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’संपत्ति पर बलात कब्जा करने वाला मालिक नहीं होता ’ वाले सर्वोच्च न्यायालय के फेसले से ही सुलझेगा राममंदिर विवाद

संपत्ति पर कब्जा करने वाला उसका मालिक नहीं हो सकता:सर्वोच्च न्यायालय
नई दिल्ली।(प्याउ)। 31 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया कि किसी संपत्ति पर जबरन कब्जा करने वाला व्यक्ति उस संपत्ति का मालिक नहीं हो सकता।  ऐसे बलात कब्जा करने वाले व्यक्ति को बलपूर्वक कब्जे से बेदखल कर सकता है, चाहे उसे कब्जा किए 12 साल से अधिक का समय हो गया हो।
सर्वोच्च न्यायालय के इस ऐतिहासिक फेसले से शताब्दियों से लम्बित रामजन्म भूमि विवाद भी सुलझ सकता है। क्योंकि यह मामला भी ठीक ऐसा ही है। 1528 में आक्रांता बाबर के सेनापति मीरबाकी ने भारतीयों के मनोबल को रोंदने व विजेता के धर्म को यहां पर स्थापित करने के लिए रामजन्मभूमि पर बने राममंदिर को ध्वस्थ कर वहां पर बलात बाबरी मस्जिद का निर्माण किया। तब से इस मामले पर न्याय करने में सरकारें व न्याय व्यवस्था पूरी तरह से असफल रही। इस पर न्याय यह होना चाहिए कि जिस आक्रांता, लूटेरे ने तलवार के बल पर भारतीयों से उनके आराध्य का मंदिर पर कब्जा करके व ध्वस्थ करके मस्जिद बनाने का कृत्य किया, उस अवैध कब्जे से मुक्त करा कर भारतीयों को सांेपा जाय। इस मामले का समाधान जमीन का न हो कर अवैध कब्जा करके न्याय का गला घोंटने का है।

सर्वोच्च न्यायालय ने 31 जनवरी को यह फैसला बाड़मेर (राजस्थान ) में पूनाराम बनाम मोतीराम के मामले में सुनवायी करते हुए कही। इस विवाद में पूनाराम ने बाडमेर के जागीरदार से 1966 में कुछ संपत्ति खरीदी थी जो एक जगह नही थी। जब संपत्ति के लिए स्वामित्व घोषणा का वाद दायर किया गया तो कब्जा मोतीराम के पास मिला। मोतीराम कोई दस्तावेज नहीं दिखा पाया और ट्रायल कोर्ट ने सपंत्ति पर मकान बनाने के लिए पास किए नक्शे के आधार पर मोतीराम को 1972 में बेदखल करने का आदेश दिया। मोती हाईकोर्ट गया और राजस्थान उच्च न्यायालय ने फैसला पलट दिया। इसके खिलाफ मालिक सुप्रीम कोर्ट आया था।

सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति एनवी रमणा और एमएम शांतनागौडर की पीठ ने में इस मामले की सुनवायी करते हुए कहा कि कोई व्यक्ति जब कब्जे  की बात करता है तो उसे संपत्ति पर कब्जा टाइटल दिखाना होगा और सिद्ध करना होगा कि उसका संपत्ति पर प्रभावी कब्जा है। ऐसे बलात कब्जे में लिमिटेशन एक्ट, 1963 की धारा 64 के तहत मालिक ने कब्जे के खिलाफ 12 वर्ष के अंदर मुकदमा दायर नहीं करने का नियम भी ही लागू होती है।
बलात कब्जे पर ऐतिहासिक फैसला अक्षरशः रामजन्म भूमि मामले पर भी लागू होता है। ऐसे में न्यायालय व सरकार को चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के आलोक में अविलम्ब राममंदिर विवाद को भी सुलझा देना चाहिए।

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