देश

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राज्य सभा के सेवानिवृत सांसदों की विदाई में दिया गया भाषण

आदरणीय सभापतिजी, सम्माननीय सदन।

हम में से कुछ साथी अब इस अनुभव को ले करके समाज सेवा की अपनी भूमिका को और मजबूत करेंगे, ऐसा मेरा पूरा विश्‍वास है। सदन में से जो जाने वालेवाले महानुभाव हैं, इनका हरेक का अपना योगदान है, हरेक का अपना महात्‍मय है और हर किसी ने राष्‍ट्र के उज्‍ज्‍वल भविष्‍य के लिए इस सदन में रहते हुए जो भी योगदान कर सकते हैं, करने का प्रयास किया है। और उन सबको राष्‍ट्र कभी भूल नहीं सकता है।

मेरी तरफ से आपकी सब उत्‍तम सेवाओं के लिए आप सबको बहुत-बहुत बधाई है और भविष्‍य के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं भी हैं।

ये सदन उन वरिष्‍ठ महानुभावों का है कि जिनके जीवन का अनुभव सदन में value addition करता है। समाज जीवन की आशा-आकांक्षाओं को एक निष्‍पक्ष भाव से तराजू से तोल करके भविष्‍य की समाज व्‍यवस्‍था में क्‍या पूरकहोगा क्‍या पूरकनहीं होगा, उसका लेखा-जोखा करने का सामर्थ्‍य इस वरिष्‍ठ सदन में रहता है, वरिष्‍ठ महानुभावों से रहता है और उसके कारण यहां पर जो बात बताई जाती है उसका अपना एक विशेष मूल्‍य है, उसका एक विशेष महत्‍वहै और वो महत्‍व ही है जो हमारे नीति निर्धारण में बहुत बड़ी अहम भूमिका अदा करता है।

हमारे बीच में आदरणीय पराशरण जी जैसे महानुभाव, जिन्‍होंने अपने जीवन में एक professionalism के साथ-साथ एक तपस्‍वी जीवन भी जिया है। ऐसे लोग हमारे बीच थे, सदन में से हमें उनका लाभ नहीं मिलेगा।

दो, भारत जिनके लिए गर्व करता है, ऐसे खिलाड़ी श्रीमान दिलीप जी और सचिन जी, ये दो भी आने वाले दिनों में हमारे बीच में, उनका लाभ हमें नहीं मिल पाएगा। प्रोफेसर कुरियन साहब को हमेशा लोग याद करेंगे। उनका हंसता हुआ चेहरा हमेशा, और सीखना चाहिए कि बात तो वही बतानी है लेकिन हंसते हुए बतानी है, उनकी विशेषता रही और उसी के कारण संकट की घड़ी में भी सदन को ठीक से चलाने में उनकी अहम भूमिका रही है।

ये बात सही है कि हम में से बहुत कम लोग हैं जिसके पीछे दल और दल की विचारधारा का नाता न रहा हो। बहुत कम लोग हैं, ज्‍यादातर हम वही लोग हैं जिनका कोई न कोई background है और इसलिए स्‍वाभाविक है यहां पर उन बातों को प्रतिस्‍थापित करने के लिए हम लोगों का प्रयास रहना बहुत स्‍वाभाविक भी है।

लेकिन ये भी अपेक्षा रहती है कि जो ग्रीन हाउस में होता है वो रेड हाउस में होना ही चाहिए, जरूरी नहीं है। और इसलिए क्‍योंकि एक वरिष्‍ठ सदन का अपना एक महात्‍मय रहता है, हरेक ने अपनी-अपनी उस भूमिका को निभाया है।

मैं मानता हूं शायद आप में से बहुत लोग होंगे जिन्‍होंने सोचा होगा कि जब आखिरी सत्र होगा तो ये विषय मैं उठाऊंगा, मैं ऐसी तैयारी करके जाऊंगा कि जाते-जाते एक बड़ा ऐतिहासिक भाषण करके जाऊं, मैं ऐसे विचार रख करके देश के लिए कुछेक महत्‍वपूर्ण काम के अंदर अपना योगदान दे करके जाऊं, लेकिन शायद वो सौभाग्‍य जाते-जाते आप लोगों को नहीं मिला। उसके लिए यहां की जिम्‍मेदारी नहीं है, यहां से यहां तक हम सबकी जिम्‍मेदारी है कि आपको ऐसे ही जाना पड़ रहा है।

अच्‍छा होता आप जाने से पहले कोई महत्‍वपूर्ण निर्णय में बहुत ही उत्‍तम प्रकार की भूमिका निभा करके आखिर-आखिर में कोई उत्‍तम चीजें छोड़ करके जाने का अवसर मिल गया होता तो आपको एक विशेष संतोष होता।लेकिन शायद इस सदन का ही कारण रहा कि आप उस सौभाग्‍य से वंचित रह गएगए। कल तो लग रहा कि शायद आज ये भी मौका छूट जाएगा। लेकिन चेयरमैन श्री ने काफी मेहनत की, सबको समझाने का प्रयास किया, सबको साथ लेने का प्रयास किया। श्रीमान विजय जी भी लगे रहे। आखिरकार ये संभव हुआ कि आज सभी जाने वाले सदस्‍य अपनी भावना प्रकट कर पाएंगे। लेकिन फिर भी किसी महत्‍वपूर्ण निर्णय में जो योगदान, इतिहास जिसको हमेशा याद रखता है, वो सौभाग्‍य आप में से, जाते समय वाला; बीच में तो आपको जरूर अवसर मिला है, उसका आपने उपयोग भी किया है, वो एक छूट गया है।  ाी म

 

ट्रिपल तलाक जैसे महत्‍वपूर्ण निर्णय जो हिन्‍दुस्‍तान के आने वाले इतिहास में बहुत बड़ी भूमिका अदा करने वाले हैं, उसका निर्णय करने की प्रक्रिया से आप वंचित रह गए। जो वापिस आए हैं उनको तो सौभाग्‍य मिलेगा लेकिन जो जा रहे हैं उनको शायद इस ऐतिहासिक महत्‍वपूर्ण फैसले से वंचित रहना पड़ा, उसका भी कुछ न कुछ तो मन में कसक, आज नहीं तो दस साल, बीस साल, पच्‍चीस साल बाद जरूर रहेगी, ऐसा मैं मानता हूं। लेकिन अच्‍छा होता ये सारी चीजें हम कर पाते।

मैं फिर एक बार जो सभी माननीय, आदरणीय सदस्‍यगण जा रहे हैं, उनको शुभ कामनाएं देता हूं। मैं एक आपके साथी के नाते आपसे एक आग्रह करूंगा  कि आप ये मत मानिए कि सदन के दरवाजे बंद होने से इस पूरे परिसर के दरवाजे बंद होते हैं। आपके लिए इस परिसर के दरवाजे खुले हैं, प्रधानमंत्री का कार्यालय खुला है।

देश के हित में आपके मन में जब भी, जो भी विचार आएं, आप जरूर आएं, मुझे अच्‍छा लगेगा आपको सुनने का, आपको समझने का और आपके विचारों को जहां भी होंगे आप योगदान देंगे, मैं उसको आगे पहुंचाने का जरूर प्रयास करूंगा।

मैं फिर एक बार आपको बहुत-बहुत धन्‍यवाद देता हूं, बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

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