Bageshwar Chamoli Dehradun उत्तराखंड

नंदी के नवजात बच्चे व विषाक्त खाने से हुई मोतों के जिम्मेदार है गैरसैंण राजधानी न बनाने वाले हुक्मरान

राजधानी गैरसैंण होती तो सीमान्त व पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को  बिना इलाज के बेमौत नहीं मरना पडता व सड़क पर बच्चों को जन्म नहीं देना पडता

देहरादून में पंचतारा सुविधाओं के मोह में जकडे नेता व नौकरशाहों ंसे उजड रहा है उतराखण्ड

देहरादून (प्याउ)। अगर प्रदेश की राजधानी गैरसैंण में बनी होती तो चमोली जनपद की नंदी को सडक पर नवजात बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता।  प्रसव पीड़ा से तडफती हुई गर्भवती महिला को सड़क के किनारे बच्चे को जन्म नहीं देना पडता। नवजात बच्चे को बिना इलाज से दम नहीं तोड़ना पड़ता। बागेश्वर के कफकोट में इस सप्ताह विषाक्त भोजन खाने से लोगों को बेमौत नहीं होती। उतरकाशी, टिहरी, चमोली, रूद्रप्रयाग, पौडी, अल्मोड़ा, पिथोरागढ़, बागेश्वर, चम्पावत के दूरस्थ ग्रामीणों को गंभीर बीमारी व दुर्घटना के बाद बिना इलाज के दम नहीं तोड़ना पड़ता। यह रोष भरी प्रतिक्रिया उतराखण्ड राज्य आंदोलनराजधानी गैरसैंण आंदोलन के वरिष्ठ ध्वजवाहक देवसिंह रावत ने सडक पर बच्चे को जन्म देने वाली प्रदेश को शर्मसार करने वाली घटना पर घडियाली आंसू बहा रहे प्रदेश के हुक्मरानों व नेताओं को देखते हुए कही।

उतराखण्ड राज्य आंदोलन व राजधानी गैरसैंण आंदोलन के वरिष्ठ ध्वजवाहक देवसिंह रावत ने उतराखण्ड की बदहाली व ऐसी शर्मनाक  घटनाओं के लिए अब तक तमाम सरकारों  व नेताओं को गुनाहगार बताया जिन्होने जनता की पुरजोर मांग के बाबजूद प्रदेश की राजधानी गैरसैंण को नहीं बनने दी और देहरादून में आस्तीन के सांप की तरह कुण्डली मारे हुए है। श्री रावत ने कहा कि  आज उतराखण्ड में ऐसी शर्मनाक स्थिति, पलायन व बदहाली के लिए कोई और नहीं यहां के वे तमाम सरकारें जिम्मेदार हैं जो प्रदेश की सत्तासीन रही। आज भी गैरसैंण में विधानसभा भवन बनने व तमाम सत्र होने के बाबजूद बेशर्म की तरह देहरादून में पंचतारा सुविधाओं व भ्रष्टाचार के मोह में उतराखण्ड के लोकशाही का गलाघोंट रहे है।
प्रदेश से चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार के अभाव में ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन करने से मजबूर नहीं होना पड़ता। राजधानी गैरसैंण में बनी होती तो पर्वतीय जनपदों में शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार की स्थितियों में भारी सुधार होता। यहां नेता, नौकरशाह व शासन प्रशासन पर्वतीय क्षेत्रों के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझता। परन्तु देहरादून में कुण्डलीमारे नेता, नौकरशाह दोनों पर्वतीय जनपदों की शर्मनाक उपेक्षा कर रही हैं। इसी कारण गांवों से चिकित्सालय, विद्यालय सब उजड सा गये है। विकासखण्ड मुख्यालयों में चिकित्सालय दम तोड रहा है। जिला चिकित्सालयों की हालत दयनीय है। वे किसी भी गंभीर बीमारी व दुर्घटना के इलाज करने में अक्षम है। ऐसे में लोग भगवान भरोसे पर्वतीय जनपदों में ंरह रहे है।
गौरतलब है कि उतराखण्ड प्रदेश के सीमान्त जनपद चमोली के घाट विकासखण्ड के घुनी गांव की गर्भवती 32 वर्षीया नंदी को  उसके विकासखण्ड घाट व  जिला चमोली के जिला चिकित्सालय गोपेश्वर में इलाज न मिलने के कारण मजबूरी में प्रसव पीड़ा से छटपटाते ही बस द्वारा श्रीनगर के बेस अस्पताल ले जाना पडा। श्रीनगर बेस अस्पताल पंहुचने से पहले प्रसव पीड़ा से बेहाल नंदी ने सडक के किनारे ही बच्चे को जन्म दे दिया। नवजात बच्चे की भी समय पर इलाज न मिलने पर दर्दनाक मोत हो गयी।
इस घटना से पूरे प्रदेश में रोष फैल गया। लोगों ने गोपेश्वर में जिला चिकित्सालय पर विरोध प्रदर्शन भी किया।
प्रशासन ने इस घटना की जांच के लिए एक कमेटी भी गठन करके दोषियों को सजा देने का आश्वासन देकर प्रदेश की मर्माहित जनता की आंखों में धूल झोंकने का काम किया। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सहित मंत्री विधायक सहित तमाम राजनैतिक दल घडियाली आंसू बहा रहा है।
गौरतलब है कि सीमान्त जनपद चमोली के घुनी(विकासखण्ड घाट) की 32 वर्षीया नंदी देवी पत्नी मोहन सिंह 4 दिसम्बर को 8 महिने की गर्भवती महिला को गोपेश्वर के जिला अस्पताल में ले जाया गया। जहां स्थिति देख कर चिकित्सकों ने बच्चे की घडकन कम होने की समस्या देख कर बडे अस्पताल ले जाने को कहा। गोपेश्वर से बडा अस्ताल जनपद चमोली व रूद्रप्रयाग में कहीं नहीं है। इसके बाद पौडी जनपद के श्रीनगर में बेस बडा चिकित्सालय, जहां चमोली व रूद्र प्रयाग के जिला अस्पतालों से बेहतर सुविधायें है, वहां ले जाने के लिए अस्पताल ने एंबुलेंस वाहन नहीं दिया। जबकि जनपद चमोली में 11 एंबुलेंस व 6 खुशियों के बाहन होने के बाबजूद गर्भवती की गंभीर स्थिति देखकर भी जिला चिकित्सालय गोपेश्वर ने एंबुलेंस से श्रीनगर भेजने का अपने दायित्व का निर्वहन नहीं किया। 5 दिसम्बर को प्रसव पीडा से तडफ रही नंदी को उसका पति मोहन मजबूरन बस से श्रीनगर ले जा रहा था। परन्तु श्रीनगर पंहुचने से पहले प्रसव पीडा से नंदी की हालत खराब हो गयी। बस चालक द्वारा बस से तिलणी में रिषिकेश-बदरीनाथ राजमार्ग की सडक पर उतार दिया। तिलणी में सडक के किनारे ही नंदी ने बच्चे को जन्म दे दिया। मोहन सिंह ने 108 सेवा से भी सम्पर्क किया।     परन्तु 108 सेवा भी समय पर नहीं आयी। समय पर उपचार न मिलने से बच्चे की मौत हो गयीं। बच्चे की दर्दनाक मौत हाने से उसके मां बाप का रो रो कर हाल बेहाल हो गया। बाद में 108 सेवा से नंदी को रूद्रप्रयाग चिकित्सालय में भर्ती कराया गया। जहां उसकी हालत में सुधार हो रहा है।
हकीकत भी यही  है कि सन 2000 में राज्य गठन के बाद प्रदेश के पर्वतीय जनपदों की शिक्षा, चिकित्सा व रोजगार की स्थिति में भारी गिरावट आयी। प्रदेश की तमाम सुविधायें व विकास मात्र देहरादून सहित 3 शहरी जनपदों तक सीमित रह गया। उतराखण्ड के सीमान्त जनपदों में इलाज की बेहतर सुविधायें न होने व अमानवीय जिला चिकित्सालय प्रशासन द्वारा प्रसव पीड़ा से तडफ रही गर्भवती महिला को एंबुलेंस न दिये जाने से बस द्वारा श्रीनगर बेस अस्पताल जाने के लिए मजबूर हुई महिला द्वारा सडक के किनारे बच्चे को जन्म देने की खबर से पूरे प्रदेश की जनता आक्रोशित है परन्तु प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित तमाम राजनैतिक दल घडियाली आंसू बहा रहे है। उतराखण्ड के अधिकांश पर्वतीय जनपद के गांव, विकासखण्ड व जिला मुख्यालयों में ही बेहतर चिकित्सा से वंचित है। इन सुविधाओं के अभाव में उनको देहरादून, हल्द्वानी, दिल्ली आदि चिकित्सालयों में जाना पडता है। यहां तक मरीज को ले जाने के लिए प्रशासन न एंबुलेंस उपलब्ध कराता व नहीं कोई 108 जैसा बाहन। जिसके कारण पर्वतीय जनपदों के आम ग्रामीण गंभीर बीमारी हालत में बेमौत दम तोड़ते है। चंद ही साधन सम्पन्न लोग ही बडे चिकित्सालयों तक पंहुच कर लुट कर इलाज करा पाते है।

About the author

pyarauttarakhand5