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सामाजिक संगठनों को भी समाज के हितों व सम्मान की रक्षा करने की जिम्मेदारी समझनी चाहिए

लोकमंच के लोकपर्व आयोजन पर उठे प्रश्नों से सबक लें सामाजिक संगठन  

देवसिंह रावत

इस सप्ताह दिल्ली के इंदिरा गांधी कला केन्द्र में उत्तराखण्ड लोक मंच द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘लोकपर्व ’ का बडे भव्य ढंग से आयोजन किया गया। इसमें दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन, सांसद प्रदीप टम्टा, सांसद मालाराज्य लक्ष्मी शाह,कोस्टगार्ड के प्रमुख राजेन्द्र बिष्ट, दिल्ली के अग्रणी उद्यमी व समाजसेवी गजेन्द्र रावत व श्रीमती पूनम रावत, कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव प्रकाष जोशी, धीरेन्द्र प्रताप, राजपाल बिष्ट,भाजपा नेता जगदीश मंमगांई, नारायण सिंह राणा, आप नेता हरीश अवस्थी,  पदमश्री जसपाल राणा,दिल्ली पुलिस के पूर्व सहायक उपायुक्त सत्तीस नौडियाल, पार्षद अनिल राणा, गीता रावत व वीरसिंह पंवार दर्जनों राज्य गठन आंदोलनकारी, अनैक वरिष्ठ पत्रकार सहित सेकड़ों नामी गिरामी लोग उपस्थित हुए। इसमें उत्तराखण्ड के शीर्ष लोक गायक किसन महिपाल, गजेन्द्र राणा, अमित सागर, रेशमा शाह, हेमा करांसी सहित अनेक गायक व गायिकाओं ने अपने मनमोहक गीतों पर लोगों को थिरकते रहे।

उत्तराखण्ड लोक मंच के लोक पर्व आयोजन के बारे में फेसबुक पर पदमादत्त नम्बुरी ने कुछ प्रश्न उठाये, और उस संशोधित  प्रश्नों ंमें मेरा नाम भी उसमें उल्लेख किया। कई साथी भी वहां पर समाज के प्रतिष्ठित प्रतिभाओं को विशिष्ठ लोगों के साथ स्थान न देने से आहत नजर आये। पर मेरा यही कहना है कि हमें अपने मान सम्मान से अधिक अपने देश प्रदेश व न्याय के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। रही बात सम्मान देने व न देने की। तो यहां पर मैं यही कहना चाहता हॅू कि इंसान का जो नजरिया होता है उसी को वह प्रमुखता देता है। मैं देश के वरिष्ठ पत्रकार रोशन गौड़ के कथन से पूरी तरह से सहमत हॅू कि  कि व्यक्ति को अपने सम्मान की खुद रक्षा करनी चाहिए।
जहां तक मेरा सवाल है मैं प्रायः सांस्कृतिक कार्यक्रमों में नहीं जाता हूॅ। क्योंकि मुझे मालुम है मात्र नाच गाना ही संस्कृति नहीं होती है।  हाॅ लोकपर्व आयोजन में इसलिए गया कि उत्तराखण्ड राज्य लोकमंच ने यह आयोजन किया। राज्य गठन आंदोलन के प्रमुख संगठन ‘उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के  अध्यक्ष के रूप में मुझे मालुम है कि राज्य गठन आंदोलन में लोकमंच को महत्वपूर्ण योगदान रहा। लोकमंच के अध्यक्ष बृजमोहन उप्रेती स्वयं राज्य गठन आंदोलन के प्रमुख आंदोलनकारी रहे और उत्तराखण्ड समाज के अग्रणी समाजसेवी है। उन्होने बडे स्तर पर यह आयोजन किया, इसके लिए उनको व उनके साथियों को बधाई।
हाॅं,  बडे आयोजनों में प्रायः कई कमियां रह सकती है। परन्तु इतना है कि सामाजिक संगठनों के आयोजनों से समाज के हितों, आवाज व सम्मान को तो प्रमुख स्थान मिलना चाहिए।
बेहतर होता आपकी प्रमुख शिकायत यह रहती कि इस आयोजन में प्रदेश की सबसे ज्वलंत समस्या ‘राजधानी गैरसैंण व दिल्ली में बुराड़ी जैसे सामाजिक सुरक्षा’ के मामले में होती। मेने आयोजन से पहले ही अपने साथी वृजमोहन उप्रेती से गैरसैंण पर प्रकाश डालने के लिए कहा था। बेहतर होता कि इस आयोजन में सम्मलित हुए  लोगों का ध्यान लोकमंच उठा कर उपस्थित नेताओं व जनता को सही संदेश देने का काम करता। परन्तु आयोजकों की प्राथमिकता क्या है, वहीं वह अपने मंचों, विचारों व आचरण में उतारते है। हाॅं इतना अवश्य है आयोजकों की विवशता यह होती है कि उसे आयोजन को व्यवस्थित संचालित करना होता है। इसके लिए कुछ व्यवस्था बनानी होती है। परन्तु सामाजिक संगठनों का पहला दायित्व यह होता है कि उनके आयोजनों से समाज के सम्मान व हितों पर कहीं चोट न पंहुचे। इसके साथ उनके मंचों से समाज विरोधी तत्वों को सम्मान न हो और प्रतिभाओं का अपमान न हो।
हाॅ, इतना जरूर लिखुंगा कि हर समाज, प्रदेश व देश के लिए वे ही लोग सबसे आदरणीय होते हैं जो उसकी सुरक्षा, बेहतरी के लिए खुद को समर्पित करते है। सामाजिक संगठनों को केवल राजनैतिक नेताओं व थैलीशाहों को सम्मान देने की चकाचैंध में अपने समाज की प्रतिभाओं की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। इसके लिए केवल सामाजिक संगठन ही दोषी नहीं है। हाॅ मेरा यह भी मानना है कि जो लोक लोकशाही में जनसेवक बनना चाहते हैं और जिनकी इच्छा राजनीति में जाने की है उन्हें आगे आना चाहिए। अगर समाज के सुख दुख में साथ रहने वाले व उसके हितों के लिए संघर्ष करने वाले  हरिपाल रावत, बृजमोहन उप्रेती, विनोद बछेती जैसे लोगों को राजनीति में स्थान मिलना चाहिए। हमें समाज में अच्छी सोच समझ रखने वाले लोगों को आगे बढ़ाना चाहिए।  क्योंकि हमारे समाज में सबसे बडी घातक प्रवृति देखने में यह आ रही है कि केवल मैं दूसरा कोई आस पास भी न रहे। इस केकडा प्रवृति से न तो उनका भला होगा व नहीं समाज का। सामाजिक संगठनों, पत्रकारों व समाजसेवियों को जातिवाद, क्षेत्रवाद व केकडा प्रवृति से उबरना चाहिए। इसके साथ अपनी कथनी व करनी को अनुकरणीय बनाना चाहिए। सम्मान किसी के देने व न देने से नहीं मिटता। जागरूक समाज सदैव प्रतिभाओं का सम्मान करता है और संकीर्ण व्यक्ति हमेशा प्रतिभाओं की उपेक्षा करता है।  हमारे सामाजिक संगठनों को केवल बडे पदों पर आसीन नेताओं व थैलीशाहों का सम्मान करने के साथ  अनिल पंत जैसे समर्पित समाजसेवियों का सम्मान करना भी सीखना चाहिए।
उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलन में 1993 के बाद निरंतर समर्पित हॅू अपितु इन 25 सालों से निरंतर प्यारा उत्तराखण्ड समाचार पत्र का प्रकाशन भी कर रहा हॅू। देश के सबसे प्रमुख आजादी के आंदोलन का ध्वजवाहक भी हॅू। संसद से लेकर सड़क तक निरंतर संघर्ष करता हॅू। सत् व न्याय के साथ देश प्रदेश के हक हकूकों व सम्मान की रक्षा में समर्पित रहने के कारण उत्तराखण्डी सामाजिक संगठनों, राजनेताओं, उनके प्यादों व जातिवादी-क्षेत्रवादी संकीर्ण निहित स्वार्थी तत्वों के निशाने पर रहता हॅॅू।
इन तीन दशक के जमीनी अनुभव के आधार पर मुझे लगता है कि हमारे समाज के अधिकांश बडे नेताओं सहित सामाजिक संगठनों का न समाज के हितों व सम्मान के प्रति न कोई सम्मानजनक नजरिया है व नहीं उनको इसका कहीं दूर दूर तक भान ही है। नेता इतने खुदगर्ज हैं कि उनको अपने पद, अपने दल व अपने परिवार के अलावा न तो समाज दिखाई देता है, न प्रदेश व नहीं देश। इसी का प्रमुख कारण है हमारे समाज के हर वर्ग चाहे राजनेता हो या पत्रकार या सामाजिक संगठन इनको अपनी केकडावृति (जातिवाद, क्षेत्रवाद व दलगत निहित स्वार्थ)की सोच से उपर उठ कर समाज के हितों के प्रति समर्पित रहना चाहिए।
समाज में देश प्रदेश के सरकारी पदों पर आसीन बडे पदाधिकारियों का सम्मान होना चाहिए। परन्तु इन नौकरशाहों से कहीं श्रेष्ठ वे लोग है जो समाज के हक हकूकों व दिशा देने के लिए समर्पित रहते है। परन्तु हमारे समाज के अधिकांश कार्यक्रमों में समाज के लिए समर्पित प्रतिभाओं का सम्मान करना तो रहा दूर उनको सम्मानजनक स्थान देना या नाम तक लेना अपनी शान के खिलाफ समझते है।
जहां तक मेरा प्रश्न है । मैं मान अपमान को प्रभु की कृपा  मान कर आत्मसात कर सत् व न्याय के लिए समर्पित रहता हॅू। मुझे अपने मान अपमान से कोई मलाल नहीं है। क्योंकि मेरा मानना है कि हर व्यक्ति व संगठन वही कर सकता है व दे सकता है जो उसके पास हो। जब तक सामाजिक संगठनों या राजनेताओं का नजरिया ही सामाजिक नहीं होगा तो वह  संगठन कहां से समाज व प्रतिभाओं का सम्मान करेगा।   मुझे तो केवल एक ही आश रहती है प्रदेश, देश व न्याय का अहित न हो व अपमान न हो। उत्तराखण्डी समाज में जिस बडे स्तर पर उतरायणी व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजनों में समाज की मुख्य पीड़ा का कहीं दूर दूर तक स्थान नहीं दिया गया। उससे समाज के संसाधन व जन शक्ति का कहीं सदुप्रयोग होता नजर नहीं आता। मुझे आशा ही नहीं विश्वास भी है आने वाले समय में लोकमंच सहित हम सब सामाजिक सरोकारों से जुडे व्यक्ति समाज की प्रतिभाओं का सम्मान करेंगे और समाज के हितों को अपने आयोजनों में प्रमुख स्वर देंगे। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

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