देश

अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने के लिए संसद में कानून बनाये सरकार

अयोध्या में बाबरी या कोई और मस्जिद या इस्लामिक संस्था नहीं होगी

 विहिंप के आंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष डॉ प्रवीण तोगड़िया ने उठाया सवाल 

नई दिल्ली(प्याउ)।भाजपा सरकार द्वारा अयोध्या में राम मंदिर पर पूरा यू टर्न अयोध्या में बाबरी बनवाकर सेक्युलर दिखने की बड़ी योजना तो नहीं, यह सवाल ९ अप्रैल को विहिंप के आंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष डॉ प्रवीण तोगड़िया ने उठाया। कहा, “ऐसा भय हिंदुओं के मन में पिछले कुछ सालों से और ४ सालों से और भी ज्यादा आया है। राम मंदिर आंदोलन / अभियान से जुड़ें लोग और आम हिंदू अब सकते में हैं कि अयोध्या में कहीं बाबरी ना कड़ी हो जाए । ” ऐसे भय के उन्होंने कुछ कारण भी दिएँ :

१) अब सत्ता में बैठे कहते हैं, ‘हम न्यायालय के निर्णय की राह देखेंगे।” यह अपने में ही बड़ा यू टर्न और पहले से स्वीकृत भूमिका से और कृतियों से सम्पूर्ण विरोधी भूमिका है।

२) पहले जब भी राम मंदिर के लिए आंदोलन, कार्यक्रम किएँ गएँ, जिन में भाजपा भी सम्मिलित थी, भाजपा ने जब प्रस्ताव में वादा किया कि राम मंदिर पर संसद में कानून बनाएँगे जब पूर्ण बहुमत आएगा, तब भी किसी ना किसी न्यायालय में मामला था ही।

३) अंग्रेज़ों के काल से और पहले भी हिंदू  अयोध्या में राम मंदिर के लिए अनेकों आंदोलन कर ही रहें थे। लेकिन १९८२ में उत्तर प्रदेश में इस मुद्दे पर छोटा लेकिन योजनाबद्ध आंदोलन संघ परिवार द्वारा हुआ, तब भी न्यायालय में मुक़दमा था ही। संसद में कानून की बातें  शुरू ही थी।

४) फिर १९८६ में न्यायालय ने विवादित स्थल के तालें खुलवाकर हिंदुओं को पूजा की अनुमति दी। तब के प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने तालें खुलवाएँ।  तब भी मामला न्यायालय में चल ही रहा था।

५) मुलायम यादव की उत्तर प्रदेश में सरकार थी तब १९८९ में संघ परिवार  सम्बंधित संगठनों ने विहिंप भाजपा सहित अयोध्या में कारसेवा का बड़ा अभियान चलाया। राज्य सरकार ने कारसेवकों पर गोलियाँ चलायी। कई हिन्दुओं ने अपने प्राण राम मंदिर के लिए तब न्योछावर किएँ। ये सब हुआ, तब भी तो न्यायालय में मामला था।

६) जिसे अधिक प्रसिद्धि मिली वह १९९२ की रथयात्रा जो आडवाणी जी ने सोमनाथ से शुरू की, इस के रथ पर सिर्फ शुरुआत में आज के पीएम मोदी जी थे, जिन के कार्यकाल में आज कहा जा रहा है कि आंदोलन या संसद में कानून नहीं क्यों कि मामला न्यायालय में है ; विश्व हिन्दू परिषद्, संघ परिवार, भाजपा, प्रमोद महाजन जी, भाजपा के नेता सब ने साथ बैठकर यह योजना बनायी थी। आडवाणी जी रथ पर थे तो राजमाता विजयाराजे सिंधिया जी, डॉ मुरली मनोहर जोशी जी ऐसे शीर्ष नेता भारत के अन्य क्षेत्रों में यात्रा कर राम मंदिर के लिए लोगों को जगा रहें थे। इतना बड़ा आंदोलन देश विदेशों में हिन्दुओं को जगाकर किया और करवाया गया, तब भी तो न्यायालय में मामला था ही। इस आंदोलन में तब के उत्तर प्रदेश सीएम कल्याणसिंग जी ने कोई भी बहानेबाजी ना कर अपने पद का शान से त्याग किया था।

७) अयोध्या का १९९२ का आंदोलन ऐतिहासिक था। रथ पर सोमनाथ में चढ़कर उतर गएँ थे, वे अयोध्या नहीं गएँ थे, आज तक नहीं गएँ। विश्व हिन्दू परिषद् के नेता, कार्यकर्ता अशोक जी सिंघल के नेतृत्व में और बाकी राज्यों के नेताओं के साथ अयोध्या में थे। अयोध्या में वाजपेयीजी, आडवाणी जी, महंत रामचंद्र परमहंस जी, महंत अवैद्यनाथ जी, साध्वी ऋतम्भरा जी, डॉ जोशी जी, साध्वी उमा जी लाखों की संख्या में आएँ हिन्दुओं को सामने से मागदर्शन कर रहें थे। बालासाहेब ठाकरे जैसे बड़े हिन्दू नेता अपने  पूरा समर्थन और लोग वहाँ दे चुके थे। कई हिन्दू संगठन साथ थे। आम हिन्दुओं का सैलाब ही इतना जबरदस्त था कि गुम्बद गिर गया। उस  सैंकड़ों रामभक्त हिन्दू दबकर मर गएँ। गोलियों में कई मरें जो राज्य सरकारने नहीं चलाई थी। भारत के कोने कोने से हिन्दू वहाँ थे। कई परिवारोने अपने कमाऊं बेटे खोएँ।  तब भी तो मामला न्यायालय में था। संसद में कानून और मंदिर वही बनाएँगे यह इतना बड़ा परिणामकारी आंदोलन संघ परिवार ने, विहिंप, भाजपा ने मिलकर किया। वचन था भाजपा का लिखित में, प्रस्ताव में : संसद में बहुमत आएगा तब राम मंदिर का कानून बनाएँगे।

८)  फिर १९९३ में कांग्रेस की केंद्र सरकारने ‘अयोध्या भूमि अधिग्रहण बिल १९९३’ संसद में पारित कर दिया। यह बड़ा पेंच है। जिस पक्ष को विवादित ज़मीन न्यायालय से मिलेगी उसे सिर्फ ११०० वर्ग मीटर जमीन मिलेगी और हारनेवाले पक्ष को बची हुयी सभी ६७ एकड़ जमीन मिलेगी जो सटकर है। मतलब यह कि  हिन्दू जीतेंगे तो भी भव्य (??!!) राम मंदिर सिर्फ ११०० वर्ग मीटर जितने छोटे भाग में बनेगा और बगल में बड़ी बाबरी (मस्जिद) बनाने के लिए खुली छूट। न्यायालय के निर्णय की बात कर हिन्दुओं को बरगलाने वालों को यह पता ही नहीं, ऐसा नहीं। और जब तब यह बिल बना, तब भी न्यायालय में मामला था।

९) इसीलिए सभी हिन्दू संगठनों से माँग यही थी और है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का कानून संसद में तुरंत पारित हो और १९९३ का अन्यायकारी भूमि अधिग्रहण बिल खारिज हो। लेकिन हजारों नए कानून ४ सालों में बनें, हजारों खारिज कर कचरे में डालें गएँ ; लेकिन राम अभी भी फटे तम्बू में बिना संसद में कानून के !

१० ) राम मंदिर के १९९२ के भव्य आंदोलन का ही परिणाम था कि जल्द ही भाजपा केंद्र में सत्ता पर आयी; पूर्ण बहुमत नहीं था, कई पक्षों  समर्थन की एनडीए सरकार थी। लेकिन हिन्दू मतों का प्रभाव स्पष्ट था और वह राम मंदिर आंदोलन से ही था। तब संसद में कानून की राह देखनेवाले हिन्दुओं को कहा गया, पूर्ण बहुमत आएगा तब अवश्य संसद में कानून बनाएंगे। एक बड़े संगठन का वादा था जो २००४ तक चलता रहा।

११) संघ  भाजपा की सरकार से राम मंदिर पर संसद में कानून की तीव्र अपेक्षा हिन्दुओं की  थी,इस का एक बड़ा आधार था। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में १९८९ में पालमपुर में प्रस्ताव पारित हुआ था : संसद में पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी तो अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने का कानून बनाएँगे (इस की प्रत यहाँ जोड़ी है ) भाजपा नाम के एक राष्ट्रीय संगठन का यह प्रस्ताव वचन था, किसी एक व्यक्ति का वादा नहीं था। व्यक्ति से संगठन बड़ा ; कह रहें हैं ना ? तो संघ से जुड़े भाजपा इस संगठन का प्रस्ताव किसी सत्ताधारी व्यक्ति के आगे बौना हो गया ? हिन्दुओं  बड़ा वचनभंग करते हुए अब साल बीतें। हिन्दू अभी भी टकटकी लगाएँ बैठा है, आज बनेगा, कल बनेगा, संसद में कानून बनेगा। लेकिन नहीं बना। इस एक वादे पर हजारों हिन्दुओं ने  अपने प्राण दिएँ, कई जेल में सड़ रहें हैं, कई हिन्दू नेताओं को मीडिया द्वारा बॉयकॉट किया करवाया गया; लेकिन सभी हिन्दू उस एक वादे पर भरोसा कर मत दे बैठे, राज्यों में जीता दिया और फिर केंद्र में बहुमत मिला। आज भी वादा पूरा नहीं। जब वह प्रस्ताव पालमपुर में पारित हुआ तब भी तो न्यायालय में मामला था। 

१२) फिर से २००२ में अयोध्या में कारसेवा आदि किएँ, करवाएँ गएँ। चुनाव जो आ रहें थे। अयोध्या से वापस निकलें गुजरात के ५६ रामसेवक हिन्दुओं को साबरमती एक्सप्रेस में गोधरा स्टेशन में ज़िंदा जलाया गया। भाजपा के वादे पर भरोसा कर अयोध्या गएँ थे वे। उस के बाद गुजरात में आम हिन्दू रस्ते पर था।

१३) उन ५६ हिन्दुओं के अलावे ३०० से ज्यादा हिन्दू भी तब गुजरात में राम के लिए मारें गएँ, जो गुजरात सरकार की पुलिस  गोलियों से मारें गएँ और बड़े शान से सरकारी प्रवक्ता यह मीडिया में कहते रहें। हजारों हिन्दू आज भी जेलों में तड़प रहें हैं जो राम मंदिर के वादे  पर भरोसा कर बैठे हैं । काश्मीर में जिहादियों पर के मुकदमें वापस लेकर उन्हें आर्थिक  पैकेज और हिन्दू जेलों में, यह तो वादा किसी प्रस्ताव में नहीं था। हिन्दुओं  पर जो सत्ता में आएँ, आज वादाखिलाफी पर उतर आएँ; यह भूलकर कि चुनावी जीत मतदाता सूचि और ईवीएम का खेल है और हिन्दू भरोसे का बहुमत, जो आज टूट रहा है।

१४) हजारों हिन्दुओं ने अपने प्राण दिएँ, युवाओं ने अपनी जवानी दी, कई परिवारों ने अपनों को खोया ; सिर्फ इसी भरोसे पर कि हमारे मतों से सत्ता पर आकर जब केंद्र में बहुमत मिलेगा तब वचन के अनुसार भाजपा सरकार राम मंदिर का कानून संसद में बनाएगी। अलाहाबाद उच्च न्यायालय के २०१० के निर्णय के बाद तो यह आशा पल्लवित हुयी थी। २०१४ में भारी बहुमत से हिंदुओंने भाजपा को केंद्र की सत्ता दी।

१५)  ४ साल बीत गएँ ; राम मंदिर के कानून का कोई दूर दूर तक ठिकाना नहीं। पूछते हैं, तो कहा जाता है, न्यायालय में मामला है। इतने आंदोलन पहले संघ परिवार के विहिंप, भाजपा द्वारा किएँ और करवाएँ गएँ तब भी न्यायालय में मामला था। पालमपुर में भाजपा कार्यकारिणी ने ‘पूर्ण बहुमत मिलेगा तो संसद में राम मंदिर का कानून बनाएंगे’  ऐसा प्रस्ताव पारित किया, तब भी तो न्यायालय में मामला था। लेकिन तब राम मंदिर के लिए आंदोलन और प्रस्ताव उन्हें उचित लगें, क्यों कि तब हिन्दुओं के मतों से चुनाव जीतने थे। विविध राज्यों के और केंद्र के। लेकिन अब सत्ता मिली तो हिन्दुओं के साथ ऐसा धोखा कर न्यायालय  की बहानेबाज़ी कर रहें हैं। चुनावों के लिए हिन्दुओं  उपयोग किया और फिर सत्ता मिली तो हिन्दू कचरे के डिब्बे में ?

१६) अब हिन्दुओं ने बहुत राह देखी।  पिछले ४ सालों में हमने भी शुरुआत में राह देखी। आतंरिक बैठकों में चर्चा करने का प्रयास किया, लेकिन राम मंदिर पर संसद पर कानून के विषय पर कान पर मोटे पर्दे ओढ़ें बैठी रही केंद्र सरकार। सन्माननीय साधू संत इस विषय पर प्रधानमन्त्री जी से मिलने गएँ ; कोई प्रतिसाद नहीं। अब हिन्दू समझ चुकें हैं, राम मंदिर के नाम पर हिन्दुओं को जगाना, आंदोलन कराना सिर्फ मतों के लिए शातिर चाल थी। हिन्दू मतों  धार्मिक हिन्दुओं को बरगलाकर मत ही लेने थे। ‘राम हमारी आस्था का विषय है; राजनीति का नहीं,’ ऐसा गोल गोल कहनेवाले भूल गएँ कि भाजपा ने ही पालमपुर में रेसोलुशन (प्रस्ताव) पारित किया है; लेकिन लोग नहीं भूलें।

१७) समय समय पर जब जब कहीं भी चुनाव आते हैं, तब इस राजनीतिक पक्ष को अचानक भगवान् राम याद आते हैं। फिर राम शब्द के हजारों उपयोग शुरू। राम का डाक टिकट, राम का टूरिजम सर्किट, शरयु तट पर राम की भव्य प्रतिमा जो कॉर्पोरेट पैसे से बनेगी, रामनवमी पर कहना – गांधीजी के जीवन में राम का महत्त्व था, मीडिया पर चर्चाएँ लगवाना जिसमें बाकी राजनीतिक पक्ष हिन्दू विरोधी दिखें और भाजपा उन की तुलना में ‘हिन्दू’ वाली दिखें। करना कुछ नहीं, हिन्दुओं को जेल भेजना, जलील करना और गोल गोल बोलकर हिन्दुओं के मतों के लिए कहानियाँ चलाना। इससे अयोध्या में राम मंदिर नहीं बनेगा। बनाना ही नहीं हैं उन्हें। सिर्फ प्रतीकात्मक राम राम करे रहना है। पीढ़ियां बदल जाती हैं; युवाओं को इतना सारा वादाखिलाफी पता होता नहीं। फिर सोशल मीडिया में हिंदुत्व के मुद्दों पर गंभीरता से माँग करनेवालों को ‘भक्तों’ द्वारा गाली गलोच और इवेंट्स। हिंदू अब समझ गया है।

१८) गले तक आता है, तब कहते हैं, हमें मत विकास के लिए मिले थे, हिंदुत्व के लिए नहीं। हिन्दू भोले हैं; मूर्ख नहीं।  राह देखी हिंदुओंने। युवाओं को रोज़गार, अच्छी सस्ती शिक्षा, सभी को आरोग, किसानों की खुशहाली, महिला सुरक्षा, सीमा सुरक्षा, कम महंगाई  आदि। ४ सालों में इसमें से कुछ भी नहीं हुआ, जिस के नाम पर हिन्दुओं के महत्त्व के मुद्दों को दूर फेंक दिया गया था। ना विकास हुआ, ना राम मंदिर बना। वादा खिलाफी हर मुद्दे पर हुयी।

१९) क्यों कह रहा हूँ मैं ? मीडिया, सोशल मीडिया, समाज के लोग इन में यह बदनामी झूठ फैलाया जा रहा है कि तोगड़िया मोदी जी का घोर विरोधी है इसलिए ऐसे हिंदुत्व वाली राम बाम की माँगें करता रहता है। एक बार एक बात स्पष्ट कर दूँ : मोदी जी तोगड़िया के लम्बे समय से मित्र थे, आज भी मैं उन्हें बड़ा भाई कहकर पत्र लिख चूका हूँ। जब मोदी जी पीएम ही क्या, सीएम भी नहीं थे, तभी से हम यही माँगें उठाते आएँ हैं। किसी एक व्यक्ति ने नहीं, जिस  विचारधारा के लिए हम सब कुछ छोड़कर निकलें उस विचारधारा से तब जुड़े संगठन भाजपा ने १९८९ के प्रस्ताव में राम मंदिर पर संसद में कानून का वचन दिया हुआ है। जिस के भरोसे हजारों हिन्दू वीरमृत्यु पा गएँ। अब अपने ही पक्ष के वचनभंग के लिए क्षमा न मांगकर किसी एक व्यक्ति या हिन्दुओं को इस तरह टारगेट करना यह बेईमानी है। संघ परिवार ने जब जब राम मंदिर के लिए आंदोलन किएँ, जब भाजपा ने प्रस्ताव पारित किएँ तब भी न्यायालय में मामला था ही। हिन्दुओं को जगाने का काम कई दशकों से हिन्दू संगठन करते आएँ, राम मंदिर आंदोलन का उस में बड़ा योगदान है। उसीसे हिन्दू मत एक हुएं और भाजपा जीत गयी। हिंदुत्व आग्रही हिन्दुओं को ‘पुराने खयालात के’ ‘आउटडेटिड ‘, पागल कहना और उस के द्वारा न्यू इंडिया में और  विदेशों में सेक्युलर दिखना यह फैशन हुयी है। लेकिन भारत और हिन्दू समाज ऐसे चमचमाते इवेंट्स, विदेशी मेहमाननवाज़ी, न्यू इंडिया, बड़े विज्ञापन इन सभी से बहुत विशाल, समझदार और सुलझा हुआ है।

२०) भारत में गाँवों कस्बों में लाखों हिन्दुओं से मिलते हैं तो यही पता चलता है कि वे कितने आक्रोशित,दुखी हैं इस वादा खिलाफी से। अब हिन्दुओं को यह आशंका है कि सेक्युलर दिखने के लिए किसी भी हद तक जाने की इस पक्ष की आदतों के कारण कहीं अयोध्या में बाबरी ना कड़ी कर दी जाएँ। क्यों कि संसद में राम मंदिर का कानून अभी भी नहीं बना और न्यायालय का बहाना दिया जा रहा है। भगवान् राम कोई नीलामी या लें दें की वस्तू नहीं, जो एक जगह राम मंदिर और पास में मस्जिद बनें। नहीं चलेगा। ऐसी नाइंसाफी के लिए हिन्दुओं ने इतने सालों से मत नहीं दिए थे भाजपा को। कहा जाता है,’ तो फिर क्या कांग्रेस को जिताएंगे क्या ? ‘दूसरा बुरा है, इसलिए पहला अच्छा नहीं होता। हिन्दू अब वचनभंग से ऊब चूका है।

२१)  और एक आशंका अब हिन्दुओं में है कि विकास के और सुरक्षा के हर पैमाने पर फजीहत होने के बाद अब फिर से राम मंदिर के लिए कोई आंदोलन कर के फिर से हिन्दुओं को मरवाया जाएगा और चुनावों में  हिन्दू मतों का आधार लेकर, जीतकर फिर से राम तम्बू में और हिन्दू कचरे के डिब्बे में। अब और नहीं सहेंगे हिन्दू। संसद में कानून पारित करें सरकार : अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने का का और अयोध्या में बाबरी या कोई और मस्जिद या इस्लामिक संस्था कहीं नहीं होगी। यह कानून बनेगा अभी, तो ही हिन्दू भरोसा करेगा।

About the author

pyarauttarakhand5