सुश्री लक्ष्मी पुरी, संयुक्त राष्ट्र की पूर्व असिस्टेंट सेक्रेटरी–जनरल और
यूएन वीमेन की डिप्टी एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर तथा भारत की पूर्व राजदूत
21मई 2025,दिल्ली से पसूकाभास
पहलगाम में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवादी कृत्य का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारत की ओर से ऑपरेशन सिंदूर अभी भी जारी है। ऑपरेशन सिंदूर आतंकवाद विरोधी और सैन्य सिद्धांत एवं उसके मानक में एक बड़े बदलाव का संकेत देता है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने जोशीले भाषण में डंके की चोट पर यह घोषणा कर दी कि सीमा पार आतंकवाद के किसी भी कृत्य के खिलाफ निर्णायक सैन्य कार्रवाई का एक न्यू-नॉर्मल कायम हो गया है। प्रधानमंत्री के भाषण को पूरे भारत और दुनिया भर के लोगों ने सुना।
कोई भी देश जो आतंकवादी ढांचे को पनाह देता है, उसे वित्तपोषित करता है और उसका पोषण करता है, उसे अपने सैन्य बलों के साथ जोड़ता है और निर्दोष नागरिकों के खिलाफ क्रूर हमलों के लिए भारत को निशाना बनाता है, उसे तत्काल, दंडात्मक और सटीक कार्रवाई को झेलना पड़ेगा। सोची-समझी सैन्य कार्रवाई से न केवल पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में बल्कि अंतरराष्ट्रीय सीमा पार पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मध्य में स्थित आतंकवादी नेटवर्क को ध्वस्त किया जा सकेगा, भले ही राज्य प्रायोजित आतंकवादी केंद्र आधिकारिक सुरक्षा संरचनाओं के साथ कितने भी जुड़े हुए हों।
सिंदूर का सिद्धांत, भारत की संप्रभुता और सभ्यतागत मूल्य को बनाए रखने में निहित है। इसका उद्देश्य इसकी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करना, आंतरिक एकता, सद्भाव और शांति सुनिश्चित करना और भारत को 2047 तक विकसित बनने के लिए त्वरित आर्थिक विकास के मार्ग पर अग्रसर रखना है। यह सीमा पार आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता के रुख की पुष्टि करता है और भारत को अपने सुरक्षा संबंधी हितों की रक्षा के लिए निर्णायक रूप से कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध करता है। इसे फिर से परिभाषित करने के साथ ही विस्तृत किया गया है।
प्रधानमंत्री श्री मोदी का कथन बिल्कुल स्पष्ट है: भारत के खिलाफ आतंकी कार्रवाई एक युद्ध की कार्रवाई है – अब कोई ग्रे एरिया नहीं, किसी अन्य तरीके से युद्ध को बर्दाश्त नहीं करना है, आतंक से होने वाले नुकसान के लिए कोई समर्पण संभव नहीं। ऑपरेशन के बाद राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को प्रधानमंत्री का संबोधन सफलता की पुष्टि से कहीं अधिक था। बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर प्रधानमंत्री के संबोधन ने एक दृढ़, गरिमापूर्ण और भारत के सभ्यतागत मूल्यों पर आधारित नई रणनीतिक संरचना को साकार किया।
इसने एक सरल लेकिन दृढ़ संदेश दिया कि भारत शांति में विश्वास करता है, लेकिन शांति के पीछे शक्ति का होना आवश्यक है। अपने मूल में, प्रधानमंत्री श्री मोदी का सिंदूर सिद्धांत तीन अलग-अलग और नॉन-नेगोशिएबल सिद्धांतों पर जोर देता है। सबसे पहले, भारत उन लोगों के साथ कोई बातचीत नहीं करेगा, जो आतंक को बढ़ावा देते हैं; जब बातचीत फिर से शुरू होगी, तो यह द्विपक्षीय होगी और केवल आतंकवाद और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के मुद्दे पर ही होगी। दूसरा, भारत आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों के साथ आर्थिक संबंधों को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करता है, व्यापार और राष्ट्रीय सम्मान के बीच एक रेड लाइन खींचता है। अंत में, भारत अब न्यूक्लियर ब्लैकमेल को बर्दाश्त नहीं करेगा। ऑपरेशन सिंदूर ने निर्णायक रूप से किसी भी भ्रम को तोड़ दिया कि न्यूक्लियर खतरे आतंकवादी कृत्यों के लिए ढाल नहीं हो सकते।
‘सिंदूर’ नाम का चयन गहन सांस्कृतिक प्रतीकवाद को अभिव्यक्ति प्रदान करता है। सिंदूर- विवाहित हिंदू महिलाओं द्वारा लगाया जाने वाला लाल सिंदूर- पीड़ित होने के रूप में नहीं, बल्कि पवित्र कर्तव्य और राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया। आतंकवादियों ने इस सम्मान को कलंकित करने की कोशिश की और भारत ने ताकत से जवाब दिया। जो कुछ व्यक्तिगत था वह राजनीतिक हो गया, जो कुछ सांस्कृतिक था वह रणनीतिक हो गया। इतना ही नहीं, आतंकवादी हमला कश्मीर में हुआ, जो भारत माता का भौगोलिक और प्रतीकात्मक माथा है, इसलिए ऑपरेशन सिंदूर उसकी रक्षा और उसे सलाम करने के लिए है। भारत की कार्रवाई एक सैद्धांतिक परंपरा का अनुसरण करती है।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र से लेकर 1980 के दशक के इंदिरा के सिद्धांत तक, 1998 में पोखरण-II परीक्षणों के माध्यम से वाजपेयी जी के साहसिक परमाणु दावे तक – जिसने वैश्विक दबावों और प्रतिबंधों के बावजूद भारत के आत्मरक्षा के संप्रभु अधिकार की पुष्टि की और विश्वसनीय न्यूनतम निवारण की नीति स्थापित की। उससे भी आगे बढ़कर उरी और बालाकोट में प्रदर्शित मोदी सिद्धांत तक, भारतीय शासन कला ने लंबे समय से संकट के समय और राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण मामलों में संप्रभु निर्णय लेने की आवश्यकता पर बल दिया है।
सिंदूर सिद्धांत इसे आगे बढ़ाता है, एक आत्मविश्वासी भारत द्वारा समर्थित जो अपने मूल हितों और अपने नागरिकों की सुरक्षा और संरक्षा में स्वतंत्र और मजबूती से कार्य करने के लिए दृढ़ संकल्पित है। भू-राजनीतिक रूप से, इस ऑपरेशन ने क्षेत्रीय अपेक्षाओं को फिर से स्थापित किया है। आतंकवाद के लिए ढाल के रूप में न्यूक्लियर ब्लैकमेल करने के आदी पाकिस्तान का सीधे सामना किया गया है। भारत की ओर से दंडित करने के बाद पाकिस्तान का भ्रम टूट गया है।
हालांकि चीन औपचारिक रूप से तटस्थ है लेकिन उसे अपने सहयोगी की कमजोरी से निपटना होगा। वहीं संयुक्त राज्य अमेरिका से लेकर रूस तक वैश्विक शक्तियां भारत को बाहरी संकेत या समर्थन की प्रतीक्षा किए बिना कार्य करते हुए देख रही हैं। अन्य पड़ोसियों को अब अपनी दुर्भावना और भारत विरोधी कार्रवाइयों के परिणामों का आकलन करना चाहिए।
पिछले 11 वर्षों में भारत ने कई भौगोलिक क्षेत्रों और प्रमुख शक्तियों के साथ द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी का एक सघन और गहरा नेटवर्क सफलतापूर्वक बनाया है। इसने बहुपक्षीय और लघुपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतरक्षेत्रीय सहयोग को लेकर व्यवस्थाओं में भाग लिया है और एफटीए पर बातचीत कर रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, प्रमुख शक्तियों और इन साझेदारियों के साथ भारत के कई रणनीतिक और रक्षा संबंध अग्नि-परीक्षा से गुजरे।
पहलगाम के बाद, यह संतोषजनक था कि हमारे सहयोगी देशों द्वारा आतंकवादी हमलों की व्यापक तौर पर निंदा की गई। हालांकि, ऑपरेशन सिंदूर के जवाब में पाकिस्तान के आगे बढ़ने के बाद, परमाणु हथियारों से लैस पड़ोसियों के बीच तनाव बढ़ने के बारे में चिंता व्यक्त की गई थी। इस सैन्य जुड़ाव में उनके हथियार प्रणालियों ने कैसा प्रदर्शन किया या प्रदर्शन करने में विफल रहे, इस पर भी अनेक प्रतिक्रियाएं व्यक्त की गईं। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, हमें न केवल अपने रणनीतिक साझेदारों को सावधानी से चुनना चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि इन साझेदारियों में सिंदूर सिद्धांत शामिल हो।
इसका मतलब यह है कि उन्हें पाकिस्तान पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके उसके आतंकी ढांचे को खत्म करना होगा और आतंकवाद को राज्य की नीति के रूप में त्यागना होगा और अगर हमें पाकिस्तानी आतंकवादी-सैन्य ढांचे के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सैन्य बल का इस्तेमाल करना पड़ता है तो उन्हें हमारे साथ एकजुटता दिखानी होगी। दुष्टों के लिए कोई शरणस्थली नहीं, कोई बचाव नहीं। यह बात महत्वपूर्ण है कि भारत जिस आतंकी ढांचे को निशाना बना रहा है वह सिर्फ भारत और लोकतंत्र के गढ़ और वैश्विक तौर पर आर्थिक प्रगति और विकास के इंजन के रूप में इसकी भूमिका के लिए खतरा नहीं है।
पाकिस्तान से आतंकवाद को वैश्विक स्तर पर – यूरोप, यूके, संयुक्त राज्य अमेरिका और उससे आगे फैलाया जाता है। फिर भी, अंतरराष्ट्रीय समुदाय का अधिकांश हिस्सा आंखें मूंद कर बैठा है, जबकि संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादी समूह पाकिस्तान में खुलेआम काम करते हैं, जो पहले था और अब भी है। ऑपरेशन सिंदूर 1.0 के दौरान पाकिस्तान के रक्षा और विदेश मंत्रियों ने सार्वजनिक रूप से यह बात स्वीकार की थी। आतंकवाद के अनेक सिर वाले इस राक्षस देश के विरुद्ध कार्रवाई करते हुए भारत ने दरअसल एक अंतरराष्ट्रीय सेवा की है।
भारत अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में एक अग्रणी योद्धा के रूप में खड़ा है। दुनिया को कार्रवाई करने के लिए जागृत होना चाहिए और आतंक के अपराधियों और इसके खिलाफ काम करने वालों के बीच नैतिक समानता स्थापित करना बंद करना चाहिए- चाहे उनके संकीर्ण, अल्पकालिक, दिखावटी विचार कुछ भी हों। सिंदूर सिद्धांत का आर्थिक आयाम भी महत्वपूर्ण है। “आतंक के साथ कोई व्यापार नहीं” के ऐलान से भारत ने स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा की सेवा में आर्थिक उपायों के विकल्प को भी अपनाया है।
व्यापार और सिंधु जल संधि जैसी संधियों को स्थगित करने जैसे कदम आर्थिक संबंधों को राष्ट्रीय सुरक्षा के उद्देश्यों के साथ मजबूती से तालमेल बिठाने के भारत के संकल्प को दर्शाते हैं। ये उपाय इस बात का स्पष्ट संदेश देते हैं कि आर्थिक जुड़ाव आतंक के खात्मे के बाद होना चाहिए, पहले नहीं।
खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते, यह अस्तित्वगत संदेश है। एक सशक्त कथानक ऑपरेशन के संदेश को पुष्ट करते हुए नारी शक्ति के इस पल ने भारत की सभ्यतागत महिलाओं के प्रति सम्मान को मजबूत किया, रानी लक्ष्मीबाई से लेकर समकालीन महिला सैन्य हस्तियों तक के ऐतिहासिक उदाहरणों की प्रतिध्वनि की, जिससे राष्ट्रीय गौरव को महिला-पुरुष समावेशिता के साथ जोड़ा गया।
भारत की सैन्य शक्ति स्वदेशी नवाचार से लगातार बढ़ रही है। कुछ विदेशी प्रणालियों का उपयोग किया गया था लेकिन स्वदेशी मिसाइलों, ड्रोन और निगरानी प्लेटफार्मों की सफल तैनाती रक्षा में आत्मनिर्भरता की ऑपरेशन संबंधी परिपक्वता को उजागर करती है। यह हमारे निर्यात पर जोर और मांग को बढ़ाता है। हमने पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारों की तुलना में भारत में आयातित और सह-निर्मित हथियार प्रणालियों का भी परीक्षण किया और इसने हमारे द्वारा किए गए सही विकल्पों की पुष्टि की है। ऑपरेशन सिंदूर स्पष्ट करता है कि भारत मान्यता नहीं, न्याय चाहता है।
भारतीय संयम को कभी भी कमजोरी नहीं समझा जाना चाहिए। सिंदूर सिद्धांत केवल प्रतिक्रियात्मक नहीं है, यह सैद्धांतिक स्पष्टता का एक सकारात्मक दावा है। भारत के लोगों, विशेष रूप से महिलाओं का जीवन, सम्मान, भलाई और गरिमा के साथ कोई समझौता संभव नहीं है। यहीं पर राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्र के सम्मान का मिलन होता है। यहीं पर प्राचीन मूल्यों का आधुनिक शक्ति से मिलन होता है और यहीं पर भारत निडर, अडिग और एकजुट खड़ा है। जय हिंद।
***