देश

आरक्षण की बैसाखियों से नहीं अपितु अंग्रेजी की गुलामी हटाकर भारतीय भाषायें लागू करने से ही बनेगा भारत पुन्न विश्व की महाशक्ति व सोने की चिडिया

#भारतीय_भाषा_आंदोलन ने दिया #प्रधानमंत्री को #ज्ञापन

प्रतिष्ठा में,
श्री नरेन्द्र मोदी जी                                 14जनवरी 2019
    प्रधानमंत्री
    भारत

विषय- (क ) अंग्रेजों के जाने के 72 साल बाद भी भारत को अंग्रेजी – इंडिया की गुलामी से मुक्त करके भारतीय भाषायें लागू  करने  की मांग
व सर्वोच्च न्यायालय  के आदेश के बाबजूद राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर सतत्(प्रातः11 बजे से सांय 4 बजे तक ) की इजाजत नहीं ंदे रही दिल्ली पुलिस  प्रशासन के अलौकतांत्रिक रवैये के विरोध में भारतीय भाषा आंदोलन का  प्रतिदिन जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा व ज्ञापन
अंग्रेजों के जाने के 72साल बाद भी भारत को क्यों बना रखा है बलात अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी व इंडिया का गुलाम ?  
भारत को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने व भारतीय भाषाओं को लागू करने के लिए भारतीय आंदोलन ने 69 माह से छेडा हुआ है संसद की चैखट, दिल्ली पर देश की आजादी के लिए सत्याग्रह,
                                         हमारी मांग है कि
(1) सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषाओं में दिया जाय न्याय(2) शिक्षा भारतीय भाषाओं में ही प्रदान की जाय (3)संघ लोकसेवा आयोग सहित देश प्रदेश में रोजगार की सभी परीक्षाएं अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषाओं में ली जाय। (4) शासन प्रशासन भी भारतीय भाषाओं में संचालित किया जाय। (5) देश का नाम केवल भारत (इंडिया नहीं) रखा जाय।(5) राष्ट्रीय धरनास्थल जंतर मंतर पर सतत्(प्रातः11 बजे से सांय 4 बजे तक ) धरना प्रदर्शन की इजाजत दी जाय।

मान्यवर,
    जय हिन्द! वंदे मातरम्।    आज 14  जनवरी 2019 को पूरा विश्व मकर संक्रांति का पावन पर्व बहुत ही श्रद्धा के साथ मना रहा है। सूर्यदेव की पूजा अर्चना करके स्वागत कर रहा है। परन्तु दुर्भाग्य है भारत का जो अपने खुदगर्ज व गुलामपरस्त हुक्मरानों के कारण अंग्रेजों के जाने के 72 साल बाद भी अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी व उनके द्वारा थोपे गये नाम इंडिया की गुलामी ढो कर अपना वर्तमान व भविष्य कलंकित करके जमीदोज कर रहा है। इस कलंक को मिटाकर देश मे आजादी व लोकशाही का परचम लहराने के बजाय भारतीय हुक्मरान बेशर्मी से गुलामी का ही संवर्धन व पोषण करके भारतीयों को आरक्षण की बैसाखियां पकडा रहे हैं।

सरकार द्वारा सामाजिक न्याय व विकास के नाम पर आर्थिक रूप से कमजोर अनारक्षित वर्ग के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए इसी पखवाडे संसद में पारित किये गये  124वें संविधान संशोधन विधेयक 2019 को बेसाखी ंमानती है, सबल व मजबूत बनाने वाला नहीं।  मात्र आरक्षण की बैसाखियों से भारत का विकास नहीं होगा। भारत के आम गरीब जनमानस का चहुंमुखी विकास आरक्षण की बेसाखियों को थमाने से नहीं होगा अपितु देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करके देश के नौनिहालों सहित जनमानस को भारतीय भाषाओं में शिक्षा, रोजगार, न्याय, सम्मान व शासन देने से ही होगा।
इसी मांग को लेकर  भारतीय भाषा आंदोलन, संसद की चैखट जंतर मंतर से आपके कार्यालय प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा कर आपको ज्ञापन सौंप रहा है। देश की लोकशाही को बचाने का यह पदयात्रा अभियान 28 दिसम्बर 2018 से जारी है।आपको विदित ही होगा कि भारतीय भाषा आंदोलन देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करने के लिए विगत 69 माह से पुलिस प्रशासन के दमन व असहयोग के बाबजूद संसद की चैखट (जंतर मंतर/रामलीला मंदिर/शहीद पार्क/संसद मार्ग) पर सतत् शांतिपूर्ण आंदोलन कर रही है। सरकार द्वारा अविलम्ब देशहित की मांग  को स्वीकार करक देश के माथे से गुलामी का बदनुमा कलंक हटानेे की जगह देशभक्त आंदोलनकारियों का अलोकतांत्रिक दमन किया गया व आंदोलन को उजाडने का कृत्य किया गया। 30 अक्टूबर 2018 को हरित अधिकरण में सरकार द्वारा सही ढंग से पक्ष न रखे जाने से जंतर मंतर पर चल रहे धरना प्रदर्शन पर प्रतिबंद्ध लगाने का अलोकतांत्रिक कृत्य किया गया। इसके बाद आंदोलनकारियों व न्यायालय को गुमराह करके रामलीला मैदान भेजा गया। वहा ंपर भी कोई नियत स्थान धरने के लिए आवंटित नहीं किया गया। उसके बाद भारतीय भाषा आंदोलन शहीद पार्क में कुछ महिने आंदोलन जारी रखे रहा। इस अलोकतांत्रिक कृत्य को जब सर्वोच्च न्यायालय ने सिरे से नकारते हुए जंतर मंतर व वोट क्लब को आंदोलन के लिए स्वीकृत किया। परन्तु प्रशासन कई महिनों तक आदेश के बाबजूद जंतर मंतर पर आदंोलन शुरू नहीं कर पाया। बाद में जब भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री के टवीट्र पर इसकी इतला दी तो तब 28 नवम्बर से जंतर मंतर पर धरना शुरू किया गया। भारतीय भाषा आंदोलन ने भी 28 नवम्बर 2018 से जंतर मंतर पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार केवल प्रातः ं11 बजे से सांय4 बजे तक आंदोलन जारी रखा और इसकी सूचना पत्र दिल्ली पुलिस के एचएएक्स विभाग नई दिल्ली संसद मार्ग में शपथ पत्र के साथ दाखिल किया। परन्तु एक पखवाडे तक प्रतिदिन शांतिपूर्ण आंदोलन जारी रखे हुए था। परन्तु दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ के अधिकारी ने कई दिन लगातार धरना न देने का आदेश दिया। इस अलौकतांत्रिक रवैये के खिलाफ ही भारतीय भाषा आंदोलन अपने आंदोलन को जारी रखते हुए पदयात्रा व ज्ञापन दे रहा है।
शर्मनाक बात यह है कि जिस आजादी को पाने के लिए देश के लाखों सपूतों ने अपना बलिदान दिया, शताब्दियों तक संघर्ष दिया। वह आजादी 1947 को अंग्रेजो से मुक्त होने के बाद से 72 साल तक देश को नसीब नहीं हो पायी।देश के हुक्मरानों ने पूरे देश की आंखों में धूल झोंक कर व विश्वासघात करके देश में शिक्षा, रोजगार, न्याय, शासन व सम्मान आदि कों अंग्रेजी में ही संचालित करके भारतीय भाषाओं के साथ-साथ देश की आजादी, लोकशाही,विकास, समानता, सम्मान, मानवाधिकार व संस्कृति को जमींदोज करने का जघंन्य कृत्य किया है।
मान्यवर, इसी पीड़ा से त्रस्त जनों ने संघ लोकसेवा आयोग के समक्ष भाषाई संघर्ष में पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसे चार दर्जन देश के शीर्ष नेताओं के साथ संघर्ष में साथ रहे परन्तु प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आसीन होते ही, भारत माता की जय व हिंदी हिन्दु हिन्दुस्तान कहने वाले संघ के वरिष्ठ स्वयं सेवक अटल बिहारी वाजपेयी भी इंडिया राइजिंग नाव व साइनिंग नाव का जाप कर देश को निराश कर गये। आप का 5 वर्षीय कार्यकाल समाप्त की तरफ है। आप भी देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करने में असफल रहे।   देश का दुर्भाग्य है कि अंग्रेजों के जाने के 72 साल बाद भी देश के हुक्मरान देश को अपना नाम भारत व अपनी भाषाओं में शिक्षा, रोजगार, न्याय, शासन व सम्मान तक नहीं दे पाये। सरकारें किसी भी दल की रही हो सब देश को अंग्रेजी का गुलाम ही बनाये रखने में रत रहे। इसी कलंक को मिटाने के लिए  कि भारतीय भाषा आंदोलन, देश को अंग्रेजी की गुलामी को मुक्ति दिलाने व देश की पूरी व्यवस्था को भारतीय भाषाओं से संचालित करने   की मांग को लेकर संसद की चैखट(जंतर मंतर/रामलीला मैदान/शहीदी पार्क/संसद मार्ग) पर 21 अप्रैल 2013 से यानी विगत 69 वें माह से शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहा है। परन्तु देश की आजादी, स्वाभिमान, संस्कृति, नाम व मानवाधिकार को बलात विदेशी भाषा अंग्रेजी को थोप कर जमीदोज करने वाले देश के हुक्मरान भारतीय भाषा आंदोलन की मांग को तत्काल  स्वीकार करने के अपने प्रथम राष्ट्रीय दायित्व का निर्वाह करने के भारतीय भाषा आंदोलन को कुचलने के लिए अलौकतांत्रिक व अमानवीय पुलिसिया दमन कर रही है। आखिर कब भारतीय हुक्मरान यह साहस करेंगे कि अंग्रेज गये अंग्रेजी भी जाये, भारतीय भाषा राज चलाये।   हमें पूरा विश्वास है कि  अगर देश के हुक्मरानों को देश का जरा भी भान रहता तो वे भारत की आजादी के सेनानियों के सपने साकार और  अजा/अजजा/पिछडों/वंचितों/आम जनता का चहुंमुखी विकास के लिए अविलम्ब देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर भारतीय भाषाओं से पूरी व्यवस्था संचालित करते। क्योंकि अंग्रेजी की गुलामी के कारण देश के अजा/अजजा/पिछडों/वंचितों/आम जनता का विकास अवरूद्ध हो जाता है। देश के तमाम आरक्षण के बाबजूद 72 सालों से वंचित समाज व आम जनता शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, न्याय व सम्मान से वंचित ही है।देश में असली आरक्षण देश में 3 प्रतिशत अंग्र्रेजदा लोगों को है। वे ही पूरी व्यवस्था में काबिज है। वंचित समाज के विकास की राह में अंग्रेजी सबसे बड़ी बाधक बनी हुई है। इसके कारण आम भारतीय जनमानस शिक्षा, रोजगार, न्याय व सम्मान के साथ शासन से कोसों दूर है। अगर जनमानस की भाषा में राजकाज, न्याय,शासन व रोजगार मिलता तो देश का वंचित समाज आज विकास की नई ऊंचाई छू रहे होते।
मान्यवर, भारतीय भाषा आंदोलन विगत 69 महीने से देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कराने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहा है।  भारतीय हुक्मरान देश की जनता की आंखों में केवल अंग्रेजी को ही ज्ञान विज्ञान व विकास की एकमात्र भाषा बता कर पूरे देश को अंग्रेजी का गुलाम बनाये हुए है। इस देश की शिक्षा, रोजगार, न्याय, सम्मान व शासन पर एकछत्र अंग्रेजी का राज है। जबकि सच्चाई यह है कि पूरे विश्व के चीन, रूस, जर्मन, फ्रांस, जापान, टर्की, इस््रााइल सहित सभी स्वतंत्र व स्वाभिमानी देश अपने देश की भाषा में अपनी व्यवस्था संचालित करके विकास का परचम पूरे विश्व में फंेहरा रहे हैं।परन्तु भारत में अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी बेशर्मी से फिरंगी भाषा में ही न केवल राजकाज व न्याय व्यवस्था संचालित की जा रही है अपितु शिक्षा(चिकित्सा, यांत्रिकी, सामान्य)ही नहीं रोजगार व सहित पूरी व्यवस्था अंग्रेजी को ही पद प्रतिष्ठा व सम्मान का प्रतीक बना कर भारत व भारतीय संस्कृति को अंग्रेजियत के प्रतीक इंडिया का गुलाम बनाया जा रहा है।संसार के सारे देश जहां अपनी अपनी देश की भाषा में अपने देश में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन संचालित कर विश्व में अपना परचम लहरा रहे है। वहीं भारत उन्हीं अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी का गुलाम बन अपने देश के नाम, संस्कृति, सम्मान, लोकशाही, मानवाधिकार, प्रतिभाओं का निर्ममता से गला खुद बेशर्मी से घोंट रहा है। भारतीय भाषा आंदोलन का मानना है किसी भी स्वतंत्र देश की भाषाओं को रौंदकर विदेशी भाषा में बलात शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन देना किसी देशद्रोह से कम नहीं है।
आज देश में न्यायपालिका सहित पूरी व्यवस्था में अंग्रेजी का ही राज चल रहा है। देश में सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों में ही नहीं संघ लोकसेवा आयोग से लेकर शिक्षा, प्रतिष्ठा व रोजगार पूरी तरह से अंग्रेजी भाषा की दासता में जकड़ा हुआ है। इसी फिरंगी भाषा की गुलामी से देश को मुक्त कराने के लिए भारतीय भाषा आंदोलन तीन दशक से से निरंतर संघर्ष कर रहा है। भारतीय भाषा आंदोलन की सलाह है कि सरकार को भारत के हर उच्च न्यायालय में प्रांतीय भाषा में न्याय, शिक्षा, रोजगार प्रदान कर अंग्रेजी के कलंक को दूर करने का काम करे। इससे भारतीय भाषायें लागू होगी।
भारतीय भाषाओं को लागू करने हेतु  संसद ने एक प्रस्ताव पारित किया था, उसका नाम दिया गया संसदीय संकल्प। वह संकल्प कभी संसद के बाहर नहीं जा पाया। संसद के ओर संकल्पों की तरह यह संकल्प भी संसद की कैद में दर्ज हो चुका है। भारत में अनंतकाल तक अंग्रेजी के आरक्षण की संवैधानिक किलेबंदी बेशर्मी से चल रही है।
इसी कलंक को मिटाने के लिए भारत में अंग्रेजी को बलात थोपने के सबसे बडे़ केन्द,्र संघ लोक सेवा आयोग पर 16 अगस्त 1988 से विश्व के सबसे लम्बे धरने की शुरूआत हुई। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाऐं भारतीय भाषाओं में हो!  भाषा आंदोलनकारियों की इस मांग से सहमति जताते हुए 175 संसद सदस्यों ने भी अपने हस्ताक्षरों से युक्त ज्ञापन तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह को दिया था। 12 मई 1994 को पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह के नेतृत्व में देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेय, पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, चतुरानंद मिश्र, लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह व रामविलास पासवान सहित 4 दर्जन  शीर्ष राजनीतिक नेताओं/दलों का सामूहिक धरना संघ लोक सेवा आयोग के मुख्य द्वार पर दिया गया। इसमें राष्ट्रीय समाचार पत्रों के सम्पादकों, 50 से अधिक संसद सदस्यों, विधायकों, पूर्व राज्यपालों सहित अनेक सामाजिक संगठनों ने हिस्सा लिया। इसी दिन संसद के दोनों सदनों में सभी दलों ने मुखर होकर भारतीय भाषाओं के सवाल पर अपना पक्ष रखा। लेकिन संविधान के अनुच्छेदों में पद, पैसा एवं प्रतिष्ठा केवल अंग्रेजी वर्ग के लिए आरक्षित कर दिये जाने की किसी ने चर्चा नहीं की।  लिहाजा वह भाषायी आक्रोश हमेशा की तरह केवल रस्म अदायगी बन कर रह गया।
विवश होकर भाषा आंदोलनकारियों ने स्वयं संसद में भाषा के सवाल पर देश का ध्यान आकर्षित करने की योजना बनायी। 21 अप्रेल, 1989 एवं 10 जनवरी 1991 को आंदोलनकारी संसद में प्रवेश कर नारेबाजी की। 1991 में पर्चे फेंकने की घटना के बीच एक आंदोलनकारी भी दर्शक दीर्घा  से नीचे लोक सभा में कूद गया। नतीजा सिर्फ इतना निकला कि वह अपनी पसलियां तुडवाकर दो महीने अस्पताल में रहा और संसद ने 18 जनवरी 1968 के उस बेजान प्रस्ताव को पुनः अगले दिन ध्वनिमत से पारित कर अपने हाथ खडे़ कर दिये।   संघ लोक सेवा आयोग पर चल रहे निरंतर धरने को लगभग 14 वर्ष हो चुके थे। इसी बीच अनेक सार्वजनिक कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति से आंदोलनकारियों की सीधी झडपें भी हुई। अनेक विरोध प्रदर्शनों, आमरण अनशन एवं लम्बे धरने से आजीज आकर भारतीय भाषाओं को लागू करने के बजाय, अचानक सरकार की देखरेख में धरने को नेस्तनाबूद कर दिया गया, आंदोलकारियों का सामान, तम्बू आदि उखाडकर फेंक दिये गये। संसद द्वारा पारित प्रस्ताव को लागू करने के लिए चल रहे अनवरत सत्याग्रह को तहस-नहस करने की बर्बरतापूर्ण कार्यवाही पर किसी भी राजनीतिक दल एवं नेता ने अपना        विरोध नहीं जताया। संसद में भाषाओं के सवाल पर मुखर रहने वाले नेताओं ने भी अपने मुंह सिल लिए थे। संसद एवं सर्वोच्च न्यायालय ने भी सचमुच आंखों पर पट्टी बांध ली थी। अंग्रेजी की इन पट्टियों को सारे हिन्दुस्तानी मिलकर नोंचे!
भारतीय भाषा आंदोलन को देश के प्रधानमंत्री से आशा करती है कि जैसे आपने अंग्रेजों के जाने के  वर्षों तक भारतीय संस्कृति की आत्मा योग को देश व विश्व से वंचित करने के षडयंत्र को तोड़ कर विश्व भर में योग से आलोकित करने का सराहनीय कार्य करने का सराहनीय कार्य किया। उसी प्रकार आप मोदी जी, योगमय भारतीय संस्कृति की कल्याणकारी गंगा को संचारित करने वाली भारतीय भाषाओं व भारत को भी अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी की बैेडियों से मुक्ति दिला कर भारत को आजादी का परचम लहराने का यथाशीघ्र ऐतिहासिक कार्य करेंगे।
परन्तु दुख इस बात का है कि मोदी सरकार के नाक के नीचे भी देश की आजादी के इस ऐतिहासिक आंदोलन की सुनवायी होने की जगह आत्मघाती ढ़ग  से पुलिसिया दमन से भारतीय भाषा आंदोलन के धरने पर बार बार कहर ढाया जा रहा है। अब न्यायालय के आदेश का बहाना बना कर के द्वारा जंतर मंतर से राष्ट्रीय धरना स्थल को हटाया जा रहा है। जो लोकशाही पर किसी कुठाराघात से कम नहीं है। सरकार को चाहिए कि जो लोकशाही के ध्वजवाहक सूदूर अपने गांवों व प्रांतों में न्याय न मिलने के कारण न्याय की आश लगा कर देश के सर्वोच्च फरियाद स्थल पर आते है, उनकी मांगों के प्रति सहानुभूति पूर्वक सुनने तक का देश की सरकारें 72 साल में कोई तंत्र तक स्थापित कर पायी। कोई गलत व देशद्रोही व्यक्ति यहां पर धरने की आड़ में न बेठ कर संरक्षण ले इसके लिए भी कोई  पुलिसियां जांच तंत्र तक स्थापित नहीं है। इस कारण धरने में अनैक अवांछनीय तत्व काबिज हो जाते है। पुलिस प्रशासन को ऐसे तत्वों को बाहर खदेड़ने के बजाय उनको शर्मनाक संरक्षण देने देखे गया है। सरकारें वोट क्लब से लेकर जंतर मंतर, तालकटोरा चैक  से फिर जंतर मंतर पर धरना स्थल को उजाडने व बसाने में लगी रही परन्तु जनता के सर्वोच्च फरियाद स्थल पर आये फरियादियों की फरियाद सुनने का एक साधारण तंत्र तक स्थापित करने में सरकारें 72साल से पूरी तरह असफल रही।  आप लोकशाही के प्रति खुद को समर्पित बताते है।  आशा है आप सवा सौ करोड़ भारतीयों के मानवाधिकार, लोकशाही व संस्कृति की रक्षा के प्रतीक भारतीय भाषाओं को यथाशीघ्र आत्मसात करके देश को अंग्रेजी के कलंक से मुक्ति दिलाने का काम करेंगे।

भारतीय भाषा आंदोलन
देवसिंह रावत (अध्यक्ष )
सुनील कुमारसिंह (कोषाध्यक्ष) रामजी शुक्ला(धरना प्रभारी)   वेदानंद, मन्नु कुमार,  महेन्द्र रावत    खुशहाल सिंह बिष्ट   मोहन जोशी  मनमोहन शाह   पदमसिंह बिष्ट     कमल किशोर नौटियाल ,

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