उत्तर प्रदेश

हरक सिंह की अप्रत्यक्ष चेतावनी के बाद भी बेफिक्र है मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत

स्वामी, तिवारी, खंडूडी, निशंक व हरीश रावत के पसीने निकालने वाले दिग्गजों को मेमना बनाया है त्रिवेन्द्र रावत ने

भाजपा आला कमान के आशीर्वाद से अभूतपूर्व बहुमत की सरकार चलाने वाले त्रिवेन्द्र ने पहली बार नेताओं व नौकरशाहों पर लगाया अंकुश

हरक ने खुद किया तिवारी सरकार को भाजपा के सहयोग से गिराने के असफल षडयंत्र का खुलासा
 

देहरादून(प्याउ)। उतराखण्ड सरकार के कबीना मंत्री हरक सिंह रावत द्वारा तिवारी सरकार को गिराने की एक असफल प्रयास का खुद ही रहस्योदघाटन करने को प्रदेश की वर्तमान भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र को एक अघोषित चेतावनी ही समझी जा रही है।परन्तु प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत पूरी तरह बेफिक्र है।

भले ही हरक सिंह रावत के बयान की गूंज प्रदेश ही नहीं देश में भाजपा व कांग्रेस के मठाधीशों के बंद कमरों में भी साफ सुनाई दे रही है। परन्तु प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत पर इसका रत्तीभर भी असर नहीं है। ऐसा नहीं कि हरक सिंह रावत कोई हवाई बात कह रहे हो। हरक सिंह रावत का प्रदेश के तमाम दिग्गज मुख्यमंत्रियों को पसीने निकालने का इतिहास रहा है। तिवारी सरकार को अस्थिर करने में उनकी क्या भूमिका रही उन्होने खुद ही बखान कर दिया। प्रदेश के अब तक के सबसे दबंग मुख्यमंत्री समझे जाने वाले हरीश रावत का तख्ता पलटने के असफल प्रयासका इतिहास देश में सुर्खियों में रहा। भाजपा के दिग्गज नेता खंडूडी, निशंक,  महाराज से उनका छत्तीस का आंकडा रहा। यही नहीं जिन विजय बहुगुणा के साथ उन्होने मिल कर हरीश रावत की सरकार को अपदस्थ करने के लिए भाजपा में सम्मलित हुए उन विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनने पर हरक सिंह रावत के विद्रोही बयान आज भी लोगों के जेहन में है।

प्रदेश में हरक सिंह रावत ही एक मात्र ऐसा नेता है जो भाजपा, बसपा व कांग्रेस के साथ राज्य गठन आंदोलन के संगठन चारों में प्रमुखता से रहा हो।

इन दिनों हरक सिंह की वह धमक भाजपा सरकार में कबीना मंत्री होते हुए नहीं दिखाई दे रही है जो तिवारी व हरीश रावत सरकार में उनकी रही। उनकी विधानसभा सीट कोटद्वार में नगर निगम की प्रत्याशी के चयन में भी उनकी कोई पूछ ही नहीं हुई। कोटद्वार नगर निगम में भाजपा प्रत्याशी की हार पर वे नैतिक जिम्मेदारी लेने के बजाय प्रदेश के मुख्यमंत्री व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को भी इस पर लपेट चूके है।

वर्तमान त्रिवेन्द्र सरकार में हरक सिंह रावत की ही नहीं तमाम मंत्रियों के साथ सभी भाजपा दिग्गजों की कोई पूछ नहीं है। यही नहीं जानकारों का कहना है कि कोई भी मंत्री अपनी मनमर्जी से अपने मंत्रालय के अधिकारियों का तबादला व नियुक्ति इत्यादि भी नहीं करा पा रहा है। इससे हरक सिंह रावत नाखुश समझे जा रहे है। ऐसे में हरक सिंह के तेवरों को देख कर लोग आशंका प्रकट कर रहे हैं कि कहीं लोकसभा चुनाव तक हरक सिंह वर्तमान सरकार के लिए परेशानी का सबक तो न बन जायें।
परन्तु वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत इन सब आशंकाओं व विद्रोही तेवरों को रत्तीभर भी भाव नहीं दे रहे है। त्रिवेन्द्र रावत न केवल तमाम मंत्रियों अपितु नौकरशाहों के साथ प्रदेश भाजपा के दिग्गजों के किसी भी दवाब को नजरांदाज करके कोई भाव नहीं देते है। त्रिवेन्द्र रावत केवल भाजपा आला कमान व अपने मन से ही शासन चलाते है। राज्य गठन के बाद स्वामी, कोश्यारी, तिवारी, खण्डूडी, निशंक, बहुगुणा व हरीश रावत सहित सभी अपने मुख्यमंत्री रहते हुए विद्रोही गतिविधियों व अपने मंत्रियों के साथ विधायकों के दवाब से परेशान रहे।
ऐसा नहीं कि प्रदेश में त्रिवेन्द्र सरकार को अपदस्थ करने की कोई मुहिम शुरू नहीं हुई। हकीकत यह है कि मुख्यमंत्री की ताजपोशी के पहले ही दिन से त्रिवेन्द्र सरकार को गिराने का षडयंत्र में प्रदेश में मुख्यमंत्री के पद के चकोर कर रहे है। परन्तु भाजपा आलाकमान के कडे रूख से इनको मुंह की खानी पडी। ऐसा नहीं कि हरक सिंह रावत ही असंतुष्ट है। यहां पर अधिकांश विधायक नाखुश है। खासकर भाजपा के बडे क्षत्रप व प्रदेश में शासन प्रशासन को अपने इशारे पर नचाने वाली जमात निरंतर त्रिवेन्द्र सरकार को अस्थिर करने का कोई अवसर छोड़ना नहीं चाहते। कभी चाय पार्टी के नाम पर तो कहीं कोई गीत, स्टींग और पुराने विवादों को हवा देकर। परन्तु भाजपा आलाकमान के कडे रूख से विरोधियों को अब तक मात ही खानी पडी। इसीलिए प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत किसी भी षडयंत्रकारी या विरोधी को भाव तक नहीं देते है।
त्रिवेन्द्र रावत प्रदेश के ऐसे पहले मुख्यमंत्री है जिन पर किसी मंत्री, विधायक, नौकरशाह के दवाब में काम नहीं करते। सबको उन्होने मेमना बना रखा है। इससे अधिकांश विधायक नाखुश है। परन्तु त्रिवेन्द्र अभूतपूर्व बहुमत से अधिक भाजपा आलाकमान के आशीर्वाद की बदौलत इन सब पर नकेल कसे हैं। वे किसी भी दुशाहसी को सबक सिखाने में पीछे नहीं रहते। यही नहीं उन्होने हर किसी विद्रोही की नकेल लगाने का प्रबंध भी कर रखा है। यह देख कर जनता बेहद खुश है कि चलो कोई तो ऐसा मुख्यमंत्री आया जिसने मुख्यमंत्री का एक बाल बुलंद करा हुआ है। परन्तु जनता की एक ही शिकायत मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र से है कि वे राजधानी गैरसैंण बनाने सहित तमाम राज्य  गठन की जनांकांक्षाओं की जो उपेक्षा कर रहे हैं। परन्तु मुख्यमंत्री अपने सत्तामद में ऐसे चूर है कि वे जन भावनाओं का सम्मान तक नहीं कर रहे हैं।

गौरतलब है कि हरक सिंह रावत द्वारा तिवारी सरकार का तख्ता पलटने की असफल दास्तान का खुलासा 4 दिसम्बर को उतराखण्ड की विधानसभा में उतराखण्ड के दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी को श्रद्धांजलि देते हुए करने से पूरे प्रदेश में हडकंप मचा हुआ है।  उतराखण्ड सरकार के कबीना मंत्री हरक सिंह रावत ने तिवारी को श्रद्धांजलि देते हुए तिवारी सरकार का तख्ता पलट करने की एक बड़ी कोशिश का खुद खुलाशा किया तो विधानसभा सत्र के पहले दिन खचाखच भरी विधानसभा में सत्तारूढ भाजपा सहित विपक्षी कांग्रेस सहित पूरे प्रदेश की राजनीति में हडकंप मच गया। क्योंकि हरक सिंह के इस रहस्योदघाटन से जहां सत्तारूढ भाजपा कटघरे में घिर गयी वहीं उनके इस मुहिम में सहभागी रहे सभी कांग्रेसी विधायक भी सहम गये कि कहीं हरक सिंह रावत उनके नाम भी उजागर न कर दे। जहां प्रदेश की राजनीति के मर्म जानने वाले विशेषज्ञ ही नहीं पक्ष विपक्ष के तमाम दिग्गजों को ऐसा लग रहा था कि प्रदेश की राजनीति में उथल पुथल करने के लिए सबसे बडे महाबली समझे जाने वाले  हरक सिंह रावत के इस बयान का असली निशाना कहीं वर्तमान त्रिवेन्द्र सरकार तो नहीं है। पूरे प्रदेश की खबरों में यह खबर सनसनी की तरह से खबरिया चैनलों में चली।
परन्तु हरक सिंह के बयान देते समय इन्हीं सब आशंकाओं से सत्तारूढ भाजपा के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत को छोड़कर अनेक नेताओं के चेहरे कुछ पल के लिए असहज से लगे। पर इस बयानबाजी के बाबजूद मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत पूरी तरह बेफ्रिक से दिखे।
देश के दिवंत दिग्गज नेता नारायणदत्त तिवारी को श्रद्धांजलि देते हुए वन मंत्री हरक सिंह रावत ने बड़ा खुलासा करते हुए कहा, कि जैनी प्रकरण का सच जानते हुए  भी तिवारी तटस्थ रहे, इसी से आहत हो कर  उन्होंने तिवारी सरकार को गिराने के लिए तब 28 विधायकों का इंतजाम कर लिया था। भाजपा नेताओं में प्रमोद महाजन और भगत सिंह कोश्यारी से बात कर 10-12 विधायकों को देहरादून के अलग-अलग ठिकानों पर ठहराया गया। इसकी भनक लगी तो विजय बहुगुणा एनडी के दूत बनकर उनके आवास पर आए। तब एनडी ने विजय बहुगुणा को भी साथ लेते हुए राज्यसभा भेजने का आश्वासन दिया। बहुगुणा रात 11 बजे उन्हें तिवारी के पास ले गए। तिवारी ने उनसे कहा कि आप भले ही मंत्री नहीं हों, लेकिन आप जो कहोगे उसे वे पूरा करेंगे। रात डेढ़ बजे तक यह मीटिंग चलती रही और उसके बाद सरकार गिराने का इरादा त्याग दिया।  इतना कुछ होने के बाद भी तिवारी ने उनके साथ हमेशा अच्छा व्यवहार किया। यहां तक कि जब जेनी प्रकरण के बाद उनका डीएनए टेस्ट हुआ तो उसकी जानकारी उन्हें तिवारी ने ही रात एक बजे फोन पर दी। तिवारी को स्वयं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने यह जानकारी सीबीआई के हवाले से दी थी। इसके बाद उन्होंने लैंसडौन, जेहरीखाल, सतपुली से लेकर रुद्रप्रयाग तक के लिए सैकड़ों करोड़ रुपए की घोषणाएं कराई, जो आखिरकार 2007 में उनकी जीत का आधार बनीं।

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