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पलायन के दंश से उजड रहे उतराखण्ड को बचाने के लिए महेश चंद्रा जी व बृजवासी दम्पति से प्रेरणा ले कर अपने गांव में ही मतदान करे उतराखण्डी

गैरसैंण राजधानी सहित जनांकांक्षाओं को साकार करने के लिए उतराखण्ड बचाने के लिए अपने गांव में ही मतदान करे उतराखण्डी

 

उतराखण्ड के सेवानिवृत वरिष्ठ सूचनाधिकारी बृजवासी दम्पति की तरह शहरों के बजाय अपने गांव (भीमताल/नैनीताल) को आबाद करें देश विदेश व प्रदेश में सम्पन्न उतराखण्डी

देवसिंह रावत-

देवभाई, पहले हमारे गांव में  400 के करीब लोग थे अब केवल 50-60 लोग रह गये। अधिकांश लोग देहरादून, रामनगर, दिल्ली इत्यादि शहरों में बस गये। गांव में रह गये बुजुर्ग व असहाय लोग। गांव की दुर्दशा पर रोना आता है। अपने गांव को बचाने के लिए हम जितने गांव से बाहर रह रहे हैं, अगर सच में उन्होने गांव की सेवा करनी है या अपने प्रदेश व देश की सच्ची सेवा करनी है तो हम सबको अपना मतदान अपने गांव में करना चाहिए। जब तक हमारे मत गांवों में नहीं होगा तब तक हम राजनैतिक दलों पर मजबूती से दवाब नहीं डाल पायेंगे। हम बातें तो बहुत कर देते हैं पलायन, गैरसैंण, विकास आदि के परन्तु जब इसके लिए काम करने का निर्णायक समय मतदान का होता है तो हमारा मत ही अपने गांव में नहीं होता है। गांव बचाने के लिए हमें सबसे पहले अपना मतदान अपने गांव में ही करना होगा। लोकशाही के प्राण मत में बसते है। राजनेता मत की भाषा ही समझता है और हमारा मतदान ही गांव, हमारे उतराखण्ड, देश व संस्कृति को बचायेगा। हमें अपने गांव व प्रदेश के विकास की चाबी मतपत्र अपने गांव में बनाना चाहिए। इसीलिए  मैं अपने गांव में ही  मतदान करता हॅू। मैने  अपना मतपत्र दिल्ली या देहरादून के बजाय  अपने गांव में ही बनाया है। इसी लिए साल में कई बार में अपने गांव में आता हॅू।
यह उदगार व्यक्त किये भारतीय विदेश व्यापार सेवा के  सेवानिवृत वरिष्ठ अधिकारी महेश चंद्रा जी ने। जिनसे  अभी कुछ ही ददेर पहले दूरभाष से बात हुई कि वे 11 अप्रैल को लोकसभा के चुनाव में मतदान के लिए अपने मूल गांव (पंजारा पट्टी-गुजडू- पौडी गढवाल, उतराखण्ड) की तरफ कूच कर गये है। वे एक सप्ताह से नैनीताल, अल्मोडा, पिथोरागढ़, हल्द्वानी, रामनगर आदि स्थानों पर जा कर लोगों को अपने हक हकूकों के लिए जनहितों के लिए समर्पित जनप्रतिनिधि चुनने के लिए जागरूक कर रहे है। इसके अंतिम चरण में महेश चंद्रा जी अपने गांव में मतदान करके लोकशाही के इस महापर्व में सहभागी बनेंगे।
विदेश व्यापार सेवा से सेवा निवृत के बाद राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के पंचतारा जीवन जीने के बजाय अपनी मातृभूमि उतराखण्ड की सेवा करने का मन बनाया। इसी के तहत वे उतराखण्ड अधिनस्थ सेवा चयन आयोग के सदस्य के रूप में तीन साल तक प्रदेश की सेवा करते रहे। उतराखण्ड सरकार के रोजगार देने के एक अहम विभाग में सेवारत अवधि में उन्होने करीबी से देखा कि प्रदेश के तथाकथित जनप्रतिनिधि व नौकरशाह के अपने दायित्वों का सही ढंग से निर्वहन न करके प्रदेश के विकास, जनांकांक्षाओं व देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा हो रहा है। इसी के कारण राज्य गठन के 18 सालों से देश की सुरक्षा के लिए चट्टान की तरह सदेव तैनात रहने वाले उतराखण्ड के सीमांत व पर्वतीय जनपदों से ऐसा पलायन हुआ कि हजारों गांव विरान हो गये और लाखों घरों में ताला लग गया। पलायन की आंधी से  उतराखण्ड तबाह इस लिए हो रहा है कि प्रदेश की सरकारों ने राज्य गठन के समय तय प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाने के बजाय लखनवीं मानसिता में रमे नेता व नौकरशाहों ने देहरादून में कुण्डलीमार कर बैठ कर प्रदेश की जनांकांक्षाओं की जड़डों में मट्ठा डालने का उतराखण्ड द्रोही कृत्य किया। इसके कारण जिन पर्वतीय व सीमांत जनपदों के लोगों ने हुक्मरानों के लखनवी मानसिकता के दंश से बचाने के लिए  राव-मुलायम के दमन को भी सहते हुए भी भारत सरकार को ऐतिहासिक उतराखण्ड राज्य का गठन करने के लिए मजबूर किया था, उनकी आशाओं व अपेक्षाओं पर प्रदेश की 18 राज्यों की अब तक की सरकारों ने देहरादून में कुण्डली मार कर बैठने से पर्वतीय व सीमान्त जनपदों से शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा व शासन पटरी से उतर कर देहरादून व उसके आसपास के 2 अन्य मैदानी जनपदों में सीमट कर रह गया है। इससे प्रदेश पलायन के दंश से मरणासन्न पडा है। पतन के गर्त में आकंठ घिरे उतराखण्ड को बचाने के लिए अपने गांवों को छोड कर देहरादून, दिल्ली, लखनऊ, मुम्बई, रामनगर, जयपुर, नैनीताल, हल्द्वानी व कोटद्वार आदि शहरों में सेवारत/निवास रहे लाखों उतराखण्डियों को चाहिए कि वे अपना मतदान अपने गांव में करके प्रदेश की रक्षा करने का काम करें। इससे इन राजनैतिक दलों की धूर्तता पर जहां अंकुश लगेगा वहीं देश व प्रदेश में लोकशाही मजबूत होगी और जनता जागरूक होगी। गांव आबाद होगे। देश की सुरक्षा मजबूत होगी। उजड रहे गांव फिर आबाद होंगे। लोग अपने खेत खलिहान व बंद पडे घरों को आबाद करेंगे। एक बात साफ है कि जहां प्रदेश की बर्बादी के लिए मुख्य गुनाहगार प्रदेश की दिशाहिन सरकारें रही वहीं शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार सहित आदि कारणों से अपने गांव छोड कर बाहर शहरों में बस कर गांवों को भूल जाने वाले लोग भी कम गुनाहगार नहीं है।

ठीक यही सोच कर उतराखण्ड सरकार के सूचना सेवा के वरिष्ठ अधिकारी दम्पति चंदन बृजवासी व हंसी बृजवासी ने देहरादून या दिल्ली जैसे शहरों के बजाय अपने पैतृक गांव भीमताल में बस गये। प्रकृति की गाोद में  अपना सेवानिवृत जीवन जी रहे बृजवासी दंपति के गांव आबाद करने के निर्णय का सभी मुक्त कंठों से सराहना कर रहे हैं। एक बात साफ है कि जहां प्रदेश की बर्बादी के लिए मुख्य गुनाहगार प्रदेश की दिशाहिन सरकारें रही वहीं शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार सहित आदि कारणों से अपने गांव छोड कर बाहर शहरों में बस कर गांवों को भूल जाने वाले लोग भी कम गुनाहगार नहीं है। महेश चंद्रा जी व बृजवासी दंपति की तरह अगर हम सब अपने गांव में बसें, मतदान करें या साल में एकाद बार अवश्य अपने गांव जाये तो उतराखण्ड की दशा व दिशा काफी हद तक खुद ही सुधरने लग जायेगी। इसके साथ प्रदेश की पथभ्रष्ट राजनीति भी सुधरने के लिए मजबूर हो जायेगी।

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