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संघ के प्रणव दाव से कांग्रेस, ममता व विरोधी चारों खाने चित ?

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मैं यहां देश और देशभक्ति समझाने आया हॅूः पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी

संघ संस्थापक डा बलिराम हेगडेवार भारत माता के महान सपूत -पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी

7जून को संघ मुख्यालय में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष के समापन कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कार्यक्रम में पधारने पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का स्वागत किया। संघ प्रमुख ने कहा कि सम्मानित व्यक्ति प्रणव मुखर्जी और संघ अलग अलग विचारधारा के है। उनके आने पर वेवजह चर्चा हो रही है। हिंदू भारत का भग्य तय करने का उतरदायी है। संघ केवल हिंदुओं के लिए नहीं अपितु सर्वसमाज के कल्याण के लिए काम करता है। समाज को संगठित करता है। भारत में जन्मा सभी व्यक्ति भारतीय है। एक भारतवासी दूसरे भारतवासी के लिए पराया हो ही नहीं सकता। हर भारतीय का पूर्वज एक है। मिल जुलकर रहना हमारा संस्कृति है। विविधता हमारी धरोहर है।हम विविधता में एकता को लेकर चलते रहे। संगठित समाज ही मजबूत राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। संघ लोकतांत्रिक सोच वाला संगठन है। सरकारें बहुत कुछ कर सकती है पर सबकुछ नहीं। हमें सामान्य जनता को बराबरी पर लाना होगा। देश में ऐसा सकारात्मक वातावरण बनाने वाले लोग चाहिए। शक्ति का संयमित सदप्रयोग के लिए शील की जरूरत होती है। अनियंत्रित व्यक्ति देश व सामज के लिए घातक होता है। हेगडेवार कांग्रेस के आंदोलन में जेल भी गये। हमें विचारों व मतों से कोई परहेज नहीं है। सत्पथ पर चलना व सबका सम्मान कर देश को मजबूत करना हमारा कार्य है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत की सरपरस्ती में मुख्य अतिथि के रूप में रात 8 बजे संबोधित करते हुए पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने संघ प्रमुख सहित तमाम उपस्थित जनसमुदाय का स्वागत किया।
नागपुर संघ मुख्यालय से प्रणव मुखर्जी के भाषण के मुख्याशं
देशभक्ति में सभी देशवासियों का योगदान है। मैं यहां देश और देशभक्ति समझाने आया हॅू।
हिंदुस्तान एक स्वतंत्र समाज है। भारत के दरवाजे सबके लिए खुले रहे। विदेशी यात्री हेनसांग और फाहयान के अनुसार हिंदू एक उदार धर्म है। दुनिया का पहला राज्य भारत है। हम एकता की ताकत को समझते है। सहिष्णुता हमारी सबसे बडी पहचान है। भेदभाव, नफरत से भारतीय पहचान को खतरा है। भारतीय राष्ट्रवाद की वैश्विक भावना रही है। 1800 साल तक भारत दुनिया में ज्ञान का केन्द्र रहा। देशभक्ति का अर्थ देश के प्रति श्रद्धा है। विजयी होने के बाद भी अशोक शांति का पूजारी था। नेहरू ने हा था कि सबका साथ जरूरी है। राष्ट्रवाद किसी जाति, धर्म व भाषा में नहीं बांटा जा सकता है। लोकतंत्र उपहार नहीं संघर्ष से मिला। हमारे देश में 7 धर्म, 122 भाषायें व 1600 बोलियां है। परन्तु एक विधान से संचालित होता है। विचारों में समानता के लिए संवाद जरूरी है। सहनशीलता हमारे समाज का आधार है। शांति की ओर बढने से समृद्धि मिलेेगी। बातचीत से हर समस्या का समाधान हो सकता है।
लोगों का कल्याण राजा का कल्याण होता है। हमें लोगों ंके विकास करने के लिए मिलजुल कर काम करना होगा। सबबकी खुशी के लिए काम करना चाहिए। हिंसा छोड़कर शांति से समस्या का समाधान होना चाहिए।

देशव्यापी प्रसार के लिए #मोदी ने #गांधी व #संघ ने #प्रणव_मुखर्जी की चली चाल

नई दिल्ली (प्याउ) 7 जून को पूर्व #राष्ट्रपति_प्रणव_मुखर्जी, नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में संघ के मुख्य वार्षिक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करेंगे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रखर विरोधी रहे प्रणव मुखर्जी कांग्रेस के वरिष्ठ व दिग्गज नेता रहे। भले ही कहने को राष्ट्रपति बनने के बाद नेताओं से अपेक्षा की जाती कि वे सक्रिय राजनीति से उपर उठ जाते हैं। परन्तु अभी तक #ज्ञानी_जेल_सिंह व #अब्दुल_कलाम को छोड़ कर कोई देश पर सेवानिवृत होने के बाद अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाये।

यह जगजाहिर है कि अखिल भारतीय स्तर पर कोई संघ का मजबूत व प्रभावशाली विरोधी है तो वह कांग्रेस है। भले ही #वामपंथी#मुस्लिम राजनेता संघ के घोर विरोधी हैं परन्तु इनका व्यापक पकड़ भारतीय समाज में नहीं है। वेसे संघ का विश्व स्तर पर विरोधी भारत में धर्मांतरण करने में दशकों से शिक्षा, चिकित्सा, आदिवासी, दलित व महिला आदि के नाम से जनसेवा में समर्पित होने का दावा करने वाली ईसायत की प्रचारक संस्थायें और अरब देशों से पोषित इस्लामी प्रचारक संस्थाये भी है। हाॅ कांग्रेस देश में सबसे अधिक समय तक राज करने वाली पार्टी है। खुद संघ के संस्थापक हेडगेवार जी भी पुरानी कांग्रेस से ही जुडे एक नेता रहे। डा हेगडेवार ने कांग्रेस को छोड़कर 1925 में #राष्ट्रीय_स्वयं_सेवक_संघ की स्थापना की। जिसे #अग्रेजदा लोग #आरएसएस कहते हैं और #राष्ट्रभक्त #संघ के नाम से पुकारते है।
वर्तमान समय में जिस प्रकार से #कांग्रेस ने देश व जनहितों की उपेक्षा करती रही उससे वह आज सत्ताच्युत हो चूकी है। देश में अंध तुष्टीकरण में लगी कांग्रेस ही एक ऐसा दल है जिसका अखिल भारतीय स्तर पर पूरे देश में दशकों से सर्व समाज में पंहुच विद्यमान है। उन समर्थकों सहित देश विदेश के सर्व सम्माज में संघ के बारे में सकारात्मक संदेश देने के उदेश्य से ही संघ ने कांग्रेसी दिग्गज रहे प्रणव मुखर्जी को अपना मोहरा बना कर मुख्य अतिथि बनाया। ताकि संघ विमुख लोगों के पास भी एक संदेश जाये कि संघ देशभक्त संगठन है।
लोग आशंकित है प्रणव मुखर्जी अगर नागपुर में अपने संबोधन में सीधे या संकेतों में #संघ_पर_प्रहार भी करते है(हालांकि इसकी संभावना ना के बराबर है), तो भी इसमें संघ का सकारात्मक संदेश जायेगा कि देखोें संघ अपने विरोधी विचारधारा को भी सम्मान देता है। क्योंकि संघ विरोधी आरोप लगाते है कि संघ #विरोधियों का सम्मान नहीं करते है।

संघ की इसी रणनीति को आत्मसात करके संघ के स्वयं सेवक रहे #नरेन्द्र_मोदी ने #प्रधानमंत्रीबनते ही देश विदेश में शांति का प्रतीक समझे जाने वाले #महात्मा_गांधी को तत्काल आत्मसात करके कांग्रेस के एकाधार पर एक प्रकार सेंघ मार दी। भले ही प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए महात्मा गांधी का ऐसा गुणगान नहीं करते थे जैसा गुणगान वे प्रधानमंत्री बनते ही कर गये। इससे उन्होने देश में करोड़ों गांधी के अनुयायियों तक अपनी पंहुच बनाने का माध्यम बनाया दूसरा गांधी को मानने वाले तत्कालीन #अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा का दिल जीतने का प्रयास किया। क्योंकि मोदी भी जानते हैं आम जनमानस में व्याप्त गांधी जी की छवि व #अमेरिका का वरदहस्त हुए बिना देश में लम्बे समय तक राज करना कठिन ही है। इसी कारण मोदी ने गांधी को सहारा बनाया। मोदी के मुंह से बार बार गांधी को महिमामण्डित होते देख कर संघ व भाजपा के पुराने नेता भी हैरान है। ठीक उसी प्रकार संघ ने देश में विरोधियों में ंअपनी छवि को सुधारने के साथ संघ से दूरी बनाने वाले समाज का भी दिल जीतने के लिए कांग्रेसी दिग्गज नेता रहे पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का कार्ड चला। वेसे संघ को अपने मुख्य कार्यक्रम में देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति व प्रधानमंत्री जैसे शीर्ष पदों पर आसीन अपने स्वयं सेवक को संघ मुख्यालय में सम्मलित होने का सहज फरमान सुनाने में तनिक मेहनत तक नहीं करनी पड़ती। परन्तु संघ ने चतुराई से अपने विरोधी रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को मुख्य अतिथि बनाया। इससे एक तो संघ ने प्रबल विरोधी तबके में अपना सकारात्मक संदेश देने का काम किया। दूसरा संघ ने अपनी राजनैतिक शाखा भाजपा के बंगाल में विस्तार का दाव चला। प्रणव मुखर्जी विख्यात बंगाली है। प्रणव मुखर्जी द्वारा संघ की सराहना किये जाने के बाद संघ के खिलाफ कांग्रेस या ममता बनर्जी, मुंह भी खोले तो उनका प्रभाव आम जनमानस में नहीं पडेगा।
प्रणव मुखर्जी कितने भारतीय है, यह साबित होता है कि देश की शीर्ष राजनीति में छह दशक तक रहने के बाबजूद वे भारतीय भाषा में संवाद करना अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ समझकर अंग्रेजदा ही बने रहे। वहीं कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी विदेशी होते हुए भी देश की भाषा को आत्मसात कर गयी परन्तु प्रणव दा अपने अंध अंग्रेजी मोह को त्यागने के लिए तैयार नहीं रहे। प्रधानमंत्री न बन पाने का एक कारण प्रणव दा खुद को हिंदी न आना भी मानते रहे। देश की राजनीति व नौकरशाही में अंग्रेजदाओं का मजबूत शिकंजा के कारण भारत आज भी इंडिया व अंग्रेजी के शिकंजे में जकड़ कर संसार का भ्रष्टतम खुद को मिटाने वाला देश बना हुआ है।
प्रणव मुखर्जी संघ को देश हित के प्रतिकुल बताने वाले शीर्ष नेता है। आज भी उनका नजरिया बदला नहीं अपितु वे जीवंत बने रहने के मोह में संघ के मुख्य कार्यक्रम में संघ मुख्यालय नागपुर पंहुच गये है। वे संघ के पक्ष में बोले या विरोध में इससे ज्यादा अंतर नहीं पड़ने वाला। वेसे संघ के खिलाफ बोलेगे क्या? वे चतुर राजनेता रहे, अवसरों को देख कर आयोजकों या मेजवान का दिल जीतने की कला में अधिकाशं सफल राजनेता मंझे होते है। तभी तो देश के सर्वोच्च पद पर आसीन रहे।
विरोधी भले संघ को #मराठी_ब्राह्मणों का संगठन बताये पर संघ तो राष्ट्र के समर्पित संगठन है। भारत को मजबूत बनाने के लिए खुद को समर्पित करने वाले भारतीयों का संगठन है। जो जाति, धर्म, क्षेत्र व लिंग के भेद से उपर उठ कर केवल भारत व भारतीय संस्कृति की मजबूती के लिए काम करता है। संघ के बारे में केवल भारत विरोधी #इंडियन ही बोलते है। संघ का विरोध वे लोग करते हैं जिनको #भारतीय_संस्कृति से नहीं अपितु भारत विरोधी तत्वों व देशों का संरक्षण है।

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