उत्तराखंड देश

पर्यावरण के साथ हिमालयी राज्यों के समग्र विकास व देश की सुरक्षा को भी सर्वोच्च प्राथमिकता दें सरकार व न्यायालय

एक एनजीओं द्वारा  उतराखण्ड के चारधाम को जोड़ने वाली सर्वकालीन सडक मार्ग (आॅल वेदर रोड ) पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार से मांगा दो सप्ताह में जवाब

 
नई दिल्ली(प्याउ)।एक तरफ चीन व पाक हमारी सीमाओं तक अपनी सैन्य स्थिति को मजबूत करने के लिए भारत से लगी सीमा पर मजबूती से सड़क, रेल व वायु मार्ग से जोड़ने का काम कर चूका है। चीन ने हिमालयी इस क्षेत्र में सड़क व वायु मार्ग का न केवल जाल बिछा कर अपनी सामरिक ताकत को मजबूत बना दिया है अपितु चीन ने इस विकट भौगोलिक स्थितियों को दरकिनारा करके हिमालयी सीमा पर रेल गाडी तक पंहुचा दी है। वहीं दूसरी तरफ  भारत आज तक अपने सीमावर्ती हिमालयी राज्यों में स्तरीय सडक मार्ग बनाने में भी असफल रहा। इसका सीधा असर देश की सामरिक ताकत पर पड रहा है। कभी कभार सरकारें जब देश की सुरक्षा व इन क्षेत्रों की जनता को मोटर मार्ग आदि विकास की परियोजनायें शुरू करती है तो उस पर रोक लगाने के लिए पर्यावरण आदि के नाम पर अवरोध खडे करके हिमालयी क्षेत्रों के विकास के साथ देश की सुरक्षा पर ग्रहण लग जाता है। युद्धस्तर पर बननी चाहिए इन परियोजनाओं ंके मार्ग में ऐसे अवरोधों से इन परियोजनायें समय पर का साकार होने के बजाय फाइलों में दम तोडती ही रहती है।
ऐसा ही नजारा उतराखण्ड में भी देखने में आया। देश के इस सीमान्त प्रांत में देश की सुरक्षा व जनता के विकास की दृष्टि से वर्तमान सरकार ने सर्वकालीन चारधाम सडक मार्ग परियोजना युद्धस्तर पर चल रही है। इस सडक पर मानको के अनुसार बने इसके लिए हरित प्रधिकरण ने व्यवस्था भी कर दी। परन्तु इसके बाबजूद इस मोटर मार्ग पर रोक लगाने का काम किया जा रहा है।
सर्वोच्च न्यायालय ने 26 नवम्बर को उतराखण्ड के चार धामों को जोड़ने वाली केन्द्र सरकार की सबसे महत्वपूर्ण ‘ सर्वकालीन  परियोजना (आॅल वेदर रोड परियोजनो) को मंजूरी देने के राष्ट्रीय अधिकरण के आदेश पर रोक क्यों नहीं लगाई जानी चाहिए? याचिकाकत्र्ता के अधिवक्ता ने न्यायालय से इस परियोजना पर तुरंत रोक लगाने का गुहार लगाते हुए आरोप लगाया कि इससे वहां दस ताप बिजली परियोजनाओं के बराबर का गंभीर नुकसान  पर्यावरण को  होगा, सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति आरएफ नरिमन और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने सिटीजंस फार ग्रीन दून नामक एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की याचिका पर सुनवाई करते हुए सलाह दी कि याचिकाकत्र्ता अपनी समस्या के साथ हरित अधिकरण द्वारा इस परियोजना की निगरानी के लिए गठित एक समिति के पास जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि कुछ ही समय पहले हरित अधिकरण ने उतराखण्ड के चार धामों को जोड़ने वाली केन्द्र सरकार की महत्वपूर्ण ‘ सर्वकालीन  परियोजना (आॅल वेदर रोड परियोजनो) को मंजूरी देते हुए इसकी निगरानी के लिए एक दर्जन से अधिक निगरानी समितियां गठित करने की। परन्तु इसके बाबजूद इस परियोजनाओं को साकार न होने देने के लिए अवरोध कदम कदम पर लगाये जा रहे है।
भारत की सबसे बडी समस्या यह है कि यहां की दिल्ली व राज्यों की राजधानी के वातानुकुलित कार्यालयों में देश के भाग्य विधाता बने मठाधीशों को देश की सुरक्षा, दूरस्थ, सीमावर्ती, पर्वतीय व हिमालयी क्षेत्रों की भौगोलिक परिस्थितियों से अनविज्ञ होने के कारण शहरी मानकों को ही थोपकर इन क्षेत्रों को विकास की मुख्य धारा से वंचित कर देते है। इससे यहां के लोग न केवल विकास की दौड में पीछे छूट जाते है अपितु जिन जंगलों, पहाडों,  जल व पर्यावरण की रक्षा वे अनंत काल से करते आये उन्हीं के संरक्षण के नाम पर उनके विकास का गला दिल्ली में बैठे शासन प्रशासन व न्याय के मठाधीश घोंटते रहें। हिमालयी राज्यों के लोग हैरान है कि पर्यावरण को बचाने के नाम पर जिस प्रकार से सरकारें पूरी घाटी को जल समाधी देकर गांव, खेत खलिहान, लाखों पेड़ पौधों को जमीदोज कर देते है। लोगों को जबरन उजाड देते है। इस अन्याय की रक्षा के लिए न कोई सरकार आगे आती है व नहीं कोई न्याय के मठाधीश आगे आते है। विकास के नाम पर जहां पूरा हिमालयी क्षेत्र के करोड़ों लोगों को बांधों, बाघों व भू,जल वन माफियाओं के लिए जबरन उजाड़ा जाता  रहा है। तब किसी न्याय व शासन के पुरोधा को कहीं पर्यावरण की याद नहीं आता। परन्तु जैसे ही  हिमालयी लोगों के विकास के लिए बनने वाली रेल, सड़क, नहर, विद्यालय, चिकित्सालय व शासन प्रशासन के कार्यालयों के बनाने पर देश के इन पुरोधाओं को पर्यावरण का हंटर चलाने में देर नहीं लगाते। उतराखण्ड में बांधों व बाघ अभ्यारणों का जाल सा बिछा है। टिहरी बांध के बाद अब पंचेश्वर बांध में प्रदेश को डुबोने व बर्बाद करने पर तुले है।  जनता के भारी विरोध के बाबजूद ऐसे दर्जनों बांध उतराखण्ड में बांधों से जल समाधी देने को उतारू है देश प्रदेश के भाग्य विधाता। ऐसी ही हालत देश के अन्य हिमालयी राज्यों की है। न तो यहां के लोगों के विकास को प्राथमिकता दे रही है व नहीं विकास कार्यो के कारण उनके हो रहे विस्थापन का निस्तारण ही मानवीय ढंग से किया जाता। इतना ही नहीं देश की सुरक्षा के प्रति भी घोर उदासीनता देखने में मिल रही है।

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