलपुर व गौरखपुर दोनों लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को परास्त करने में विपक्ष सफल रहता है तो ऐसा प्रयोग 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी के रथ को रोकने में राहुल-माया-अखिलेश सहित संयुक्त विपक्ष के महा गठबंधन बनाया जायेगा।
बसपा द्वारा अपने प्रबल विरोधी सपा के प्रत्याशी को लोकसभा की दो सीट के लिए 11 मार्च को हो रहे उप चुनाव में समर्थन देने की खबरों से भले ही भाजपा के रणनीतिकारों के माथे में परेशानी नजर न आ रही हो, परन्तु मुकाबला काफी कांटे का होगा। अगर बसपा का अनुशरण करके कांग्रेस ने भी भाजपा को हराने के लिए सपा के प्रत्याशी को समर्थन देने का ऐलान कर देगी तो भाजपा के लिए सचमुच में काफी परेशानी वाला चुनाव होगा।
परन्तु भाजपा के वर्तमान नेतृत्व की चुनावी रणनीति के जानकारों के अनुसार महागठबंधन से भी भाजपा को कोई खतरा नहीं है। क्योंकि भाजपा के पक्ष में विधानसभा चुनाव व लोकसभा चुनाव के परिणाम है। जहां लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव हो दोनों में भाजपा को मिले मतों का प्रतिशत सपा व बसपा को मिले मतों के प्रतिशत से कम नहीं है। लोकसभा चुनाव  में फूलपुर में भाजपा को कुल मतदान का 52 प्रतिशत मत, तो सपा को 20 प्रतिशत व बसपा को 17 प्रतिशत मिले। वहीं उप्र विधानसभा चुनाव में अवष्य मतों का प्रतिशत बराबरी का दिखाई दे रहा है। विधानसभा चुनाव 2017 में जहां भाजपा को 41 प्रतिशत, तो सपा को 21 व बसपा को 22 प्रतिशत मतदाताओं का साथ मिला।
इन आंकडों के बाबजूद भाजपा के मठाधीशों को सपा बसपा के साथ संभावित गठजोड या आगामी 2019 में होने वाले  लोकसभा चुनाव में  होने वाले महागठबंधन से तनिक सा भी भयभीत नहीं है।
समीक्षकों के अनुसार भाजपा के पास मुलायम का तुरप है। जिसके दम पर भाजपा ने उप्र में भी महागठबंधन को नहीं बनने दिया था। भले ही महागठबंधन को पलीता लगाने का मुलायमी दाव बिहार विधानसभा चुनाव में भले सफल न हुआ हो परन्तु उप्र में अखिलेश चाह कर भी बसपा को कांग्रेस की तरह गठबंधन में सम्मलित नहीं कर सके।
भाजपा के मुलायमी दाव से उप्र में अखिलेश व राहुल के गठबंधन पर भी ग्रहण लगा था। आने वाले समय में भी भाजपा अगर अखिलेश यादव व मायावती के साथ राहुल भी महागठबंधन करके भाजपा की राह रोकने का प्रयास करेंगे तो भाजपा उप्र में मुलायमी दाव से इनके प्रभाव को असफल कर देंगे। वहीं बिहार में भाजपा ने लालू के साथ नीतीश कुमार के गठबंधन को बिखरा कर अपनी राह आसान कर दी है। वहीं दिल्ली में केजरीवाल को मौन साधने के लिए विवश किया हुआ है। वेसे ही उप्र में मुलायमी दाव से इस संभावित महागठबंधन को भाजपा विफल देगी।
सुत्रों के अनुसार मुलायम यादव को भयाक्रांत करके भाजपा ने उसे अपनी राह आसान करने के काम में लगा रखा है। मुलायम के साथी अमर सिंह भी लम्बे समय से मोदी व शाह के गीत गाने में लगे है। तोते के डर से सियासी जगत का पहलवान कैसे मुलायम हो रखा है यह देख कर राजनीति के मर्मज्ञ भी लोटपोट है।

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