उत्तराखंड देश

जनहित के कार्यो से देश में विख्यात हुए उप्र के मुख्यमंत्री योगी, पर उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री अपनी उपस्थिति भी दर्ज नहीं करा पाये

उत्तराखण्ड में जनांकांक्षाओं की उपेक्षा, नौकरशाह व नेताओं पर नकेल न कस पाने से अपनी उपस्थिति तक दर्ज नहीं करा पाये हैं उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रावत

देहरादून(प्याउ)। एक तरफ उप्र के मुख्यमंत्री योगी ने उप्र को उत्तम प्रदेश बनाने के लिए दषकों से लंबित पड़ी जनांकांक्षाओं को साकार करने के लिए ठोस कदम उठाने के साथ नौकरशाहों पर ही नहीं जनप्रतिनिधियों की नकेल कस कर उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उप्र में ही नहीं देश विदेश में जनता के दिलों में छा गये हैं। वहीं इसका ठीक उल्टा, उत्तराखण्ड में देखने को मिल रहा है। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत अभी तक अपने होने का अहसास अपने कामों से प्रदेश की जनता को कराने में पुरी तरह असफल रही है।
योगी से एक दिन पहले सत्तासीन हुए उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत की जमीनी स्थिति कितनी कमजोर है यह इस सप्ताह  मुख्यमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव डा. मेहरबान सिंह बिष्ट और ललित मोहन रयाल की तैनाती को प्रषासनिक सेवा के अधिकारियों के बडे दवाब में रद्द करते हुए दोनों को पुनः उनके पूर्व के विभागों में भेज देने से ही उजागर हो गयी। कार्मिक विभाग के मुताबिक ललित मोहन रयाल को निदेशक, दुग्ध विकास एवं महिला डेयरी की जिम्मेदारी पुनः सौंप दी है जबकि डा.मेहरबान सिंह बिष्ट को वापस हरिद्वार के मुख्य विकास अधिकारी के पद पर तैनाती की गई है। शुरू में सरकार ने मुख्यमंत्री के स्टाफ में तीन अपर सचिवों की तैनाती की थी जिसमें प्रदीप रावत, डा.मेहरबान सिंह बिष्ट और ललित मोहन रयाल शामिल थे। इनमें प्रदीप रावत पहले से ही अपर सचिव पद पर तैनात थे लेकिन मेहरबान सिंह बिष्ट और ललित मोहन रयाल को फील्ड पोस्टिंग से सचिवालय भेजा गया था। वर्ष 2005 बैच के इन दोनों अधिकारियों का स्केल शासन के उपसचिव स्तर का था, लेकिन इनको अपर सचिव पद पर तैनाती दी गई।
योगी ने न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति के बडे दिग्गज मुलायम सिंह यादव को बिजली का 4 लाख की बिल भी पकडा दिया है। पूरे शासन तंत्र में फेरबदल कर दिया है। सबकी लाल नीली बत्तियां उतरा दी है। दशकों से पडे अनैक ज्वलंत मुद्दों को हल करने की दिशा में ऐसे ठोस कदम उठाये की इसकी गूंज पूरे देश में सुनायी दे रही हे। अवैध बुचड़खाना बंदी हो या मुस्लिम महिलाओं के तीन तलाक या रामजन्म भूमि विवाद को हल करने की दिशा में अपने एक माह के कार्यकाल में योगी सरकार ने पूरे देश में नजीर रखी दी है। अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए दिन रात काम कर रहे योगी आदित्यनाथ की सरकार ने उप्र की जनता का ही नहीं देश की जनता का दिल जीत लिया है।
वहीं उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री जनांकांक्षाओं को साकार करने का प्रतीक व सर्व सम्मत राजधानी गैरसैंण की घोशणा करने का साहस भी भ्रष्ट व पंचतारा संस्कृति के गुलाम नेता, नौकरशाहों भू माफियाओं के दवाब में आ कर करने का साहस तक नहीं जुटा पा रहे है। प्रशासन के आगे असहाय मुख्यमंत्री सही ईमानदार व तेजतरार उत्तराखण्ड के हितों के लिए समर्पित नौकरशाही को आगे लाना तो रहा दूर अभी हरीश रावत सरकार के मुहलगे बडे अधिकारियों को हटाने का काम भी नहीं कर सके। शराब, भूमाफिया व खनन माफियाओं के व्यथित उत्तराखण्ड की रक्षा के लिए कठोर कदम उठाना तो रहा दूर उत्तराखण्ड की सरकार ने जिस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय में शराब व खनन को बचाव करने की पैरवी करायी जनता को गहरी निराशा छायी हुई है। प्रदेश में भ्रष्टाचार से मुक्त करने की हकीकत प्रदेश की जनता बखुबी से जानती है कि कांग्रेस के जिन नेताओं को खुद भाजपा निषाने में रखते थे, उनको भाजपा सरकार में महत्वपूर्ण दायित्व मिलने से जनता की बदलाव की आश पर एक प्रकार से बज्रपात ही हो रहा है।
इसलिए उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र जो भले ही ईमानदार व साफ छवि के सहृदय नेता है, उनको याद रखना चाहिए कि प्रदेश की जनता ने राज्य का गठन कर गैरसैंण राजधानी बनाने का जो संकल्प लिया था वह प्रदेश के चहुमुखी विकास के लिए किया था। न की इन भ्रष्ट व पंचतारा संस्कृति में लिप्त नेता व नौकरशाहों की स्वार्थपूर्ति व अयाशी के लिए। इसलिए त्रिवेन्द्र रावत को चाहिए कि इन तमाम दवाबों को दरकिनारे कर तुरंत गैरसैंण राजधानी घोषित कर प्रदेश के वर्तमान व भविष्य की रक्षा करे। अन्यथा उनको हरीश रावत की तरह पछताने का भी समय नहीं मिलेगा।

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