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मोदी चाहे तो जेटली की तरह धूमल की भी हो सकती है हिमाचल में ताजपोशी!

परन्तु एक गुट रच रहा है केंद्रीय नेता को थोप कर हिमाचल के रक्षा कवच  भू कानून’ में सेंघ लगाने का षडयंत्र

 
 हिमाचल के रक्षा कवच  भू कानून’ में सेंघ लगते ही उत्तराखण्ड की तरह बर्बाद हो जायेगा हिमाचल भी

 

देवसिंह रावत,

इस बार हिमाचल विधानसभा के  चुनाव से पहले ही मुझे आशंका थी कि भाजपा यहां ऐसे केन्द्रीय नेता को मुख्यमंत्री बना कर थोपेगा। जो हिमाचल के सुरक्षा कवच भू कानून को कमजोर कर यहां की भू संपदा पर बंदरबांट करने के लिए दशकों से गिद्द दृष्टि लगाये हुए है। इस बार खतरा अधिक है। हिमाचल में भाजपा के मुख्यमंत्री के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल के हारने से यहां सत्ता पर दशकों से काबिज होने वाले दिल्ली मठाधीशों के प्यादों की बाहें खिल गयी। उनकी राह और आसान हो गयी है क्योंकि हिमाचल के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती भी हार चूके है।

मोदी द्वारा अपनी राह आसान बनाने के लिए स्वयं खिंची गयी 75 साल की लक्ष्मण रेखा होने के कारण हिमाचल के भाजपा के दिग्गज नेता पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार भी मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता। अब या तो धूमल को मुख्यमंत्री बनाने का काम शायद ही भाजपा नेतृत्व करेगा। हालांकि भाजपा नेतृत्व चाहता तो जिस प्रकार से जेटली को हारने के बाद रक्षा व वित्त मंत्री बनाया उसी प्रकार प्रेम कुमार धूमल को हिमाचल का मुख्यमंत्री इस तर्क को हवा देकर बना सकता है कि धूमल के नेतृत्व में विश्वास कर हिमाचल की जनता ने भाजपा को 44 सीटों का समर्थन देकर कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया है। कांग्रेस केवल 21 सीटों पर सिमट गयी है। धूमल हारने के बाबजूद मुख्यमंत्री बन सकते है। उनको मुख्यमंत्री बनने के छह महिने के अंदर किसी अन्य सीट से अपने समर्थक से इस्तीफा दिला कर चुनाव लड़ाया जा सकता है।
हालांकि हिमाचल में मोदी की आंधी के बाबजूद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खु जीतने में सफल रहे। वहीं भाजपा को भारी जीत मिली पर भाजपा के मुख्यमंत्री के दावेदार प्रेम कुमार धूमल व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती को मोदी की आंधी के बाब जूद हार का सामना करना पड़ा।
हिमाचल में एक बार भाजपा व एक बार कांग्रेस सत्तासीन होती है। कांग्रेस की हार तय थी पर बड़ भागी रहे हिमाचली जिन्हे हिमाचल को देश का श्रेष्ट राज्य बनाने वाले महान नेता यशवंत सिंह परमार के बाद वीरभद्र सिंह जैसे हिमाचल की दिशा व दशा बदलने वाले नेता का शासन मिला। भले ही प्रदेश में चल रहे सत्ता संघर्ष में वीरभद्र की राजनीति जीवन के अंतिम पारी में भ्रष्टाचार के छींटों से दागदार हुए परन्तु जनता का विश्वास रहा प्रदेश के हक हकूकों व विकास के लिए सदा समर्पित रहे वीरभद्र पर रहा। जनता ने तमाम षडयंत्रों के बाबजूद उनको जीता कर विजयी बनाया। मोदी की आंधी व योगी सहित भाजपा के तमाम कद्दावर नेताओं के प्रहार के बाबजूद वीरभद्र की जीत हिमाचल राज्य को देश का सर्वश्रेष्ट राज्य बनाने में अतुलनीय योगदान के प्रति जनविश्वास का प्रतीक है।
भाजपा की जीत में खोये  हिमाचल के लोगों को शायद ही इस बात का अहसास होगा कि हिमाचल के विकास की बंदरबांट करने के लिए दशकों से ललचा हुए भैडिये कब से हिमाचल के रक्षा कवच भू कानून में सेंध लगाने का ताना बाना बुने हुए है। ये तत्व भाजपा व कांग्रेस दोनों दलों में मजबूती से काबिज है। दोनों दलों में ये सत्ता में काबिज होने के लिए दश्कों से षडयंत्र रच रहे हैं।  इसलिए जनता को सावधान रहने की जरूरत है। नहीं तो हिमाचल का भी उत्तराखण्ड की तरह बटमारों का अभ्याहरण बन कर बर्बाद हो जायेगा।

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