उत्तराखंड देश

गैरसैंण राजधानी बनाने के लिए प्रधानमंत्री से गुहार लगाने के लिए उत्तराखण्डियों ने किया संसद कूच

गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान के बैनर तले पुलिस के भारी अवरोधों के बीच किया प्रर्दशन व दिया प्रधानमंत्री मोदी को दिया ज्ञापन

नई दिल्ली(प्याउ)। उत्तराखण्ड राज्य गठन के 17 साल बाद भी प्रदेश की  सरकारें , जनता, आंदोलनकारियों व कौशिक कमेटी तय की गयी ‘राजधानी गैरसैंण को विधिवत प्रदेश की राजधानी घोषित करने में जब  असफल रही तो आहत उत्तराखण्डियों ने 9 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी से अविलम्ब प्रदेश की राजधानी गैरसैंण  को घोषित करने के लिए संसद कूच किया।

इस कूच को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने संसद से चंद कदम दूरी पर स्थित देश का सबसे प्रतिष्ठित प्रेस क्लब को पुलिस ने छावनी बना दिया था। आंदोलनकारियों के बडे दवाब के बाद  पुलिस आंदोलनकारियों को संसद की तरफ चंद दूरी तक  मार्च करने के लिए  तैयार हो पायी। संसद सत्र के अंतिम दिन ‘प्रधानमंत्री मोदी वादा निभाओं, गैरसैंण राजधानी बनाओ, और कहीं मंजूर नहीं, गैरसैंण गैरसैंण जैसे जगनभेदी नारों से संसद तक गूंजायमान रहा। वक्ताओं ने कहा कि प्रदेश की जनता ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अच्छे दिन लाने का आश्वासन पर ही प्रदेश की जनता ने अभूतपूर्व जनादेश भाजपा को दिया। अब प्रदेश की जनता की पुरजोर मांग है कि उत्तराखण्डियों के लिए भले दिन तभी आ सकता है जब राजधानी गैरसैंण बने। आंदोलनकारियों ने प्रधानमंत्री मोदी से गुहार लगायी कि प्रदेश की अब तक की सरकार द्वारा गैरसैंण राजधानी न बना कर जनांकांक्षाओं, प्रदेश गठन के शहीदों की शहादत, प्रदेश के विकास के साथ देश की सुरक्षा का निर्ममता से रौंदने का कृत्य पर अंकुश लगाते हुए प्रदेश सरकार से अविलम्ब  गैरसैंण राजधानी बनाने की सदबुद्धि रूपि निर्देश दें।

इस कार्यक्रम की जानकारी देते हुए आयोजक वरिष्ठ आंदोलनकारी देवसिंह रावत, अवतार नेगी व अनिल पंत ने बताया कि‘राजधानी गैरसैंण निर्माण अभियान दिल्ली’ के बेनरतले,  9 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से राजधानी गैरसैंण बनाने की गुहार लगाते हुए प्रेस क्लब आफ इंडिया से संसद कूच कर प्रधानमंत्री को ज्ञापन दिया। ज्ञापन में प्रधानमंत्री का ध्यान इस बात के लिए आकृष्ठ किया गया कि गैरसैंण राजधानी न बनाये जाने से प्रदेश बदहाली के कगार पर है। इससे जनता में भारी आक्रोश है। पूरे प्रदेश में राजधानी गैरसैंण बनाने की मांग को लेकर निरंतर आंदोलन छिडी हुआ है। सरकारें जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए गैरसैंण में विधानसभा सत्रों को आयोजन तो करती है परन्तु वहां पर राजधानी घोषित नहीं कर रही है।
दलगत राजनीति से उपर उठ कर कार्य दिवस के दिन भी बड़ी संख्या में समर्पित उत्तराखण्डियों ने  इस आयोजन में भाग लेने से सरकारी ऐजेन्सियों के भी कान खडे हो गये। इस अवसर पर आंदोलनकारियों ने   गैरसैंण को राज्य गठन की जनांकांक्षाओं, लोकशाही,  प्रदेश के चहंुमुखी विकास व देश की सुरक्षा का प्रतीक बताते हुए प्रधानमंत्री से राजधानी गैरसैंण बनाने की पुरजोर मांग करते हुए ज्ञापन भी दिया।  देश के इस चीन से लगे प्रदेश की सीमाओं से हो रहा पलायन देश की सुरक्षा के लिए बहुत ही घातक है। आंदोलनकारियों ने कहा की प्रदेश की जनता ने जो अभूतपूर्व जनादेश दिया वह प्रदेश की इस जनांकांक्षाओं को साकार करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी पर विश्वास करके ही दिया है। प्रदेश की जनता को आशा है कि प्रधानमंत्री जनता के विश्वास व शहीदों की शहादत का सम्मान करते हुए राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए अपने प्रभाव का प्रयोग करेंगे।
गैरसैंण राजधानी क्यों बननी चाहिए इससे जुडे प्रमुख तथ्यों को ज्ञापन में रखकर प्रधानमंत्री का ध्यान आकृष्ठ किया-

(1)-प्रदेश में एक मात्र विधानसभा  भवन गैरसैंण के भराड़ी सैण में बना हुआ है।
(2)- गैरसैंण विधानसभा भवन में विधानसभा का शीतकालीन सत्र 2017 में सम्पन्न हो चूका है। गैरसैंण में ही विधानसभा का ग्रीष्मकालीन सत्र भी सम्पन्न हो चूका है।
(3)-उत्तराखण्ड प्रदेश का बजट सत्र2018 भी गैरसैंण में किया जा रहा है।
(4) राज्य गठन जनांदोलन से पहले ही  राज्य गठन आंदोलनकारियों ने  सर्व सम्मति से प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाने को एकमत थी।
(5)-उत्तराखण्ड राज्य व राजधानी गैरसैंण के लिए ही प्रदेश के सवा करोड़ जनता ने ऐतिहासिक जनांदोलन  किया और शहादत दी।
(6)-राज्य गठन के बाद, राजधानी गैरसैंण बनाने की मांग को लेकर बाबा मोहन उत्तराखण्डी ने दी शहादत।
(7)-राज्य गठन से पहले ही पूर्व उप्र सरकार द्वारा गठित रमांशंकर कौशिक आयोग द्वारा उत्तराखण्ड की राजधानी के लिए आंदोलनारियों, जनता व विशेषज्ञों से गहन चिंतन मंथन व निरीक्षण कर  गैरसैंण को जनांकांक्षाओं को साकार करने वाली राजधानी घोषित की।
(8)  -राज्य गठन के बाद जनभावनाओं व हिमालयी राज्यों की तरह गैरसैंण बनाने के बजाय देहरादून में राजधानी बनाने के षडयंत्र के तहत ‘राजधानी चयन के लिए दीक्षित आयोग’ बनाया। इस आयोग ने जानबुझ कर करोड़ों रूपये बर्बाद कर  दस साल तक इसे उलझाये रखा। परन्तु इस दीक्षित आयोग ने भी दो तिहाई से अधिक लोगों ने राजधानी के लिए गैरसैंण बनाने के लिए अपना मत दिया।
(9)-आजादी के संग्राम में ‘पेशावर क्रांति ’ के महानायक चंद्रसिंह गढवाली ने गैरसैंण क्षेत्र में ही इस पर्वतीय क्षेत्र का आदर्श शहर बसाने का संकल्प लिया। (10)   गैरसैंण उत्तराखण्ड प्रदेश के मध्य में स्थित है।
(11) हिमालयी राज्यों की तरह हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड की राजधानी गैरसैंण पर्वतीय क्षेत्र में स्थित है।
(12) -प्रदेश गठन के बाद पंचतारा सुविधाओं भोगी नेताओं व नौकरशाहों ने गैरसैंण में राजधानी बनाकर शासन चलाने के बजाय जनांकाक्षाओं, शहीदों की शहादत,प्रदेश के चहुंमुखी विकास, देश की सुरक्षा को नजरांदाज करते हुए  प्रदेश गठन की मूल अवधारणा का गला घोटने का काम करते हुए बलात देहरादून में ही कुण्डली मारे हुए है।  इससे प्रदेश गठन की मांग के लिए जिन पर्वतीय व सीमान्त जनपदों ने दशकों लम्बा संघर्ष व शहादते दी वहां से शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा व शासन से उपेक्षित होने के कारण विनाशकारी पलायन हो गया।क्योंकि देहरादून में काबिज हुक्मरान के साथ सीमान्त जनपदों के शिक्षक, चिकित्सक, कर्मचारी तमाम देहरादून, हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर में अपना तबादला करने में लगे है।  इससे चीन सीमा से लगे इस सीमान्त प्रदेश की यह स्थिति देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन गयी है।
9 फरवरी को गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान के बेनर तले बडी संख्या में उत्तराखण्डी प्रेस क्लब पर एकत्रित हो कर राज्य गठन आंदोलन के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए राजधानी गैरसैंण गैरसैंण के समर्थन में गगनभेदी नारे लगाते रहे। प्रधानमंत्री मोदी वादा निभाओं गैरसैंण राजधानी बनाओ!/शहीदों का यही अरमान, राजधानी गैरसैंण/ पलायन का एक ही समाधान राजधानी गैरसैंण!/ लोकशाही का सम्मान करो राजधानी गैरसैंण बनाओ के गगनभेदी नारे लगाये।
प्रधानमंत्री मोदी को दिये गये ज्ञापन में प्रधानमंत्री को स्मरण कराया गया कि 9 नवम्बर 2000 में राजग की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा गठित उत्तराखण्ड राज्य के गठन हुए 17 साल हो गये हैं परन्तु इन 17 सालों में प्रदेश की सरकारों ने राज्य गठन जनांदोलन की जनांकांक्षाओं को साकार करने के बजाय उसको निर्ममता से रौंदने का ही कृत्य किया। इसका सबसे जीवंत उदाहरण है राज्य गठन के समय सर्वसम्मति से जनता व आंदोलनकारियों द्वारा एक मत से प्रदेश की राजधानी गैरसैंण को बनाने में अब तक की सभी सरकारें असफल रही है।    सबसे शर्मनाक बात यह है कि लोकतंत्र में जनता की सर्वसम्मत मांग ‘ राजधानी गैरसैंण’ को बलात नजरांदाज करके बलात देहरादून में राजधानी थोपी गयी। प्रदेश की राजधानी गैरसैंण न बनाये जाने से और पंचतारा सुविधा भोगी नेताओं व नौकरशाहों ने षडयंत्र कर बलात देहरादून से शासन संचालित किये जाने के कारण, प्रदेश गठन की मांग करने वाले सभी पर्वतीय जनपदों में शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व शासन से वंचित सा हो गये है, जिस कारण यह देश का चीन सीमा से लगा उत्तराखण्ड  प्रदेश में पलायन की गंभीर समस्या से ग्रसित हो कर प्रदेश उजड़ने के कगार पर है। राज्य गठन जनांदोलन में जो शहादतें व संघर्ष किया गया वह गैरसैंण राजधानी के लिए भी था। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी प्रदेश की सरकारों को इसलिए कटघरे में खडा किया है।  प्रधानमंत्री को ज्ञापन देने जाने वाले शिष्टमंडल में अवतार नेगी, नीलम जीना, मोहन जोशी व  विधाता रावत थे।  
उससेे राज्य गठन की मांग के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाले अग्रणी आंदोलनकारियों व इस आंदोलन में समर्पित प्रदेश की लाखों लाख जनता प्रदेश के शासकों द्वारा जनभावना का सम्मान करते हुए राजधानी गैरसैंण बनाने के बजाय बलात देहरादून में  राजधानी थोपने से ठगा सा महसूस कर रही है। इसमें अनैक सामाजिक संगठनों व राजनैतिक दलों से जुडे समर्पित उत्तराखण्डियों ने भाग लिया। संसद कूच कार्यक्रम का संचालन देवसिंह रावत ने किया। सभा को संबोधित करने वालों में  पत्रकार अवतार नेगी, उक्रांद नेता  प्रताप शाही, उत्तराखण्ड जनमोर्चा के पूर्व अध्यक्ष हर्ष बर्धन खंडूडी, टिहरी  के देवप्रयाग क्षेत्र की ग्राम प्रधान रोशनी चमोली, महिला नेत्री कुसुम भट्ट व  प्रेमा धोनी, पत्रकार सुनील नेगी व चारू तिवारी, गैरसैंण क्षेत्र के आंदोलनकारी बिष्ट आदि प्रमुख थे।

संसद कूच में सम्मलित होने वालों में गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान के  अनिल पंत, उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के पूर्व अध्यक्ष खुशहाल सिंह बिष्ट, संजय नौडियाल,  पत्रकार अमर चंद, जगमोहन सिंह रावत, लक्ष्मी बिष्ट,  आशा शुक्ला, शंकर मेहरा,  खुशहाल जीना, मनोज जोशी , चंद्रशेखर जोशी,पौडी से इस प्रदर्शन में सम्मलित होने आये पत्रकार जगमोहन डांगी, मनोज कुमार पुरोहित, एच एस नेगी, सूरवीर बत्र्वाल, कमल किशोर नौटियाल, पदम सिंह बिष्ट, जगदम्बा प्रसाद पुरोहित, मोहन सिंह रावत,  देवेन्द्र बिष्ट, साहित्यकार पूरन चंद्र कांडपाल, सी एस जोशी, सुनील नेगी, अभिराज शर्मा, वेदकांत अप्पू पुनेठा,जगदीश पुरोहित, मुरार कण्डारी, एस पी गौड़,  मनदीप नेगी, अनुराग यादव, आकांक्षा शर्मा,  पीएस शाही, कुंदन सिंह बिष्ट, राजेन्द्र बिष्ट, प्रकाश जोशी, डाबर सिंह मैठानी, नंदन सिंह रावत, सोबन सिंह नेगी, प्रकाश सिंह, दीप  बिष्ट, नरेश देवरानी, उत्तराखण्ड शिल्पकार चेतना मंच के हरीश प्रकाश आर्य, प्रदीप कुमार वेदवाल, नितीन रावत, किशोर रावत, ध्यान सिंह रावत, रणजीत सिंह नेगी, अनिल बिष्ट, रीता, अनुराग बिष्ट, सेहर सिंह, दीप सिलोड़ी,  पवन रतूडी,हिंदी अकादमी के पूर्व सचिव हरि सुमन बिष्ट, संतोष ध्यानी, रमेश शर्मा, बरूवरेस्वामी, बलराज सिंह नेगी, वीरेन्द्र बिष्ट, संजय चैहान, जनमोर्चा के पूर्व महासचिव रामभरोसे ढौडियाल, भियल सिंह, वीरेन्द्र सिंह रावत, जगत सिंह बिष्ट, राकेश नेगी, देव सौंटियाल, उत्तराखण्ड महासभा के अध्यक्ष हरिपाल रावत, उत्तराखण्ड एकता मंच के  दिगमोहन नेगी व सुरेन्द्र सिंह हालसी, डा सतीश कालेस्वरी, मनोज आर्य, सूरवीर, वी पी भट्ट, अजय रावत, कमल सिंह , पूर्व दर्जाधारी इंजीनियर गणेश चंद्रा, चाटर्ड एकाउंटेंट व समाजसेवी राजेश्वर पैनूली, मनवर रावत, वीरेन्द्र, अनुप कुमार, पदम सिंह, मदन मोहन ढौंडियाल,  एन एस गुसांई, जसपाल सिंह असवाल,गढवाल हितैषिणी सभा के पूर्व अध्यक्ष गंभीर सिंह नेगी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष आलमदार अब्बास, पत्रकार योगेश भट्ट,बीना बहुगुना बछेती, माया, माशी, के एच सिंह चैहान, हिमालाश, एच एस कंडारी, बलराज सिंह नेगी, सुषमा नेगी, संगीता भट्ट, अ.भा. उ. महासभा के अध्यक्ष विनोद कुमार नौटियाल,जेपी थपलियाल, पत्रकार किशोर नैथानी, पिण्डर विकास समिति के अध्यक्ष भवान सिंह भण्डारी, विजय गुसांई, पृथ्वी रावत पहाड़ी, रेखा चैहान, सरोजनी रावत, राज्य आंदोलनकारी सुभागा खंडूडी,  कर्मपुरा से नारायण गुसांई सहित बडी संख्या में उत्तराखण्ड इस संसद कूच में सम्मलित थे।

अनिल पंत
राजधानी गैरसैंण निर्माण अभियान दिल्ली

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