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भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए अनशन कर रहे 82वर्षीय अण्णा हजारे को सलाम, भ्रष्टाचार को संरक्षण देने वाली सरकारों को धिक्कार

भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लोकपाल की नियुक्ति क्यों नहीं कर रही है मोदी सरकार

महाराष्ट्र सरकार की तरह सर्वोच्च पदों पर आसीन लोगों के भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगाने की पहल करने का साहस जुटाये केन्द्र व प्रांतीय सरकार

नई दिल्ली (प्याउ)। देश के विकास, अमन चैन, सुरक्षा सहित वर्तमान व भविष्य को तबाह लगे भ्रष्टाचार से भारत को मुक्त करने के लिए देशव्यापी आंदोलन करने वाले 81 वर्षीय वयोवृद्ध देश के शीर्ष समाजसेवी अन्ना हजारे आज 30 जनवरी को महात्मा गांधी के शहादत दिवस के अवसर पर 10 बजे से प्रधानमंत्री मोदी की सरकार द्वारा लोकपाल नियुक्त न किये से आहत होकर पुन्न अनशन प्रारम्भ कर दिया है। कुछ साल पहले  दिल्ली के रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए अनशन रूपि ऐतिहासिक  लोकपाल आंदोलन करके पूर्व मनमोहन सरकार की चूलें हिला देने वाले अण्णा हजारे ने इस बार अपना अनशन आंदोलन अपने गांव रालेगन सिद्धि, (अहमदनगर, महाराष्ट्र) में कर रहे है।
अन्ना ने स्पष्ट किया कि लोकपाल कानून बने 5 साल हो गए और केन्द्र सरकार पांच साल से सिर्फ बहानेबाजी करती आ रही है।.मेरा अनशन किसी व्यक्ति, पक्ष, पार्टी के खिलाफ नहीं है। समाज और देश की भलाई के लिए बार-बार मैं आंदोलन करता आया हूं, उसी प्रकार का ये आंदोलन है।  अण्णा हजारे के इस आंदोलन का भले ही दलीय बंधुआ मजदूर बने तथाकथित समाजसेवी व व्यवस्था में ंकाबिज लोग मजाक उडा रहे हों परन्तु उनको इस बात का भान होना चाहिए कि अण्णा किसी आरक्षण या निजी लाभ के लिए कोई मांग नहीं कर रहे हैं। अपितु अण्णा हजारे देश की सरकारों से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की मांग ही कर रहा है। लोकपाल कानून को अमल कराने के लिए लोकपाल की नियुक्त कराने की बात कर रहा है। अगर सरकारें ईमानदार है तो लोकपाल नियुक्त करने से क्यों डर रहे है।

वहीं अण्णा के आंदोलन की रणभेरी बजने से पहले ही महाराष्ट्र के मंत्रिमंडल ने मुख्यमंत्री मंत्री, विपक्षी नेता को भी लोकायुक्त के अधिकार क्षेत्र में लाने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की अध्यक्षता में 29 जनवरी को मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला लिया गया। .
अण्णा के साथ लोकपाल आंदोलन के साथी आंदोलनकारी एक एक करके राजनैतिक दलों में सम्मलित हो गये या केजरीवाल सहित अनैक लोगों ंने अपनी पार्टी यानी आम आदमी पार्टी बना कर दिल्ली की सत्ता में आसीन हो गये। सत्तासीन होने पर इन नेताओं व दलों को कभी न अपने आंदोलन के दिनों के वादे ही याद आये व नहीं इनकी कोई इच्छा रही इस कानून को ईमानदारी से लागू करने की। अण्णा हजारे इन सबके विश्वासघात के बाद अण्णा अपनी मांग पर अपनी सामथ्र्य के अनुसार आदंोलन करते रहे। परन्तु जन भावनाओं को रौंदने वाली सरकारे अण्णा से छल करती रही। आज अण्णा हजारे के आंदोलन का उपहास उडाने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि 82 साल का बुजुर्ग आदमी देश में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए अनशन कर रहा है तो इसमें क्या गलत है। आखिर देश के प्रति जितना दायित्व अण्णा का है उतना ही दायित्व प्रश्न उठाने वालों का भी है। इसलिए भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगा रही सरकारों की भत्र्सना करके अण्णा के आंदोलन में सहभागी बनने के बजाय कुछ लोग अण्णा के आंदोलन का ही उपहास उडा रहे है। यह कृत्य राष्ट्र विरोधी है। भ्रष्टाचार को बढावा देने वाला है। अण्णा के इस  आंदोलन का पूर्ण समर्थन करके सडक पर नहीं उतरने वाले केजरीवाल सहित तमाम दल भी बेनकाब हो चूके है। देश की खुशहाली के लिए अपने जीवन की अंतिम पहर में भी अनशन जैसे आंदोलन करने वाले अण्णा हजारे के जज्बे को नमन् करते हुए हम सुधि पाठकों के लिए मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया में प्रकाशित उनके जीवन का संक्षिप्त परिचय-

१५ जून १९३७ को रालेगन सिद्धि में जन्में अण्णा हजारे के नाम से विख्यात किसन बाबूराव हजारे की गणना देश के अग्रणी समाजसेवियों में होता है।। सन् १९९२ में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। सूचना के अधिकार के लिये कार्य करने वालों में वे प्रमुख है। जन लोकपाल विधेयक को पारित कराने के लिये अन्ना ने १६ अगस्त २०११ से आमरण अनशन आरम्भ किया था।

अन्ना हजारे का जन्म १५ जून १९३७ को महाराष्ट्र के अहमदनगर के रालेगन सिद्धि गाँव के एक मराठा किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबूराव हजारे और माँ का नाम लक्ष्मीबाई हजारे था।ख्1, उनका बचपन बहुत गरीबी में गुजरा। पिता मजदूर थे तथा दादा सेना में थे। दादा की तैनाती भिंगनगर में थी। वैसे अन्ना के पूर्वंजों का गाँव अहमद नगर जिले में ही स्थित रालेगन सिद्धि में था। दादा की मृत्यु के सात वर्षों बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया। अन्ना के छह भाई हैं। परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं। वहाँ उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वे दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में ४० रुपये के वेतन पर काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया।
वर्ष १९६२ में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील पर अन्ना १९६३ में सेना की मराठा रेजीमेंट में ड्राइवर के रूप में भर्ती हो गए। अन्ना की पहली नियुक्ति पंजाब में हुई। १९६५ में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अन्ना हजारे खेमकरण सीमा पर नियुक्त थे। १२ नवम्बर १९६५ को चैकी पर पाकिस्तानी हवाई बमबारी में वहाँ तैनात सारे सैनिक मारे गए।ख्1, इस घटना ने अन्ना के जीवन को सदा के लिए बदल दिया। इसके बाद उन्होंने सेना में १३ और वर्षों तक काम किया। उनकी तैनाती मुंबई और कश्मीर में भी हुई। १९७५ में जम्मू में तैनाती के दौरान सेना में सेवा के १५ वर्ष पूरे होने पर उन्होंने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ले ली। वे पास के गाँव रालेगन सिद्धि में रहने लगे और इसी गाँव को उन्होंने अपनी सामाजिक कर्मस्थली बनाकर समाज सेवा में जुट गए।
१९६५ के युद्ध में मौत से साक्षात्कार के बाद नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उन्होंने स्वामी विवेकानंद की एक पुस्तक श्कॉल टु दि यूथ फॉर नेशनश् खरीदी। इसे पढ़कर उनके मन में भी अपना जीवन समाज को समर्पित करने की इच्छा बलवती हो गई। उन्होंने महात्मा गांधी और विनोबा भावे की पुस्तकें भी पढ़ीं। १९७० में उन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर स्वयं को सामाजिक कार्यों के लिए पूर्णतः समर्पित कर देने का संकल्प कर लिया।
मुम्बई पदस्थापन के दौरान वह अपने गाँव रालेगन आते-जाते रहे। वे वहाँ चट्टान पर बैठकर गाँव को सुधारने की बात सोचा करते थे। १९७८ में स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेकर रालेगन आकर उन्होंने अपना सामाजिक कार्य प्रारंभ कर दिया। इस गाँव में बिजली और पानी की जबरदस्त कमी थी। अन्ना ने गाँव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया और स्वयं भी इसमें योगदान दिया। अन्ना के कहने पर गाँव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए। गाँव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई की गई।ख्2, उन्होंने अपनी जमीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी और अपनी पेंशन का सारा पैसा गाँव के विकास के लिए समर्पित कर दिया। वे गाँव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गाँव का हर शख्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गाँवों के लिए भी यहाँ से चारा, दूध आदि जाता है। यह गाँव आज शांति, सौहार्द्र एवं भाईचारे की मिसाल है।
१९९१ में अन्ना हजारे ने महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की सरकार के कुछ श्भ्रष्टश् मंत्रियों को हटाए जाने की माँग को लेकर भूख हड़ताल की। ये मंत्री थे- शशिकांत सुतर, महादेव शिवांकर और बबन घोलाप। अन्ना ने उन पर आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप लगाया था। सरकार ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन अंततरू उन्हें दागी मंत्रियों शशिकांत सुतर और महादेव शिवांकर को हटाना ही पड़ा।ख्3, घोलाप ने अन्ना के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर दिया। अन्ना अपने आरोप के समर्थन में न्यायालय में कोई साक्ष्य पेश नहीं कर पाए और उन्हें तीन महीने की जेल हो गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने उन्हें एक दिन की हिरासत के बाद छोड़ दिया। एक जाँच आयोग ने शशिकांत सुतर और महादेव शिवांकर को निर्दोष बताया। लेकिन अन्ना हजारे ने कई शिवसेना और भाजपा नेताओं पर भी भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगाए।
१९९७ में अन्ना हजारे ने सूचना का अधिकार अधिनियम के समर्थन में मुंबई के आजाद मैदान से अपना अभियान शुरु किया। ९ अगस्त २००३ को मुंबई के आजाद मैदान में ही अन्ना हजारे आमरण अनशन पर बैठ गए। १२ दिन तक चले आमरण अनशन के दौरान अन्ना हजारे और सूचना का अधिकार आंदोलन को देशव्यापी समर्थन मिला। आखघ्रिकार २००३ में ही महाराष्ट्र सरकार को इस अधिनियम के एक मजबूत और कड़े विधेयक को पारित करना पड़ा। बाद में इसी आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लिया। इसके परिणामस्वरूप १२ अक्टूबर २००५ को भारतीय संसद ने भी सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया। ख्4, अगस्त २००६, में सूचना का अधिकार अधिनियम में संशोधन प्रस्ताव के खिलाफ अन्ना ने ११ दिन तक आमरण अनशन किया, जिसे देशभर में समर्थन मिला। इसके परिणामस्वरूप, सरकार ने संशोधन का इरादा बदल दिया।
२००३ में अन्ना ने कांग्रेस और एनसीपी सरकार के चार मंत्रियोंय सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल को भ्रष्ट बताकर उनके खघ्लिाफ मुहिम छेड़ दी और भूख हड़ताल पर बैठ गए। तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इसके बाद एक जाँच आयोग का गठन किया। नवाब मलिक ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। आयोग ने जब सुरेश जैन के खिलाफ आरोप तय किए तो उन्हें भी त्यागपत्र देना पड़ा।
जन लोकपाल विधेयक (नागरिक लोकपाल विधेयक) के निर्माण के लिए जारी यह आंदोलन अपने अखिल भारतीय स्वरूप में ५ अप्रैल २०११ को समाजसेवी अन्ना हजारे एवं उनके साथियों के जंतर-मंतर पर शुरु किए गए अनशन के साथ आरंभ हुआ, जिनमें मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अरविंद केजरीवाल, भारत की पहली महिला प्रशासनिक अधिकारी किरण बेदी, प्रसिद्ध लोकधर्मी वकील प्रशांत भूषण, आदि शामिल थे। संचार साधनों के प्रभाव के कारण इस अनशन का प्रभाव समूचे भारत में फैल गया और इसके समर्थन में लोग सड़कों पर भी उतरने लगे। इन्होंने भारत सरकार से एक मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल विधेयक बनाने की माँग की थी और अपनी माँग के अनुरूप सरकार को लोकपाल बिल का एक मसौदा भी दिया था। किंतु मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने इसके प्रति नकारात्मक रवैया दिखाया और इसकी उपेक्षा की। इसके परिणामस्वरूप शुरु हुए अनशन के प्रति भी उनका रवैया उपेक्षा पूर्ण ही रहा। लेकिन इस अनशन के आंदोलन का रूप लेने पर भारत सरकार ने आनन-फानन में एक समिति बनाकर संभावित खतरे को टाला और १६ अगस्त तक संसद में लोकपाल विधेयक पारित कराने की बात स्वीकार कर ली। अगस्त से शुरु हुए मानसून सत्र में सरकार ने जो विधेयक प्रस्तुत किया वह कमजोर और जन लोकपाल के सर्वथा विपरीत था। अन्ना हजारे ने इसके खिलाफ अपने पूर्व घोषित तिथि १६ अगस्त से पुनः अनशन पर जाने की बात दुहराई। १६ अगस्त को सुबह साढ़े सात बजे जब वे अनशन पर जाने के लिए तैयारी कर रहे थे, तब दिल्ली पुलिस ने उन्हें घर से ही गिरफ्तार कर लिया। उनके टीम के अन्य लोग भी गिरफ्तार कर लिए गए। इस खबर ने आम जनता को उद्वेलित कर दिया और वह सड़कों पर उतरकर सरकार के इस कदम का अहिंसात्मक प्रतिरोध करने लगी। दिल्ली पुलिस ने अन्ना को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। अन्ना ने रिहा किए जाने पर दिल्ली से बाहर रालेगाँव चले जाने या ३ दिन तक अनशन करने की बात अस्वीकार कर दी। उन्हें ७ दिनों के न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया गया। शाम तक देशव्यापी प्रदर्शनों की खबर ने सरकार को अपना कदम वापस खींचने पर मजबूर कर दिया। दिल्ली पुलिस ने अन्ना को सशर्त रिहा करने का आदेश जारी किया। मगर अन्ना अनशन जारी रखने पर दृढ़ थे। बिना किसी शर्त के अनशन करने की अनुमति तक उन्होंने रिहा होने से इनकार कर दिया। १७ अगस्त तक देश में अन्ना के समर्थन में प्रदर्शन होता रहा। दिल्ली में तिहाड़ जेल के बाहर हजारों लोग डेरा डाले रहे। १७ अगस्त की शाम तक दिल्ली पुलिस रामलीला मैदान में ७ दिनों तक अनशन करने की इजाजत देने को तैयार हुई। मगर अन्ना ने ३० दिनों से कम अनशन करने की अनुमति लेने से मना कर दिया। उन्होंने जेल में ही अपना अनशन जारी रखा। अन्ना को रामलीला मैदान में १५ दिन कि अनुमति मिली और १९ अगस्त से अन्ना राम लीला मैदान में जन लोकपाल बिल के लिये अनशन जारी रखने पर दृढ़ थे। २४ अगस्त तक तीन मुद्दों पर सरकार से सहमति नहीं बन पायी। अनशन के 10 दिन हो जाने पर भी सरकार अन्ना का अनशन समापत नहीं करवा पाई द्य हजारे ने दस दिन से जारी अपने अनशन को समाप्त करने के लिए सार्वजनिक तौर पर तीन शर्तों का ऐलान किया। उनका कहना था कि तमाम सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाया जाए, तमाम सरकारी कार्यालयों में एक नागरिक चार्टर लगाया जाए और सभी राज्यों में लोकायुक्त हो। 74 वर्षीय हजारे ने कहा कि अगर जन लोकपाल विधेयक पर संसद चर्चा करती है और इन तीन शर्तों पर सदन के भीतर सहमति बन जाती है तो वह अपना अनशन समाप्त कर देंगे।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दोनो पक्षों के बीच जारी गतिरोध को तोड़ने की दिशा में पहली ठोस पहल करते हुए लोकसभा में खुली पेशकश की कि संसद अरूणा राय और डॉ॰ जयप्रकाश नारायण सहित अन्य लोगों द्वारा पेश विधेयकों के साथ जन लोकपाल विधेयक पर भी विचार करेगी। उसके बाद विचार विमर्श का ब्यौरा स्थायी समिति को भेजा जाएगा।

25 मई २0१२ को अन्ना हजारे ने पुनः जंतर मंतर पर जन लोकपाल विधेयक और विसल ब्लोअर विधेयक को लेकर एक दिन का सांकेतिक अनशन किया।
गांधी की विरासत उनकी थाती है। कद-काठी में वह साधारण ही हैं। सिर पर गांधी टोपी और बदन पर खादी है। आँखों पर मोटा चश्मा है, लेकिन उनको दूर तक दिखता है। इरादे फौलादी और अटल हैं। महात्मा गांधी के बाद अन्ना हजारे ने ही भूख हड़ताल और आमरण अनशन को सबसे ज्यादा बार बतौर हथियार इस्तेमाल किया है। इसके जरिए उन्होंने भ्रष्ट प्रशासन को पद छोड़ने एवं सरकारों को जनहितकारी कानून बनाने पर मजबूर किया है। अन्ना हजारे को आधुनिक युग का गान्धी भी कहा जा सकता है। अन्ना हजारे हम सभी के लिये आदर्श है।
अन्ना हजारे गांधीजी के ग्राम स्वराज्य को भारत के गाँवों की समृद्धि का माध्यम मानते हैं। उनका मानना है कि बलशाली भारत के लिए गाँवों को अपने पैरों पर खड़ा करना होगा।उनके अनुसार विकास का लाभ समान रूप से वितरित न हो पाने का कारण गाँवों को केन्द्र में न रखना रहा।
व्यक्ति निर्माण से ग्राम निर्माण और तब स्वाभाविक ही देश निर्माण के गांधीजी के मन्त्र को उन्होंने हकीकत में उतार कर दिखाया और एक गाँव से आरम्भ उनका यह अभियान आज 85 गाँवों तक सफलतापूर्वक जारी है। व्यक्ति निर्माण के लिए मूल मन्त्र देते हुए उन्होंने युवाओं में उत्तम चरित्र, शुद्ध आचार-विचार, निष्कलंक जीवन व त्याग की भावना विकसित करने व निर्भयता को आत्मसात कर आम आदमी की सेवा को आदर्श के रूप में स्वीकार करने का आह्वान किया है।

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