उत्तराखण्ड सरकार ने लगाई केन्द्र से राष्ट्रीय राजमार्ग-74 घोटाले की सीबीआई से जांच कराने की गुहार
देहरादून (प्याउ) स्पेशल रिपोर्ट – मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने उत्तराखण्ड में ऊधम सिंह नगर में राष्ट्रीय राजमार्ग -74 में हुए करोड़ों रूपये के घोटाले की जांच केन्द्रीय जांच व्यूरों से कराने व इस प्रकरण में सम्मलित समझे जाने वाले अधिकारियों को निलंबित करने से प्रदेश की नौकरशाही के साथ सियासी गलियारों में हडकंप मच गया है।
भाजपा के सत्तासीन होने के समय ही चर्चा में आये राष्ट्रीय राजमार्ग -74 घोटाले पर कड़ा रूख अपनाते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्रसिंह रावत ने देहरादून में 25 मार्च को आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में इस घोटाले पर बड़ा कदम उठाते हुए कहा, उधम सिंह नगर जिले में 2011-2016 के बीच प्रस्तावित राष्ट्रीय राजमार्ग-74 के लिए खेती लायक जमीन के अधिग्रहण में 240 करोड़ रुपये मूल्य का घोटाला सामने आया। इस घोटाले में सरकारी अधिकारियों ने इस भ्रष्टाचार के सूत्रधार के साथ जिनकी जमीन इस मार्ग में आ रही थी उन किसानों को प्रलोभन दे करकृषि भूमि को गैर कृषि भूमि दिखा कर 20 गुना अधिक मुआवजा डकारा। सरकारी अधिकारियों की इस मिली भगत को देखकर मुख्यमंत्री ने जहां छह अधिकारियों को घोटाले में उनकी कथित भूमिका के लिए निलंबित किया गया है, जबकि सातवें अधिकारी जो रिटायर हो चुका है, उसके खिलाफ भी कार्यवाही करने का मन बना लिया है। मुख्यमंत्री ने विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी दिनेश प्रताप सिंह और अनिल कुमार शुक्ला के अलावा उप जिलाधिकारी सुरेंद्र सिंह जंगपंगी, जगदीश लाल, भगत सिंह फोनिया और एनएस नांग्याल को निलंबित कर दिया है। इसके साथ सवोनिवृत हो चूके तत्कालीन उप जिलाधिकारी हिमालय सिंह मारतोलिया के खिलाफ भी कार्यवाही करने की तैयारी है।
इन पर आरोप है कि धूर्तता यह की गयी कि खेती की जमीन को गैरकृषि भूमि दिखाकर मुआवजे की रकम पर 20 गुना ज्यादा सरकारी खजाने को खुले आम लूटा गया। इस लूट का मकसद सरकारी खजाने को लूट कर बंदरबांट करना था। इसके लिए अपने प्यादों और जमीन धारकों को भी और अधिक मुआवजे का प्रलोभन दिया गया। इसकी आड़ में खेती की जमीन को गैरकृषि भूमि दिखाकर मुआवजे की रकम पर 20 गुना ज्यादा मुआवजा वसूल कर इस घोटाले के आका ने अपनी तिजोरी भरी।
इस प्रकरण में ज्यादातर जमीन उधमसिंह नगर जिले के जसपुर, काशीपुर, बाजपुर और सितारगंज में स्थित है। अभी केवल 18 मामलों की जांच की गई है। इस घोटाले के आगे बढ़ने के आसार है। मुख्यमंत्री ने साफ शब्दों में कहा कि जो भी दोषी पाया जाएगा, फिर चाहे वह राजनीतिक रूप से कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा। यह साफ है कि बिना संरक्षण के नौकरशाह इस प्रकार के बडे घोटाले को इस बेशर्मी से अंजाम नहीं दे सकते है।
इस प्रकरण के उजागर होने के बाद लोगों को समझ में आने लगा कि प्रदेश की अब तक की तमाम सरकारें ऊधमसिंह नगर में विकास के नाम पर किस प्रकार विकास करने को क्यों लालायित रहती। यहां अगर निष्पक्ष जांच की जाय तो तिवारी सरकार से हरीश रावत सरकार के तमाम मुख्यमंत्री व नौकरशाही पूरी तरह से बेनकाब हो जायेगी। यहां पर जिस प्रकार से सरकारों ने पंत नगर विश्व विद्यालय की जमीने सहित ऊधम सिंह नगर की जमीनों की बंदरबांट की उसमें कोन कोन नेता व नौकरशाह सम्मलित रहे यह भले ही न्यायिक प्रक्रिया के तहत दण्ड दिलाने के लिए जांच की जरूरत पड़ सकती है पर ऊधमसिंह नगर का हर जागरूक पत्रकार, समाजसेवी, नौकरशाह व नेता जानता है कि किसने कितनी लूटबाजारी की। कैसे शराब, भू माफियाओं व नौकरशाहों के साथ मिल कर प्रदेश के हुक्मरानों ने यहां विकास के नाम पर जी भर की लूटबाजारी की ?
सीबीआई की जांच से भले ही आम लोगों को विश्वास बढ़ गया कि सरकार जरूर कडे कदम उठायेगी। परन्तु जिस प्रकार से अब तक की भाजपा व कांग्रेस सरकारों द्वारा विरोधी दलों के कार्यकाल में हुए सेकड़ों घोटालों की जांचों में आज तक किसी एक घोटाले के असली गुनाहगारों को सजा नहीं मिल पाने से लोगों को यह आशंका है कि कहीं इस जांच का भी हस्र पूर्व के घोटालों की तरह न हो जाय।