उत्तराखंड देश

योगी की तरह विकास की गंगा बहाने केेे बजाय उत्तराखण्ड को बर्बादी के गर्त में क्यों धकेलते है मुख्यमंत्री

गैरसैंण नहीं सहारनपुर क्यों जप कर रहे है मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र
उत्तराखण्ड विरोधी व मैदानी अंध मोह की राजनीति मानसिकता का प्रतीक है मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र का सहारनपुर राग

21 फरवरी को उप्र के विकास के लिए प्रधानमंत्री की सरपरस्ती में उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आमंत्रण पर मुकेश अंबानी, गौतम अडानी, मंगलम बिड़ला सहित देश के 5000 देश के शीर्ष  उद्योगपति 428000करोड़ रूपये के निवेश करने का वचन दे रहे थे। यह देख कर देश सहित विकास की किरणों के दर्शन तक के लिए तीन दशकों से तरस रही उप्र की जनता को बिमारू प्रदेश के रूप में कुख्यात हो चूके उत्तर प्रदेश में भी विकास की गंगा बहने की आशा भरी खुशियों से सुखद अनुभूति कर रही थी। वहीं 21 फरवरी को उप्र से 17 साल पहले अलग हुए उत्तराखण्ड राज्य के लोगों का सर उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के सहारनपुर को भी उत्तराखण्ड में ेसम्मलित करने की अपनी इच्छा वाले बयान को समाचार पत्रों में पढ़ कर न केवल झुका हुआ है अपितु मुजफ्फरनगर काण्ड-94 की खबर की तरह ही आक्रोश से धधक रहा है।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र का सहारनपुर वाला बयान संघ की उत्तराखण्ड के प्रति संकीर्ण सोच का एक जीता जागता उदाहरण है। मुख्यमंत्री के सहारनपुर वाले बयान से ही उत्तराखण्ड की जनता, उनको भी  राव मुलायम के नये अवतार के रूप में देख कर हैरान है। लोग हैरान है जब पूरा प्रदेश राजधानी बनाने के लिए आंदोलनरत है तो ऐसे समय जनभावनाओं का सम्मान करने के बजाय सहारनपुर वाला बेसुरा राग छेडने की धृष्ठता मुख्यमंत्री ने क्यों की। यह यकायक नहीं अपितु यह वह मनोवृति है जिसको पढ़ व सुन कर एक जमात, उत्तराखण्ड को अलगाववाद का प्रतीक बताने की धृष्ठता कर भारतीय संस्कृति के गंगोत्री उत्तराखण्ड को कलंकित कर रही थी।
उत्तराखण्ड के लोग लम्बे समय से इन खबरों को सुन कर आक्रोशित थे कि भाजपा का एक गुट उत्तराखण्ड में सहारनपुर इत्यादि क्षेत्र को मिलाने का षडयंत्र कर रहे है। परन्तु मैने इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की। मुझे विश्वास था कि कुछ ऐसे लोग होंगे जो इस हिमालयी राज्य के हितों पर ग्रहण लगाना चाहतें हो। ऐसे ही लोगों ने उत्तराखण्ड गठन के समय न केवल इस हिमालयी राज्य को बीमारू प्रदेश बनाने के लिए पूरे हरिद्वार जनपद व ऊधम सिंह जैसे जनपदों को एक सोचे समझे षडयंत्र के तहत मिला कर प्रदेश गठन की मूल भावनाओं को रौंदने का कृत्य किया। ऐसे ही लोगों ने उत्तराखण्ड के हक हकूकों पर ग्रहण लगाने के साथ इसको नाम तक बदल डाला था। ऐसे व्यक्ति को राज्यपाल बना दिया जो राज्य गठन के विरोध में सडक से संसद व राष्ट्रपति तक ज्ञापन दे रहा था। ऐसी ही ताकतों ने मुजफरनगर काण्ड-94 के मुख्य गुनाहगार को बचाने का काम किया। ऐसे ही गुनाहगारों ने प्रदेश में जनसंख्या पर आधारित विधानसभा परिसीमन को थोपने का काम किया। ऐसे तत्व सपा व बसपा में ही नहीं अपितु भाजपा व कांग्रेस जैसी प्रदेश की सत्ता में आसीन रही दोनों प्रमुख दलों में काबिज हैं। ऐसे तत्वों के कारण उत्तराखण्ड के नक्कारे साबित हुए 17 सालों की सरकारें न तो राजधानी गैरसैंण को ही प्रदेश की राजधानी घोषित कर पाये व नहीं मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को सजा दिलाने के लिए ईमानदारी से ठोस पहल तक कर पाये। नहीं सरकारें जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन को झारखण्ड व पूर्वोतर के राज्यों की  तक रोक नहीं पाये।  मुझे लगा कि भाजपा में तो राष्ट्रवादी लोग है वे अपनी पूर्व में उत्तराखण्ड से किये गये अपनी हिमालयी भूलों से सबक ले कर पुन्न ऐसी भूल नहीं करेंगे।

परन्तु जैसे ही उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने सहारनपुर को उत्तराखण्ड में सम्मलित करने की अपनी इच्छा को प्रकट किया तो  मुझे लिखना पड रहा है कि जो भी लोग इस उत्तराखंड विरोधी षड्यंत्र में शामिल हैं वे उतराखण्ड सहित राष्ट्र के हितों को रौंदने वाले निहित स्वार्थी तत्व है। यह उत्तराखंड गठन की जनाकांक्षाओं व शहीदों के सपनों के हत्यारे भी है। सहारनपुर पश्चिम उप्र जैसे नये राज्य में होगा।

उत्तराखण्ड का गठन शुद्ध रूप से पर्वतीय राज्य के रूप में किया था जिसे भाजपा व कांग्रेस में आसीन उत्तराखण्ड मूल के उत्तराखण्ड विरोधी नेताओं ने अपनी संकीर्ण मानसिकता व दुरभावना से ग्रसित हो उस पर हरिद्वार जनपद (कुम्भक्षेत्र छोडकर) व ऊधम सिंह नगर को बलात मिला दिया। ऐसी सरकारें आसीन की जिन्होने प्रदेश को भ्रष्टाचार व व्यभिचार के गर्त में धकेल कर बर्बाद कर दिया। झारखण्ड के भाजपा सरकार की तरह प्रदेश के हितों की रक्षा करने की सुध न तो उत्तराखण्ड के भाजपाई नेताओं में नहीं थी व नहीं आज 17 साल बाद ही है।
परन्तु दूसरी तरफ उत्तराखण्ड में जन्मे व पले उप्र के वर्तमान मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने 21 फरवरी को उप्र में ऐतिहासिक निवेश सम्मेलन 2018 किया। इसमें ें मुकेश अंबानी, गौतम अडानी, मंगलम बिड़ला समेत 5000 उद्योगपति हुए शामि हुए।
पीएम मोदी ने कहा कि एमओयू धरातल पर उतरना चाहिये, ताकि लोगों को रोजगार मिले। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की एमओयू को स्वयं समीक्षा करने की घोषणा का स्वागत किया और कहा कि एमओयू करने वाले उद्योगपति भी जान लें कि सरकार उनके पीछे लगी रहेगी।
प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के इस आश्वासन से उत्साहित  उद्योगपति गौतम अडानी ने 35 हजार करोड़, कुमार मंगलम बिड़ला ने 25 हजार करोड,़सुभाष चंद्रा ने  18,750 करोड, मुकेश अंबानी ने  10 हजार करोड व ़आनंद महिंद्रा ने  200 करोड़ रूपये का निवेश किये। मुख्यमंत्री योगी के अनुसार इससे राज्य के 40 लाख युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। उन्होने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के मार्ग निर्देशन में यूपी को बीमारू राज्य से बाहर निकालने में सफलता मिली है। राज्य अब विकास की राह पर सरपट दौड़ने को तैयार है।
परन्तु उत्तराखण्ड में राज्य गठन के बाद त्रिवेन्द्र तक ऐसे मुख्यमंत्री मिले जिन्होने उत्तराखण्ड में उप्र के मुख्यमंत्री योगी की तरह न तो भ्रष्टाचार व नहीं अपराध मुक्त करने का काम कर रहे है। नहीं उत्तराखण्ड में विकास के लिए उप्र की तरह बडे सतर पर उद्यमियों से निवेश कराने का प्रयास किया जा रहा है। विकास करना तो रहा दूर उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र सरकार जनभावनाओं, चहुमुखी विकास, शहीदों के सपनों की राजधानी व देश की सुरक्षा के प्रतीक राजधानी गैरसैंण बनाने का ऐलान तक कर पा रही है। भाजपा की सरकार को समझ लेना चाहिए कि देशभक्तों व शांत हिमालय को सहारनपुरी मानसिकता से रौंदने ने न देश का भला होगा न हीं प्रदेश का। इससे भाजपा भी कांग्रेस की तरह हाशिये में चले जायेगी। हर समर्पित उत्तराखण्डी इस देहरादून व साहरनपुरी मानसिकता का ठीक उसी तरह विरोध करेगा जिस प्रकार राव मुलायम के दमन का किया था।

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