उत्तराखंड देश

कौन बनेगा उत्तराखण्ड कांग्रेस का अध्यक्ष महेन्द्र पाल, हीरासिंह बिष्ट, प्रकाश जोशी, गोदियाल या मैखुरी ?

उत्तराखण्ड कांग्रेस की कमान नये हाथों में सौंपेगी कांग्रेस!

नई दिल्ली (प्याउ)। कौन बनेगा उत्तराखण्ड का नया प्रदेश अध्यक्ष ? यह सवाल न केवल उत्तराखण्ड के आम जागरूक जनमानस या कांग्रेसी जनों के मन में ही नहीं अपितु दिल्ली दरवार के मठाधीशों के मन में भी रह रह कर उठ रहा है। विश्वसनीय कांग्रेसी सुत्रों के अनुसार कांग्रेस नेतृत्व ने उप्र व उत्तराखण्ड में मिली शर्मनाक हार से स्तब्ध कांग्रेस नेतृत्व ने गहरे मंथन के बाद इन दोनों प्रदेशों में कांग्रेस को नये सिरे से मजबूत बनाने के लिए प्रदेश संगठन की कमान नये हाथों में सौंपने का मन बना लिया है।  कांग्रेस नेतृत्व अब प्रदेश कांग्रेस की कमान हारे नेताओं के छाया से भी दूर रखना चाहता है। कांग्रेसी नेतृत्व चुनाव से पहले सरकार को सार्वजनिक रूप से सवालों से कटघरे में रखने वाले वर्तमान अध्यक्ष किशोर उपाध्याय से नाखुश है। वहीं दूसरी तरफ प्रदेश के सबसे दिग्गज व अनुभवी  नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को दोनो जगह से मिली हार से स्तब्ध है। कांग्रेस नेतृत्व अब दूसरी पंक्ति को भी मजबूत करने की दृष्टि से नये नेता के हाथों प्रदेश की कमान सोंपना चाहता है। नये अध्यक्ष के लिए सामने आ रहे नये नामों में महेन्द्र पाल, हीरा सिंह बिष्ट, प्रकाश जोशी, गोदियाल व मैखुरी आदि के नामों पर विचार हो रहा है।  पर लोगों को आशंका है कि नेता प्रतिपक्ष की तरह प्रदेश अध्यक्ष के पद पर कांग्रेस के जातिवादी व दिशाहीन मठाधीश कहीं साफ छवि के ऊजावान नेता के बजाय अपने प्यादे को कमान सौंप दे तो कांग्रेस का फिर क्या होगा?
उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनाव में जहां सत्तासी दल भाजपा तीन चैथाई बहुमत से बहुत मजबूत है। वहीं करारी हार के कारण सदमें से उबर तक नहीं पायी है। कांग्रेस में इतना पतन हो गया है कि इतनी शर्मनाक हार के बाबजूद प्रदेश अध्यक्ष तक अपने पद से नैतिक आधार पर इस्तीफा देने का साहस तक नहीं जुटा पा रहा है। यही नहीं कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व को इतना भान तक नहीं है कि प्रदेश में मिली हार से कार्यकत्र्ताओं में नया जोश भर कर प्रदेश कांग्रेस को नया संघर्षशील, व्यावाहरिक साफछवि का ऊर्जावान नेतृत्व दे। इस कारण प्रदेश में आम कांग्रेसी कार्यकर्ता ही नहीं अपितु प्रदेश स्तर के नेता भी गहरी निराशा में घिरे है।
इससे उबारने के लिए कांग्रेस नेतृत्व को प्रदेश में हारे व टूटे हुए नेतृत्व की जगह नया प्रदेश अध्यक्ष चुनना होगा। प्रदेश में भले ही नेताओं की भरमार हो। वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस में सबसे बडा नेता हरीश रावत है। वहीं दूसरी तरफ उनके बाद प्रदेश कांग्रेस के दिग्गजों में हीरासिंह बिष्ट, महेन्द्र पाल, प्रीतम सिंह, है। दूसरी पंक्ति के नेताओं में अनुशुया प्रसाद मैखुरी, गौदियाल, मयूर महर, करण महरा, है। नये नेतृत्व के रूप में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय सचिव प्रकाश जोशी व प्रदेश के पूर्व युवक कांग्रेस के अध्यक्ष राजपाल खरोला व आनंद रावत है।
कांग्रेस को इस हार के सदमें से कौन उबारेगा इसका निर्णय कांग्रेस आला कमान को करना है। परन्तु आला कमान के चारों तरफ घिरे लोगों ने जिस प्रकार से नेता प्रतिपक्ष के पद पर इंदिरा हृदेश को पदासीन किया। उससे जनता को नया संदेश देने में कांग्रेस असफल रही। जनता यह देख कर हैरान रही कि इतने हार के बाबजूद कांग्रेस उन्हीं पुराने चेहरों से घिरी है। कांग्रेस साफ छवि के वरिष्ठ नेता प्रीतम सिंह को नेता प्रतिपक्ष नहीं बना सकी।
आदर्श लोकतंत्र में सत्तासीन दल के साथ विपक्ष में आसीन दल का मजबूत होना नितांत आवश्यक है। मजबूत विपक्ष के कारण सरकारें दिशाहीन व अहंकारी हो जाती है। वहीं मजबूत सरकार के बिना देश कुशासन के गर्त में फंस जाता है। राज्य गठन के बाद से ही दिल्ली के मठाधीशों की घोर जातिवादी व जनविरोधी मनोवृति के कारण प्रदेश में नक्कारे नेतृत्व को ही थोपा गया। इस थोपशाही की  पदलोलुपता व दिशाहीनता की राजनीति के कारण उत्तराखण्ड की पूरी व्यवस्था निहित स्वार्थी तत्वों के शिकंजे में जकड़ गयी है।
प्रदेश के साथ साथ अगर देश में कांग्रेस को उबरना है तो उसे देश के टुकड़े करने वालों, पत्थरमारों, जातिवादी आस्तीन के सांपों व अंध तुष्टिकरण से बचना होगा। निहित स्वार्थी व भारतीय संस्कृति के विरोधी मठाधीशों व दलालों से मुक्ति पानी होगी।
कांग्रेस पहले देशभक्तों का दल रहा। पर जबसे कांग्रेस में देशहितों के बजाय अंध तुष्टिकरण व पदलोलुपता बढ़ी कांग्रेस का पतन हो गया है।

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