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2019 के चुनावी समर में उतरने को क्यों कतरा रहे हैं भाजपाई दिग्गज

कोश्यारी के बाद उमा भारती ने भी किया सन् 2019 के लोकसभा चुनाव न लडने के ऐलान, भाजपा में मचा हडकंप

 
उमा भारती की नजर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है या 2019 में भाजपा की स्थिति कमजोर ?

देवसिंह रावत

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में फतह करने का अभियान देश विदेश में मजबूत व्यूह रचना कर युद्धस्तर पर शुरू कर चूके है। मोदी सरकार 2019 के चुनाव की रणभेरी बजने से पहले ही विपक्ष को चारों खाने चित करने के लिए ताडबतोड़ किलेबंदी कर रही है। परन्तु मोदी सरकार की कबीना मंत्री उमा भारती ने यकायक 2019 का लोकसभा चुनाव न लड़ने का ऐलान करके सत्तारूढ़ भाजपा खेमे में खलबली मचा दी हैं।हालांकि उमा भारती ने चुनाव न लड़ने की मंशा के पीछे अपना स्वास्थ्य ठीक न होने का कारण बताया। उमा भारती वर्तमान में मोदी सरकार में जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्री है।

ऐसा भी नहीं कि उमा भारती पहली ऐसी सांसद व बड़ी नेत्री है जिसने आगामी 2019 में लोकसभा चुनाव न लड़ने का ऐलान किया हो। इससे पहले नैनीताल से भाजपा के सांसद भगत सिंह कोश्यारी भी पहले ही ऐलान कर चूके है कि वे 2019 में लोकसभा चुनाव नहीं लडेंगे। श्री कोश्यारी भी उत्तराखण्ड के वरिष्ठ नेता रहने के साथ पूर्व मुख्यमंत्री भी रह चूके है। उत्तराखण्ड विधान सभा चुनाव से पहले ही कोश्यारी का आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव न लड़ने का ऐलान भी राजनीति के समीक्षक  उनके मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपना निशाना साधना मान रहे थे। श्री कोश्यारी को भी उत्तराखण्ड में भाजपा सरकार के सत्तारूढ़ होने पर मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार माना जाता रहा। यह संयोग है उमा भारती की तरह उनको भी केन्द्र की राजनीति से अधिक अपने गृह प्रदेश की राजनीति में अधिक दिलचस्पी है।

राजनैतिक समीक्षक भी उमा भारती के चुनाव न लड़ने के ऐलान के पीछे स्वास्थ्य से अधिक उसको मध्य प्रदेश की राजनीति से उसको हाशिये में धकलने की पीड़ा ही है। गौरतलब है कि अटल आडवाणी के युग में उमा भारती को  षडयंत्र के तहत हाशिये में धकेल कर मध्य प्रदेश की सत्ता में शिवराज चैहान को स्थापित किया गया। इसके पीछे तत्कालीन भाजपा नेतृत्व का उमा भारती के बढ़ती हुई लोकप्रियता से असुरक्षा महसूस करना ही माना जाता है।

गौरतलब है कि  3 मई 1959 को टीकमगढ़, मध्य प्रदेश, के डुंडा नामक स्थान में जन्मी उमा भारती, रामजन्म भूमि आंदोलन की सबसे तेजतरार नेत्री में एक रही। रामजन्म भूमि आंदोलन में उमा भारती, साध्वी ऋतम्भरा व आचार्य धर्मेंद्र, रामजन्म भूमि आंदोलन के तीन तेजतरार साधु संत के रूप में आम जनमानस को इस आंदोलन से जोड़ने में सफल रही।  श्री रामलला घर आयेंगे मंदिर वहीं बनायेंगे का उनका नारा रामजन्म भूमि आंदोलन का प्रमुख नारा बन कर उभरा था।
उमा भारती के जीवन यात्रा पर एक नजर डाले तो साफ नजर आता है उमा भारती कभी किसी के दवाब में काम नहीं करती।   छठी कक्षा तक पढ़ी उमा भारती भारती संस्कृति की धारा प्रवाह प्रवचनकत्र्री के रूप में भी विख्यात रही।  बचपन से ही निडर और बेबाक थीं। उनमे साहस और नेतृत्व करने की बचपन से ही देखी जाती थी। उमा भारती को राजनीति में स्थापित करने में ग्वालियर की महारानी विजयराजे सिंधिया का महत्वपूर्ण योगदान रहा।वह युवावस्था में ही भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गयीं थी। उन्होंने १९८४ में सर्वप्रथम लोकसभा चुनाव लड़ा, परन्तु हार गयीं। १९८९ के लोकसभा चुनाव में वह खजुराहो संसदीय क्षेत्र से सांसद चुनी गयीं और १९९१, १९९६, १९९८ में यह सीट बरकरार रखी। १९९९ में वह भोपाल सीट से सांसद चुनी गयीं। वाजपेयी सरकार में वह मानव संसाधन विकास, पर्यटन, युवा मामले एवं खेल और अंत में कोयला और खदान जैसे विभिन्न राज्य स्तरीय और कैबिनेट स्तर के विभागों में कार्य किया।२००३ के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में, उनके नेतृत्व में भाजपा ने तीन-चैथाई बहुमत प्राप्त किया और मुख्यमंत्री बनीं। अगस्त २००४ उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, जब उनके खिलाफ १९९४ के हुबली दंगों के सम्बन्ध में गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ।
नवम्बर २००४ को लालकृष्ण आडवाणी की आलोचना के बाद उन्हें भाजपा से से बर्खास्त कर दिया गया। २००५ में उनकी बर्खास्तगी हट गयी और उन्हें पार्टी की संसदीय बोर्ड में जगह मिली। इसी साल वह पार्टी से हट गयी क्योंकि उनके प्रतिद्वंदी शिवराज सिंह चैहान को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया। इस दौरान उन्होंने भारतीय जनशक्ति पार्टी नाम से एक अलग पार्टी बना ली। परन्तु उनकी पार्टी भी देश के राजनैतिक पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में असफल रही। इसी कारण ७ जून २०११ में मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में उदय की उषाकाल में उमा भारती की पुनः भाजपा में वापसी हुई। उत्तर प्रदेश में पार्टी की स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने ‘गंगा बचाओ’ अभियान चलाया। परन्तु आडवाणी व शिवराज चैहान की मजबूत किलेबंदी के कारण उमा भारती को उनके गृह राज्य मध्य प्रदेश से दूर रखते हुए उनको उत्तर प्रदेश से ही चुनावी समर में उतारा गया। इस दंश से वे सदा व्यथित रही। जातिवादी राजनीति के दलदल में आकंठ डूबी भारतीय राजनीति में उनको लोधी समाज की प्रमुख नेत्री के रूप में उप्र में उतारा गया।
मार्च २०१२ में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में वह महोबा जिले की चरखारी सीट से विधानसभा सदस्य चुनी गयीं। वे वर्ष-२०१४ में झांसी लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से १६वीं लोकसभा की सांसद चुनी गई हैं और उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में भारत की जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्री बनाया गया हैं।
2019 का लोकसभा चुना न लडने का उमा भारती के इस ऐलान से साफ हो गया कि या तो उनकी नजर मध्य प्रदेश की राजनीति में लगी है या वह झांसी से खुद को असहज पाती है या मोदी सरकार की सत्ता में वापसी का उनका विश्वास डगमगा रहा है।
जहां तक देश की वर्तमान राजनीति स्थिति पर नजर डाले तो इससे साफ है कि मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को चुनौती देने में कांग्रेस सहित अन्य कोई भी विपक्ष कहीं भी दूर दूर तक मजबूत नजर नहीं आ रही है। भले ही मोदी सरकार को 2014 की तरह अभूतपूर्व बहुमत न मिले पर मोदी सरकार पुन्न देश की सत्ता में आसीन होगी इसमें उनके विरोधियों को भी विश्वास है। इसलिए उमा भारती के चुनाव न लड़ने का ऐलान के पीछे मध्यप्रदेश की राजनीति ही प्रमुख कारण मानी जा रही है।

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