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रन फोर इंडिया से नहीं अपितु भारत व भारतीय भाषाओं को आत्मसात करने से ही होगा राष्ट्रोेदय, मोदी जी

25 फरवरी की सांय को सूरत में मोदी ने दिखाई रन फार न्यू इंडिया के लिए दौडने वालों को हरी झण्डी
25 फरवरी को संघ, मेरठ में भारत की मजबूती के लिए कर रहा है राष्ट्रोदय सम्मेलन

भारत व भारतीय भाषाओं के लिए कब दौडेंगा देश, मोदी जी?

 

25 फरवरी की सांयकाल जहां सूरत में प्रधानमंत्री मोदी के न्यू इंडिया को साकार करने के लिए लाखों लोग ‘रन फार न्यू इंडिया’ मेराथन में भाग ले रहे है। वहीं दूसरी तरफ मेरठ में पहली बार संघ का नागपुर के बाहर पहली बार बडे स्तर पर ‘राष्ट्र्रोदय सम्मेलन का आयोजन कर रहा है।
प्रधानमंत्री की रन फार इंडिया के आयोजन पर कडी प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति के लिए आजादी की जंग छेडेने वाले ऐतिहासिक संगठन ‘भारतीय भाषा आंदोलन ने दो टूक शब्दों में कहा कि अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी को ढोकर नहीं अपितु भारत व भारतीय भाषाओं को आत्मसात करने से होगा भारत का चहुमुखी विकास व बनेगा महाशक्ति । भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी सहित देश के तमाम राजनैतिक दलों को समझ लेना चाहिए कि किसी भी देश में विदेशी भाषा व विदेशी नाम थोपने से उस देश की आजादी,स्वाभिमान व लोकशाही जमीदोज हो जाती है। भारत का दुर्भाग्य है कि भारत भी 1947 में अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाबजूद देश को अपनी भाषाओं व अपने नाम से शासन संचालित करने के बजाय देश के हुक्मरानों ने 71 सालों ंसे बेशर्मी से उन्हीं अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी व उनके द्वारा थोपा नाम इंडिया को देश को गुलाम बनाया हुआ है।
देश के हुक्मरानों के सर में अंग्रेजों की गुलामी का भूत इस कदर छाया हुआ है उनको विश्व में चीन, रूस, जापान, जर्मन, फ्रांस, इटली, इंडोनेशिया, कोरिया व इजराइल जैसे अपनी भाषाओं के बल पर पूरे विश्व में विकास का परचम लहराने वाले देश भी नहीं दिखाई दे रहे है। इन अंग्रेजी के गुलामों की नजर में विश्व में अंग्रेजी ही केवल ज्ञान, विज्ञान व विकास की भाषा है। इसीलिए देश के हुक्मरानों ने पूरे देश में शिक्ष, रोजगार, न्याय व शासन केवल अंग्रेजी का राज थोप कर देश को गुलाम बनाया हुआ है।
अंग्रेजों के जाने के बाबजूद अंग्रेजी की गुलामी व इंडिया की गुलामी के दंश से मर्माहित देश के राष्ट्रवादी लोगों को विश्वास था कि जब कभी संघ पोषित भाजपा का शासन आयेगा तो अवश्य देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी के कलंक से देश को अवश्य मुक्ति मिलेगी। सच्चे अर्थो में भारत आजाद होगा। परन्तु देश के लोग हैरान है कि वंदे मातरम्, भारत माता की जय व भारतीय संस्कृति के लिए समर्पित हो कर हिंदी हिन्दु हिंन्दुस्तान की बात करने वाले संघ पोषित भाजपा की अटल व मोदी की सरकार भी न तो देश को इस अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए कहीं रूचि रख रही है व नहीं देश को इंडिया से मुक्त कराकर अपना नाम भारत से पूरे विश्व को रूबरू करा रहा है। देश के लिए इससे बडा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी देश अपनी भाषाओं व अपने नाम ‘भारत’ को आत्मसात करने का साहस तक नहीं जुटा पाया। पूरा विश्व आज भी नहीं जानता की हमारे देश का नाम भारत है। पूरा विश्व हमें केवल व केवल इंडिया के नाम से जानता है। कांग्रेस आदि सरकारों की बात क्या करें संघ पोषित भाजपा की सरकारे भी इंडिया व अंग्रेजी के मोह से उबर नहीं पा रही
देश में अंग्रेजीयत की गुलामी से पूरे विश्व में ज्ञान विज्ञान के लिए जगत गुरू भारत को भारत विरोधी तत्वों, भ्रष्टाचारियों व आतंकियों के शिकंजे में जकड कर दम तोड़ रहा है। इसलिए अगर संघ व मोदी सरकार सच में देश में विकास की गंगा बहाने व महाशक्ति बनाना चाहता है कि उसे सबसे पहले अविलम्ब देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्ति दे कर देश में लोकशाही व भारतीयता की अमर गंगा बहाने के लिए देश में भारतीय भाषाओं से पूरी व्यवस्था संचालित कर देश का नाम इंडिया के बजाय भारत से पूरे विश्व को रोशन करेंगे।
देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए विगत 59 माह से निरंतर संघर्षरत भारतीय भाषा आंदोलन  ने हैरानी जतायी कि एक तरफ भारत को शताब्दियों से गुलामी के दंश से अपने विराट स्वरूप से विमुख हो चूके भारतीयों को जागृत कर पुन्न भारत को विश्व गुरू व सोने की चिडिया बनाने के लिए समर्पित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लाखों स्वयं सेवक इस संकल्प को साकार करने में स्वयं को समर्पित किये हुए है। परन्तु दो बार संघ परिवार की राजनैतिक संगठन भाजपा की सरकार अटल व मोदी के सरपरस्ती में देश की सत्ता में आसीन हो चूकी सरकारों की जुबान पर भारत नहीं अपितु इंडिया होती है। ये भारतीयता व भारतीय भाषाओं को केवल भाषणों का औजार मात्र समझ कर प्रयोग करते है। इनको देश की व्यवस्था में लागू करने के लिए एक पल के लिए ईमानदारी से पहल तक नहीं कर रहे है। ऐसे में सबसे बडा सवाल यह है कि देश मंें अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी के रहते कैसे होगा राष्ट्रोदय? कैसे होगा भारत विश्व की महाशक्ति? कैसे जीवंत होगी भारतीयता का परचम?

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