उत्तराखंड देश

नेता,नौकरशाह व शराब कारोबारियों के नापाक गठजोड़ से शराब से बर्बादी के कगार पर देश

राजस्व की आड़ में अपनी तिजोरियों को भरने के लिए सरकार से शराब को अंध प्रोत्साहन दिलाते है नेता व नौकरशाह

देवसिंह रावत

केन्द्र सरकार हो या दिल्ली, उत्तराखण्ड, या गुजरात व बिहार छोड़कर अन्य प्रदेश की सरकारे इनको अगर इनको देश, समाज व जनता की जरा सी भी चिंता होती तो तुरंत शराब पर तुरंत प्रतिबंध लगा देती। परन्तु पूरा सरकारी तंत्र शराब को बढावा देने में लगा हुआ है। जब  सरकार ही शराब का कारोबार करके शराब का पूरा व्यापार शराब के बडे माफिया या कारोबारी की झोली में सोंप देती है। ये ही शराब के करोबारी पुलिस प्रशासन व नेताओं से गठजोड़ कर देश को चूना लगाते हुए अवैध शराब का कारोबार करके धनकुवैर बन जाते है। इन पैंसों से ये अपने नापाक सरकारी तंत्र के गठबंधन की शह पर जल, जमीन, जंगल सहित सत्ता पर कब्जा कर लेते है। इनको देखा देखी चंद असामाजिक तत्व भी शराब के अवैध कारोबार में उतरते है। अगर शराब का अवैध कारोबारियों व उनको संरक्षण देने वाले नेता व नौकरशाहों की सम्पति जब्त कर फांसी की सजा देने का प्रावधान होता तो ये देश को बर्बाद करने से डरते। वहीं समाज में शराब का प्रचलन पर अंकुश लगाने के काम किया जाता तो समाज को हकीकत का पता चलता और देश का हित सधता।

परन्तु अधिकांश पत्रकार, नेता, समाजसेवी, बुद्धिजीवी शराब की लत में डूबे रहते और ऐसे आयोजनों को दुत्कारने की हिम्मत नहीं रखते। इसलिए समाज का निरंतर पतन हो रहा है। शराब के कारण आज पूरा भारत बर्बादी के कगार पर है। परन्तु न सरकार के कानों में जूं रेंगता व नहीं देश के भाग्य विधाताओं के। शिक्षाविद, धार्मिक आचार्य भी शिक्षा में शराब व नशे से हो रही बर्बादी को प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों को नहीं पढाते। बचपन में बच्चों को विद्यालय में बच्चों के तम मन में यह बिठा दिया जाना चाहिए कि शराब मानवता को पथभ्रष्ट करने का प्रमुख कारण बन गया है। इसलिए शराब पीने वाला और पिलाने वाला समाज का दुश्मन है।

देश में सरकारें किस बेशर्मी से देश को शराब से बर्बाद करने के लिए उतारू है। इसका शर्मनाक उदाहरण है प्रदेश सरकारों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के राष्ट्रीय राजमार्ग के आस पास शराब की दुकान हटाने के सराहनीय आदेश को ठेंगा बताना।  जिस प्रकार से लीपापोती प्रदेशों की सरकारों ने की, वह देश की न्याय व्यवस्था, व हितों का सरेआम गला घोंटने के समान है। सरकारों ने जिस बेशर्मी से राजमार्गो को बदल कर जिला मार्गो में तब्दील किया वह सीधे सीधे सर्वोच्च न्यायालय का अपमान है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद केवल अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिए शराब के कारोबारियों के ठेकों को बचाने के राजमार्गो की स्थिति में परिवर्तन कर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को ठेंगा दिखाया।

देश में सरकारें राजस्व का तर्क देकर शराब का कारोबार बनाये रखने का कृत्य करती है। हकीकत यह है कि राजस्व अर्जन से बीसों गुना शराब से समाज को होने वाले नुकसान को नहीं बताया जाता है। समाज में अपराध, दुराचार, हिंसा, लूटपाट, आतंकी घटनाओं व लोकशाही के पथभ्रष्ट करने का मुख्य कारण ही शराब है। सरकार की दिशाहीन शिक्षा प्रणाली, नशा मुक्त समाज के निर्माण में पूरी तरह असफल रही।  रही बात राजस्व की। जब देश में शराब के कारोबार ना के बराबर था तब भी भारत अपनी वैभव की दृष्टि से विश्व में सोने की चिडिया के नाम से विख्यात रहा।

वेसे किसी देश के विकसित होने का आधार केवल अकूत धन व चकाचैध की अटालिकायें व हवाई जहाज या सडकें नहीं होती है। अपितु देश के चहुमुखी विकास का आदर्श मानवीय स्तर भी होता है। जहां शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, सुशासन, अपराधमुक्त वातावरण होता है। हिंसा, अन्याय, बेरोजगारी, लाचार, असहाय, भुखे, बीमार, अशिक्षित, अमीर व गरीबी के गहरी खाई से युक्त देश आधुनिक सुविधाओं से युक्त होने के बाबजूद कभी भी आदर्श नहीं माना जा सकता है। विकास वही सार्थक है जहां के नागरिक सुरक्षित, सुशिक्षित, संस्कारित हो। भूख, भय से मुक्त हो और रोजगार व सुशासन युक्त हो। शराब का गटर बना कोई भी देश हिंसा, भ्रष्टाचार, कुशासन, अन्याय व गरीबी को ही बढाता है।

 

हैरानी की बात है शराब पर न तो प्रतिबंध गांधी के नाम पर राजनीति करने वाले कांग्रेस ने किया, नहीं रामराज्य स्थापित करने की दुहाई देने वाली भाजपा ने। नहीं देश में भ्रष्टाचार मुक्त करने के लिए जनांदोलन की कोख से उत्पन्न आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार ने। गुजरात में 20 साल तक शासन कर शराब बंदी जारी रखने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने देश की बागडोर संभालने के बाद तीन साल बाद भी देश में शराब बंदी करने का साहस नहीं जुटाया। नहीं केजरीवाल को दिल्ली में शराब बंदी करने की सुध आयी। भारतीय संस्कृति की पावन गंगोत्री देवभूमि उत्तराखण्ड की सरकरे तो जिन गांवों में सडक नहीं पंहुचा पा रही है वहां भी शराब पंहुचाने के लिए काम करती रही। उप्र में सत्तीन हुए आदित्य नाथ योगी ने भी उप्र में शराब बंदी करने का साहस नहीं जुटा पाये। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साहस दिखाया है शराब बंदी का। इस पर ईमानदारी से लागू किया जाना चाहिए। देश व विदेशी में भेद नहीं होना चाहिए। पंचतारा होटलों व गली में शराब पीने में अंतर नहीं किया जाना चाहिए। देखना है कि मोदी, केजरीवाल व योगी कब अपने शासन में शराब बंदी करते है। यहां पर एक सवाल सबसे उचित लगता है कि जब बिहार व गुजरात में शराब बंदी हो सकती है तो पूरे देश में क्यों नहीं? इस सवालों का जवाब मोदी, केजरी व योगी को देना चाहिए।

परन्तु दुर्भाग्य है इस देश का शराब को सभी बुराईयों की मां कहने वाले गांधी के नाम पर शासन करने वाले देश के हुक्मरान, देश में जाति, धर्म, क्षेत्र की संकीर्ण राजनीति करके देश को पतन के गर्त में धकेलने से बाज नहीं आते हैं। परन्तु देश को बर्बाद  करने वाले शराब व अंग्रेजी की गुलामी पर प्रतिबंध लगाने के अपने अपने पहले दायित्व का निर्वहन करने से यहां ंकी हर सरकारें नजरांदाज ही करती रहती। इस देश पदलोलुपु पदलोलुप नेताओं, बंदरबांट करने वाले नौकरशाह व समाचारों का व्यापार करने वाले समाचार व्यापारियों के इस नापाक गठजोड़ से देश की जनता इस त्रासदी को समय रहते समझने में असफल रहते हैं।

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