उत्तराखंड

क्या आप जानते है देवभूमि उत्तराखण्ड के 5 प्रयागों के बारे में ये बाते ?

प्यारा  उत्तराखंड की विशेष रिपोर्ट –

दोस्तों हमारे देवभूमि के बारे में लोगो तक हम इस मुहीम के जरिये उत्तराखण्ड में पर्यटन और उत्तराखंड के बारे में जिन बातो को लोग अक्सर जान नही पाते है उनके महत्व को बताने के लिए उत्तराखंड को जानो की मुहीम के जरिये अपनी देवभूमि के पलायन और सूंदर धरती को बनाये रखने के लिए लोगो को जागरूक करते रहते है। इसी को आगे बढ़ाते हुए आज हम आपको उत्तराखंड के पाँच प्रयागों के बारे में कुछ बाते बता रहे है।  जिसको जानकार आपको अच्छा लगेगा। 

देवप्रयाग : ऋषिकेश से 70 किलोमीटर की दूर जाकर पहला प्रयाग आता है जिसका नाम देवप्रयाग है। रामायण और केदारखंड में कहा जाता है कि रावण का वध करने के बाद ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान राम, लक्ष्मण और सीता यहां तपस्या करने आये थे। जब धोबी के कहने पर जब प्रभु श्री राम जी ने माता सीता का त्याग किया था उस समय लक्ष्मण ने माता सीता को यही पर छोड़ा था भागीरथी की तपस्या से गंगा जब धरती पर आने के लिए तैयार हुई उस समय पहले यहीं पर गंगा प्रकट हुई थी । जब धरती पर गंगा माँ का आगमन होने जा रहा था। तब माँ गंगा के दर्शन देखने के लिए देवप्रयाग में 33 करोड़ देवी देवता भी मौजूद थे ।
इसमें बहने वाली हर नदी पावन गंगा के रूप मानी गयी है।हिन्दू धर्म में कहा गया है कि जहां पर नदियों का संगम होता है उस स्थान को प्रयाग के नाम से जाना जाता है।उत्तराखंड में पाँच प्रयागों अपने आप में बहुत ही खूब सूरत और प्रसिद जगह मानी गई है, लोग दूर दूर से इन पाँचो प्रयागों के दर्शन करने आते है। इसी स्थान पर भागीरथी अलकनंदा का संगम होता है।इन दोनों नदियों की धाराएं मिलकर गंगा कहलाती हैं।

कर्णप्रयाग : में अलकनंदा तथा पिण्डर नदी के संगम होता है दरसल यहां पर उमा मंदिर और कर्ण देव का मंदिर है। माँ भगवती और उमा देवी का प्राचीन मन्दिर है। संगम के पश्चिम में शिलाखंड है जहा दानवीर कर्ण ने तपस्या की थी जिसके बाद कर्ण को भगवान सूर्य देव ने अभेद्य सुरक्षा कवच के रूप में कुंडलों दिए थे। कर्ण की तपस्थली होने के करण इस स्थान का नाम कर्णप्रयाग पड़ा।

नन्दप्रयाग : यहाँ पर नन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम होता है। हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार नन्दप्रयाग में नंद महाराज ने भगवान नारायण की प्रसन्नता और उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए तप किया था। यहां पर नंदादेवी का भी बड़ा सुंदर मन्दिर है। नन्दा का मंदिर, नंद की तपस्थली एवं नंदाकिनी का संगम आदि योगों से इस स्थान का नाम नंदप्रयाग पड़ा।

रुद्रप्रयाग : मन्दाकिनी और अलकनंदा के नदियों के संगम रुद्रप्रयाग में होता है, संगम स्थल के समीप चामुंडा देवी व रुद्रनाथ मंदिर दर्शनीय है, मान्यताओ के अनुसार नारद मुनि ने इस पर संगीत के गूढ रहस्यों को जानने के लिये “रुद्रनाथ महादेव” की अराधना की थी। पुराणों के अनुसार इस जगह  पर भगवान ब्रह्मा जी की  आज्ञा से देवर्षि नारद ने हज़ारों वर्षों तक तपस्या की जिसके बाद भगवान शिव शंकर के दर्शन से  भगवान रुद्र ने देवर्षि नारद को `महती’ नाम की वीणा दी थी संगम से कुछ ऊपर भगवान शंकर का रुद्रेश्वर’ का मंदिर है। इसी लिए इसका नाम रुद्रप्रयाग पड़ा।

विष्णुप्रयाग : अब आपको हम विष्णुप्रयाग के बारे में कुछ रोचक जानकरी देते है जिसमे यहां धौली गंगा तथा अलकनंदा नदी के संगम पर विष्णुप्रयाग स्थित है। विष्णुप्रयाग में  भगवान विष्णु का प्राचीन मंदिर है और विष्णु प्रयाग जोशीमठ-बद्रीनाथ मार्ग पर मिलता है जोशीमठ  होते हुए  12 किमी और आगे  चल कर 3 किमी की दूरी पर विष्णुप्रयाग संगम स्थान है। इस स्थान पर अलकनंदा तथा विष्णुगंगा (धौली गंगा) का संगम स्थल है।

 

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