उत्तराखंड

अधिकारी व उप्रेती के गठजोड़ से गढ़वाल भवन के चुनाव में मिली मोहब्बत राणा पैनल को एक तरफा जीत

1 अप्रैल को गढवाल हितैषिणी चुनाव 2018,  कम हुआ मतदान, 4300मतों में से केेेवल 1444मत पडे

 

मतदान के बाद जो परिणाम आये उनके अनुसार प्रमुख पदों पर मोहब्बत राणा वाले पैनल 3 को एकतरफा सफलता मिली।

गढवाल भवन के अस्तित्व को बचाने के लिए चुनाव कराने से बेहतर होता आपातकालीन कमेटी
सक्षम नेतृत्व न बनने देने का खमियाजा भोग रहा है दिल्ली का गढवाल भवन

 

देवसिंह रावत

1 अप्रैल को गढवाल हितैषिणी चुनाव 2018 में भले ही भारी  कम हुआ मतदान हुआ। गढवाल भवन के इस बार के कुल करीब  4300मतों में से केेेवल 1444मत पडे। इस कम मतदान में भी मोहब्बत राणा वाले नम्बर तीन पैनल को एक तरफा जीत मिली। इसके बारे में गढवाल भवन की राजनीति को करीब से जानने वालों का मानना है कि गढवाल भवन में डेढ दशक तक सीधे एक दूसरे के प्रबल विरोधी रहे विक्रम अधिकारी व बृजमोहन उप्रेती का गठजोड़ से बने पैनल 3 को भारी विजय मिली। हालांकि पैनल तीन को पूर्व महासचिव महावीर सिंह राणा का भी समर्थन था। संसाधनों व सम्पर्क में बेहतर साबित हुए पैनल 3 ने पैनल 2 ेको सीधे टक्कर में पराजित किया। हालांकि चुनावी दंगल में पैनल नम्बर 1 भी रहा। परन्तु मतदान से पहले से ही चुनावी समीक्षक टक्कर पैनल 3 व 2 में बता रहे थे। गढवाल भवन से चुनावी परिणामों के बारे में अनिल पंत व मोहन सिंह रावत ने जानकारी दी। इसका पूर्व आंकलन वरिष्ठ पत्रकार खुशहाल जीना ने मतदान का रूझान देखते ही पैनल 3 के विजय की भविष्यवाणी कर दी थी। हरीश थपलियाल के साथ दिन भर प्यारा उत्तराखण्ड के सम्पादक व अमर संदेश के सम्पादक अमर चंद दिन भर चुनावी प्रक्रिया पर नजर रखे हुए थे। मेरा साफ मानना था कि गढवाल भवन में सबसे अधिक मत पूर्व अध्यक्ष रहे विक्रम अधिकारी व बृजमोहन उप्रेती का गठजोड़ मजबूत नजर आ रहा था। हालांकि गढवाल भवन में पैनल 2 ने कम संसाधनोें से मजबूत पैनल 3 को चुनावी टक्कर दी।

गढवाल हितैषिणी सभा का यह चुनाव भी गत वर्ष की भांति चुनाव अधिकारी शिवचरण सिंह रावत के कुशल देख रेख में सम्पन्न हुए। कभी गढवाल भवन के चुनाव में भारी तनाव के कारण त्वरित कार्यवाही बल लगाना पड़ता था। इस साल का चुनाव भले तीन पैनलों के बीच में हुआ परन्तु शांतिपूर्ण ढंग से हुआ। इस बार त्वरित कार्यवाही बल तैनात नहीं की गयी थी। इसके साथ चुनाव अधिकारी की सजगता से कुछ फर्जी मतदान करने की कोशिशों को विफल किया गया।

मतदान के बाद जो परिणाम आये उनके अनुसार प्रमुख पदों पर मोहब्बत राणा वाले पैनल 3 को एकतरफा सफलता मिली।

अध्यक्ष पद के लिए मोहब्बत राणा को 809, जितेन्द्र सिंह सजवान 445 व अनिल कुमार नेगी को 153 मत मिले।

महासचिव पद के लिए पवन कुमार मैठानी को 800, द्वारिका प्रसाद भट्ट 440 व खेमराज कोठारी को 162 मत मिले।

उपाध्यक्ष पद पर नरेन्द्रसिंह नेगी -788, चमन सिंह नेगी -415 व द्वारिका प्रसाद भट्ट को 194 मत मिले।

संयुक्त सचिव पर विजयी उम्मीदवार अजय सिंह बिष्ट-820,विजेन्द्र सिंह रावत -407 व नारायणदत्त लखेडा को 178 मत मिले।


कोषाध्यक्ष पद के लिए राजेश  राणा -799, दीपक द्विवेदी-453 व अर्जुन सिंह नेगी-173 मत मिले।

अध्यक्ष, महासचिव, उपाध्यक्ष, सह सचिव व कोषाध्यक्ष जैसे प्रमुख पदाधिकारियों में जहां मोहब्बत सिंह राणा के नेतृत्व वाले पैनल 3 को एकतरफा जीत मिली।

वहीं कार्यकारणी के सदस्यों में मिले मतों का विवरण निम्न लिखित है-
कार्यकारिणी के सदस्य में

राजेश डंडरियाल(3)-743,राजेन्द्र प्रसाद चमोली(3)-729,सत्तीश चंद्र गोनियाल(3)-743,संयोगिता ध्यानी(3)-820,शैलेन्द्र सिंह नेगी(3)-749, वीर सिंह रावत(3)-748, सुरेन्द्र सिंह गुसांई-744,वीरेन्द्र सिंह नेगी(3)-733,वीरेन्द्र सिंह नेगी(3)-735, आजाद सिंह नेगी (3)-800,देवेन्द्र सिंह गुसांई(3)-779, देवेन्द्र सिंह रावत(3)-788, गुलाब सिंह जयाडा(3)-751,गंभीर सिंह कैतुरा(3)-756, जयसिंह राणा(3)-792,मुरारी लाल खंडूडी(3)-767, नागेन्द्र प्रसाद कंसंवाल(3)-753, प्रमोद अधिकारी(3)-761, प्रताप सिंह असवाल(3)-734 व पूरण सिंह नेगी (3)-765 मत अर्जित करके विजयी रहे।   

अन्य उम्मीदवारों को मिले मत इस प्रकार से रहेअनिल कुमार पंत (2)-486, बिहारी लाल जलंधरी(2)-392, धर्मपाल कुमंई(2)-417, धीरेन्द्र सिंह रावत(2)-411, दिलवर सिंह रावत-400,जय लाल नवानी(2)-387, लखन सिंह कठैत-396, श्रीमती ललिता रावत(2)- 421, लक्ष्मण प्रसाद ध्यानी-396, लक्ष्मण सिंह रावत(2)-410, मदन सिंह रावत(2)-395,       ममराज सिंह(2)-391, पंकज पैनूली (2)-379, प्रमोद सिंह नेगी(2)-391, रमेश रावत (2)-377, रणवीर बिष्ट(2)-382, श्रीचंद कठैत(2)-417, सुभाष चंद्र(2)-369, सुरेन्द्र सिंह रावत (2)-378, योगेश भट्ट (2)-375 मत मिले।
अनिल कुमार थपलियाल (1)-194, अनूप कुकरेती(1)-173, अरविंद कुमार रावत(1)-165, भगवान सिंह नेगी (1)-188,ब्रह्मानंद बिंजोला(1)-166, मोहन लाल भट्ट(1)-169, राकेश चंद्र सेमवाल(1)-175, सुनील सिंह नेगी(1)-190, सूरत सिंह राणा(1)-175 को मत मिले।

विश्व भर में मूर्ख दिवस के रूप में विख्यात पहली अप्रैल को भले ही दुनिया भर में लोग एक दूसरे को मूर्ख बना कर अपना स्वस्थ्य मनोरंजन कर रहे है। वहीं दूसरी तरफ देश की राजधानी दिल्ली में पहली अप्रैल को दिल्ली की जनसंख्या के सातवें हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले उत्तराखण्ड समाज की सबसे सबसे प्राचीन व प्रतिष्ठित सामाजिक संस्था गढवाल हितैषिणी सभा की नयी कार्यकारणी के चुनाव के लिए मतदान अभी प्रातः 10 बजे से प्रारम्भ हो गया है। गढ़वाल हितैषिणी सभा के सेकडों सदस्य, चुनावी दंगल में उतरे पांच दर्जन के करीब प्रत्याशी व उनके समर्थकों का तांता लगा है। गढवाल भवन के चुनावों में भारी जिद्दोजहद को देखते हुए यहा ंपर बडी संख्या में पुलिस बल के साथ कई बार त्वरित कार्यवाही बल यानी रेपिड एक्शन बल भी तैनात किये जाते है। गढवाल हितैषिणी सभा तीन पैनल चुनावी मैदान में उतरे है। पहला पैनल अनिल कुमार नेगी के नेतृत्व वाला है। दूसरा पैनल जितेन्द्र सजवान के नेतृत्व वाला व तीसरा पैनल मोहब्बत सिंह राणाा के नेतृत्व में चुनावी दंगल में उतरा हुआ है।
इन दिनों दिल्ली की जनसंख्या के सातवें हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले उत्तराखण्डी समाज में गढवाल भवन की नयी कार्यकारणी के चुनाव के लिए ठीक उसी प्रकार से गहमागहमी जैसे सिख समाज में गुरूद्वारा प्रबंधक समिति के चुनाव में दिखाई देती है। ऐसा प्रचार की राजनैतिक दल के नेता भी दांतों तले अंगुलियां दबा रहे है। विधानसभा व लोकसभा चुनाव की तरह इस चुनाव के लिए प्रत्याशी साम दाम दण्ड भेद अपना रहे है। समाज के समर्पित लोगों का मानना है कि अगर इतनी मेहनत समाज के ज्वलंत मुद्दों को उठाने के लिए व गढवाल भवन को बाहरी व्यक्ति से कब्जे से मुक्त कराने के साथ चल रहे मुकदमों का वापस लेने में लगाते तो गढवाल भवन के साथ समाज व प्रदेश का भला होता। ऐसे आपात काल में गढवाल हितैषिणी सभा को आम चुनाव में लोगों की पदलोलुपता को का मंच नहीं अपितु पूर्वजों द्वारा निर्माण की गयी सम्पति तक की रक्षा नहीं कर पाये। इसकी रक्षा के लिए सभा को चाहिए कि इस चुनौती को बचाने के लिए इस दिशा में सक्षम पदाधिकारियों को निर्विरोध नियुक्त करके सभा के हितों की रक्षा करनी चाहिए। इसके लिए मेरी नजर में गढवाल हितैषिणी सभा की अध्यक्षता के लिए देश में किसानों के सबसे संघर्षशील नेता भूपेन्द्र रावत की अध्यक्षता में महासचिव सतीश नौडियाल, अनिल पंत, गंभीर सिंह नेगी, महिमानंद द्विवेदी, दीपप्रकाश भट्ट, विक्रम अधिकारी, मदन बुडाकोटी,जितेन्द्र सजवान व प्रताप सिंह असवाल के साथ बृजमोहन उप्रेती पूर्व महासचिव बलूनी व विनोद बछेती की एक आपात समिति का गठन किया जाना चाहिए। जो इस सभा को तब तक निर्विरोध नेतृत्व करे जब तक सभा कब्जा मुक्त न हो जाय।
विश्व में यहुदी व देश में पारसी व सिख समुदाय अपने हितों व सम्मान दोनों के प्रति बेहद जागरूक होते है। परन्तु आम भारतीय समाज (सिख समाज छोड़कर) अपने समाज के सम्मान व हितों के साथ भविष्य की सुरक्षा के प्रति बेहद उदासीन है, उसकी स्पष्ट छाप भी उत्तराखण्डी समाज व गढ़वाल हितैषिणी सभा सहित अधिकांशसामाजिक संगठनों में भी दिखाई देती है। सामाजिक संगठनों का पहला दायित्व अपने समाज व संगठन के हितों के प्रति समाज को संगठित करके जागृत करना होता है। समाज की बेहतरी के लिए प्रेरणा देना। परन्तु ये अधिकांश संगठन केवल नेताओं व पदाधिकारियों के अहं तुष्टि का कारण बन कर रह गये है। समाज को ज्वलंत समस्याओं को दिशा देने के दायित्व न निभाने से समाज अपने हक हकूकों की रक्षा करने में समय पर कार्य नहीं कर पाते। जिससे सरकारें समाज का उसका हक नहीं देती। समाजिक संगठन लोगों को केवल रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम व समाज के हक हकूकों को रौंदने वाले नेताओं का माल्यार्पण कर समाज का उपहास उडाते है तथा प्रतिभाओं की उपेक्षा करते है।
गढवाल हितैषिणसी सभा के पहली अप्रैल 2018 को हो रहे चुनाव में पैनल 1 में जहां अध्यक्ष का प्रत्याशी अनिल कुमार नेगी, उपाध्यक्ष द्वारिका प्रसाद भट्ट, महासचिव-खेमराज कोठारी, कोषाध्यक्ष अर्जुन सिंह नेगी व संयुक्त सचिव नारायण दत्त लखेडा है। इसमें कार्यकारणी के सदस्य अनिल कुमार थपलियाल, अनूप कुकरेती, अरविंद कुमार रावत, मोहन लाल भट्ट, राकेश चंद्र सेमवाल, भगवान सिंह नेगी, ब्रह्मानंद बिंजौला, सुनील सिंह नेगी व सूरत सिंह राणा है।वहीं पैनल एक को विनोद मंमगाई व सुनील नेगी का समर्थन है।

पैनल 2में अध्यक्ष पद के प्रत्याशी जितेन्द्र सिंह सजवाण, उपाध्यक्ष पद पर चमन सिंह नेगी, महासचिव-द्वारिका प्रसाद भट्ट, कोषाध्यक्ष-दीपक द्विवेदी, संयुक्त सचिव-विजेन्द्र सिंह रावत है और कार्यकारणी के लिए श्रीचंद सिंह कठैत, लखन सिंह कठैत, लक्ष्मण सिंह रावत, जयलाल नवानी, ललिता रावत, प्रमोद सिंह नेगी, दिलवर सिंह रावत, अनिल कुमार पंत, धर्मपाल सिंह कुमई, योगेश भट्ट, पंकज पैनुली, सुभाष डुकलान, रमेश सिंह रावत, सुरेन्द्र सिंह रावत, मदन सिंह रावत, गजराज सिंह रावत, रणवीर सिंह बिष्ट, धीरेन्द्र सिंह रावत , लक्ष्मण प्रसाद ध्यानी, बिहारी लाल जलंधरी है। वहीं पैनल 2 को गंभीर सिंह नेगी, जवाहर सिंह नेगी, अमर सिंह राणा, दीप प्रकाश भट्ट का समर्थन है।

पैनल 3 के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी मोहब्बत सिंह राणा, उपाध्यक्ष -नरेन्द्र सिंह नेगी, महासचिव -पवन कुमार मैठाणी, सह सचिव -अजय सिंह बिष्ट, कोषाध्यक्ष -राजेश राणा है। वहीं पैनल तीन ने कार्यकारणी के सदस्य के लिए जय सिंह राणा, नेगी, देवेन्द्र रावत, राजेश डंडरियाल, गुलाब सिंह जयाडा, देवेन्द्र गुसांई, मुरारी लाल खंडूडी, संयोगिता ध्यानी, सुरेन्द्र सिंह गुसांई, सतीश चंद्र गौनियाल, गंभीर सिंह कैंतुरा, प्रमोद अधिकारी, राजेन्द्र चमोली, नागेंद्र प्रसाद कंसवाल, प्रताप  सिंह असवाल, शैलेन्द्र सिंह नेगी, वीरेन्द्र सिंह रावत, पूरण सिंह नेगी, वीरेन्द्र सिंह नेगी व वीरेन्द्र सिंह (विन्नी) है। तीसरे नम्बर पैनल को जहां बृजमोहन उप्रेती के अलावा राजेन्द्र कंसवाल, अधिवक्ता संदीप शर्मा व रमेश नौटियाल का समर्थन है।

गढवाल हितैषिणी सभा, उत्तराखण्ड समाज के गढवाल समाज की संस्था भले ही हो परन्तु दिल्ली में पूरे उत्तराखण्ड समाज की सांस्कृतिक व राजनैतिक गतिविधियों का केन्द्र दशकों से रही। आजादी से पहले जहां उत्तराखण्डी लोगों का बेहद कम लोग उत्तराखण्ड को छोड़ कर रोजगार के लिए लाहौर, पेशावर, असम, कोलकोता व इलाहाबाद आदि शहरों में रहते थे। सेना आदि राजकीय नौकरी में जो लोग थे उनका अपने गांव से ही जुडाव होता था। आजादी के बाद लोग बड़ी संख्या में दिल्ली, लखनऊ, मुम्बई, हेदराबाद, अहमदाबाद, सूरत, बंगलोर, जयपुर के साथ अरब, अमेरिका, इंग्लेड, जापान, जर्मन, फ्रांस, आस्ट्रेलिया व अफ्रीका आदि में बड़ी संख्या में रहते है। दिल्ली व लखनऊ दोनों उत्तराखण्डियों के आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक गतिविधियों का केन्द्र आजादी के बाद से निरंतर रहे है। यहां उत्तराखण्डी लोग पहले अपने गांव, पट्टी, जनपद, मंडल के संगठन बना कर अपने सुख दुख बांटने के साथ गांव, क्षेत्र, जनपद व मण्डल का विकास के कार्यों को अंजाम देते रहे। उत्तराखण्डी संस्थाओं ने रामलीला व होली के सांस्कृति कार्यक्रमों से अपनी जनजागृति के साथ अपने अपने गांव में पंचायती बर्तन, पंचायती भवन, मंदिर निर्माण, पंचायती पूजा, पेयजल, सिंचाई की नहर, बिजली, सड़क, विधालय, चिकित्सालय आदि कार्य बडे स्तर पर गये। ये संस्थायें अपने गांव के विधालयों के संचालन का पूरा दायित्व निभाती थी। गांव से आने वाले दुख बीमारों का इलाज करना, उनको शहरों में सरकारी व निजी रोजगार दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान देते थे। पहले गरीबी के दिनों में जिसके पास सरकारी मकान होता था उसी के यहां दर्जनों गांव के लोग एकत्रित हो कर अपने सुख दुख का मिल कर बांटते थे। गांव, पट्टी, जिला व मंडल स्तर के ये संगठन अब प्रदेश व देश के ही नहीं पूरे विश्व में रहने वाले उत्तराखण्डियों को सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक दिशा देने की हुंकार भरने वाले उत्तराखण्ड एकता मंच तक के इस सफर में कई उतार चढ़ाव व सफलता -असफलता को अपने दामन में समेटे हुए है। उत्तराखण्ड समाज के अब तक के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ रहा उत्तराखण्ड राज्य गठन। पहली बार गांवों, पट्टियों, जनपदों, मण्डलों व जातियों में बंटा उत्तराखण्डी समाज पहली बार एक नई सामुहिक पहचान ‘उत्तराखण्डी’ से स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर आत्मसात कर गया। इससे पहले देश व विदेश का समाज बडी हेय दृष्टि से उत्तराखण्डियों को गढ़वाली या कुमाउनी या पहाड़ी के नाम से पुकारता था। उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन के बाद नयी संस्थायें पूरे प्रदेश के नाम से बनने लगी। दिल्ली में उत्तराखण्डी समाज के वर्तमान में तीन प्रमुख केन्द्र है। पहला गढवाल हितैषिणी सभा का दिल्ली के हृदय स्थल पंचकुया रोड़ स्थित गढवाल भवन, दूसरा साउथ एक्सचेंज स्थित अल्मोड़ा ग्राम सभा का कुमाऊं भवन, तीसरा है पूर्वी दिल्ली के कडकडडुमा क्षेत्र में गढवाल सदन। परन्तु जो जुडाव आम उत्तराखण्डी का गढवाल भवन में है। वह अन्यत्र कहीं नहीं दिखाई देता। गढवाल भवन में उत्तराखण्डी समाज की ही नहीं देश के आंध्र, तमिलनाडू, महाराष्ट्र, गुजरात, उडिसा, बंगाल व पूर्वोतर के लोग भी जुडे हुए है।

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