उत्तराखंड

उच्च न्यायालय में दो बार मुंह की खाने के बाद त्रिवेन्द्र सरकार ने जीती बदरी केदार मंदिर समिति की जंग

( प्यारा उत्तराखण्ड डाट काम ) मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति  के_एम_जोसफ व शरद शर्मा की संयुक्त खंडपीठ ने एकल पीठ के आदेश को पलटते हुए बदरी केदार मंदिर समिति को भंग करने पर लगायी मुहर

#नैनीताल (प्याउ)। 11 जुलाई को उच्च न्यायालय द्वारा बदरी केदार मंदिर समिति को भंग करने के 1 अप्रेल 2017 को जारी प्रदेश के त्रिवेन्द्र सरकार के आदेश पर मुहर लगा कर प्रदेश की #भाजपा_सरकार की हो रही किरकिरी पर विराम लगा दिया।
गौरतलब है कि प्रदेश में 2017 में हुए #विधानसभा _चुनाव के बाद सत्तारूढ भाजपा की #त्रिवेन्द्_ सरकार ने प्रदेश में #कांग्रेसी सरकार द्वारा नियुक्त किये गयी महत्वपूर्ण समितियों को भंग करने का कदम उठाया। इसी के तहत महत्वपूर्ण समिति बदरी केदारनाथ मंदिर समिति का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही त्रिवेन्द्र सरकार ने 1 अप्रेल 2017 को भंग कर दिया। सरकार के इस निर्णय को अलोकतांत्रिक व मंदिर समिति के संविधान को रौंदना वाला बताते हुए उच्च न्यायालय में सरकार के इस फरमान पर रोक लगाने के लिए गुहार लगायी।
उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति सुधांश धुलिया की एकलपीठ ने इस मामले की सुनवाई करके सरकार के मंदिर समिति को उसके कार्यकाल पूरा करने से पहले भंग करने के निर्णय पर रोक लगा दी। उच्च न्यायालय के इस निर्णय से कांग्रेस के शासन में गठित मंदिर समिति पुन्न जीवंत हो गयी।
उच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद सरकार ने 3 महिने बाद एक बार पुन्न 8 जून 2017 को मंदिर समिति के कानून को संज्ञान लेते हुए मंदिर समिति को फिर भंग कर दिया। इसके बाद मंदिर समिति के सदस्यों ने फिर उच्च न्यायालय में सरकार फरमान को चुनौती दी। इसकी सुनवायी करते हुए उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने फिर सरकार के फरमान को रद्द कर मंदिर समिति को बहाल कर दिया। इससे सरकार की काफी किरकिरी हुई।
सरकार ने एकल पीठ के इस आदेश को उच्च न्यायालय की संयुक्त खंडपीठ में चुनौती दी। इसका फैसला करते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के एम जोसफ और शरद शर्मा की संयुक्त पीठ ने 11 जुलाई को महत्वपूर्ण फैसला देते हुए एकल पीठ के निर्णय को पलटते हुए सरकार द्वारा मंदिर समिति को भंग करने के फरमान पर उच्च न्यायालय की मुहर लगा दी।

भाजपा के राज में कांग्रेसी नेता #गणेश_गोदियाल को विधानसभा चुनाव में पराजित करने के बाबजूद प्रदेश की प्रतिष्ठित बदरी केदार मंदिर सििमति के अध्यक्ष पर पर आसीन हुए देख कर सत्तारूढ़ भाजपा सरकार व भाजपा दिग्गजों के लिए नाक का विषय बन चूका था। अब देखना यह है कि उच्च न्यायालय में मात खाने के बाद भग बदरी केदार मंदिर समिति के सदस्य #सर्वोच्च_न्यायालय का द्वार खटखटायेंगे या चुपचाप भाजपा सरकार की सत्ता के हनक के आगे नतमस्तक हो जाते है? ऐसा नहीं है कि ऐसा कार्य केवल भाजपा ने ही ऐसा कार्य किया। जो भी राजनैतिक दल प्रदेश या देश की सत्ता में आसीन होते हैं वे पूर्ववर्ती सरकार द्वारा नियुक्त ऐसी समितियों, को भंग कर अपने नेताओं व चेहतों को इन पदों पर आसीन करती है। 11 जुलाई के उच्च न्यायालय के फरमान के बाद भाजपा की लाज आखिरकार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जोसेफ की अध्यक्षता वाली संयुक्त पीठ ने बचा ली, जिनके प्रदेश में पूर्ववर्ती #हरीश_रावत की सरकार को भंग करने की भाजपा की #मोदी_सरकार क निर्णय पर अंकुश लगा #भाजपा के मठाधीशों की ऐसी चूलें हिला दी कि उसका दंश आज तक भी भाजपा मठाधीशों के दिलों में रह रह कर उमडता है। देश के सर्वोच्च न्यायालय में दो बार न्यायमूर्ति के एम जोसफ के न्यायाधीश बनने की अनुशंसा को केन्द्र सरकार द्वारा रोक लगाने के पीछे भी भाजपा मठाधीशों की यही पीड़ा मानी जा रही है।

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