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अंग्रेजी की गुलामी हटाने व भारतीय भाषाओं को आत्मसात करने से ही जिंदा हो सकती है शिक्षा व्यवस्था

नयी शिक्षा नीति सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति का अंतिम प्रारूप तैयार करने के लिये समिति का गठन किया

नई दिल्ली(प्याउ)। आखिरकार मोदी सरकार ने देश की शिक्षा नीति  का अंतिम प्रारूप तैयार करने के लिए निर्णायक कदम उठाते हुए प्रसिद्ध वैज्ञानिक पद्म विभूषण डॉ के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है।समिति के गठन करने के भारत सरकार के कदम का स्वागत करते हुए भारतीय भाषा आंदोलन ने जोर दिया कि नयी शिक्षा नीति में देश में शिक्षा, रोजगार व चिकित्सा सहित पूरे तंत्र में भारतीय भाषायें लागू करने तथा देश की न्यायपालिका से तत्काल अंग्रेजी के एकक्षत्र राज्य को हटा कर भारतीय भाषाओं को लागू करना बेहद जरूरी है। भारतीय भाषाओं में न्याय, रोजगार व शिक्षा हर हाल में देना होगा। इसके बिना कोई भी शिक्षा नीति भारत के लिए हितकर होने की जगह वर्तमान शिक्षा नीति की तरह आत्मघाती होगी। बिना जनता की भाषा में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन प्रदान किये न तो देश में लोकशाही स्थापित की जा सकती है व नहीं देश की एकता, अखण्डता सुरक्षित रखते हुए विकास ही किया जा सकता है। गौरतलब है कि भारतीय भाषा आंदोलन विगत 51 महिने से संसद की चैखट में देश से अंग्रेजी की गुलामी हटाने व भारतीय भाषायें लागू करने के लिए आंदोलन कर रहा है।
हिंदी सहित भारतीय भाषाओं में समिति के अन्य सदस्यों में डॉ. वसुधा कामत शिक्षा तकनीक के क्षेत्र की एक सुप्रसिदध विद्वान है जिन्होंने स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक योगदान दिया है। वे एसएनडीटी विश्वविद्यालय मुंबई की कुलपति भी थीं।  इस समिति के दूसरे सदस्य है  के.जे. अलफोन्से को स्कूली शिक्षा के सुधार में आने वाली व्यवहारिक चुनौतियों से निपटने का प्रशासनिक अनुभव है। केरल के कोट्टायम और अरनाकुलम जिलों में 100ः साक्षरता हासिल करने में उनकी अहम भूमिका थी।   समिति के तीसरे सदस्य डॉ. मंजुल भार्गवा,  अमेरिका के पिन्सटन विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर रहे हैं। गौस नंबर सिद्धान्त के क्षेत्र में उनके योगदान के लिये उन्हें बहुत ही कम आयु में गणित का फील्ड मेडल प्रदान किया गया था।
समिति के 5 वें सदस्य डॉ. राम शंकर कुरील, मध्य प्रदेश के महू स्थित बाबा साहेब अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति हैं और वंचित वर्ग को शिक्षा एवं विकास की मुख्य धारा में लाने के विषय पर उनके अनेक शोध पत्र राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हो चुके हैं।
छटे सदस्य डॉ. टी.वी. काट्टीमानी अमरकंटक स्थित आदिवासी विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। वे भाषा शिक्षा और जनसंचार क्षेत्र से हैं।
समिति के 7वें सदस्य कृष्ण मोहन त्रिपाठी को सर्व शिक्षा अभियान को लागू करने का व्यापक अनुभव है और वह उत्तर प्रदेश हाई स्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके हैं।  समिति के 8वें सदस्य डॉ. मजहर आसिफ गौहाटी विश्वविद्यालय में फारसी भाषा के प्रोफेसर हैं। उनके शोध निर्देशन में फारसी-असमी-अंग्रेजी भाषा का पहला शब्दकोष संकलित किया गया था।
समिति के 9वें सदस्य डॉ. एम. के. श्रीधर कर्णाटक नवाचार परिषद और कर्णाटक ज्ञान आयोग के पूर्व सदस्य सचिव हैं। एक दिव्यांग विद्वान, डॉ. एम. के. श्रीधर, सीएबीई के सदस्य भी हैं।
समिति तत्काल प्रभाव से काम करना शुरू कर देगी। एक व्यापक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत, जो कि पिछले 30 महीनों से चल रही थी, मानव संसाधन विकास मंत्रालय को देश भर से शिक्षा शास्त्रियों, शिक्षकों, विशेषज्ञों, छात्रों एवं अन्य हितधारकों से हजारों सुझाव प्राप्त हुये थे। इसके लिये तहसील, जिला एवं राज्य स्तर पर चर्चा की गयी थी। राज्य सरकारों ने क्षेत्रीय स्तर पर आयोजित कार्यक्रमों में अपने व्यापक सुझाव दिये थे। राज्य सभा में भी इस विषय पर चर्चा की गयी और शिक्षा पर एक विशेष परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसमें 48 सांसदों ने भाग लिया। कई सांसदों ने अपने विचार लिखित रूप से दिये। सरकार के माय गव प्लेटफॉर्म पर 26,000 लोगों ने इंटरनेट के जरिये अपनी राय रखी। टीएसआर सुब्रमण्यिन सिति ने भी विस्तार से अपनी सिफारिशें दी। समिति इन सभी सुझावों और सिफारिशों पर विचार करेगी।

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