उत्तराखंड

उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन की तरह गैरसैंण राजधानी निर्माण आंदोलन के भड़कने की आशंका से सहमी सरकार

राजधानी गैरसैंण निर्माण आंदोलन की भनक लगने से त्रिवेन्द्र सरकार ने शीतकालीन सत्र में नहीं खोला ग्रीष्मकालीन राजधानी का पिटारा

देहरादून में राज्य गठन आंदोलनकारी, समर्पित समाजसेवी, छात्र, महिला व पूर्व सैनिकों को एकजूट कर निर्णायक आंदोलन की मजबूत तैयारियों

देहरादून(प्याउ)। उत्तराखण्ड राज्य गठन आदंोलन की तर्ज पर ही गैरसैंण राजधानी निर्माण आंदोलन के भड़कने की आशंका से उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र सिंह रावत सहम गयी है। सरकार ने अपनी ऐजेन्सियों को सजग कर दिया है। सरकार को ऐजेन्सियों से मिली इन्हीं खबरों के मिलने से राज्य गठन के बाद 17 सालों में पहली पूर्ण बहुमत ही त्रिवेन्द्र सरकार ने इसी सप्ताह सम्पन्न हुए शीतकालीन सत्र में अपना गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के पिटारे को ठण्डे बस्ते में डाल दिया है। सरकार को खबर थी कि ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने से  उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलनकारी इस सरकार का बलात देहरादून में राजधानी थोपने का ही उत्तराखण्ड विरोधी षडयंत्र मान रहे है। राज्य गठन आंदोलन के शीर्ष आंदोलनकारी इस राव  मुलायम की तरह उत्तराखण्ड द्रोही कृत्य मान कर पुरजोर विरोध कर रहे है। सरकारी तंत्र को आशंका है कि इससे 1994 में मुलायम सरकार द्वारा उत्तराखण्ड में थोपे गये विद्यालय व पंचायतों में थोपे गये आरक्षण के खिलाफ उमडे आंदोलन की तरह ग्रीष्मकालीन राजधानी के खिलाफ व्यापक गैरसैण राजधानी निर्माण जनांदोलन छिड सकता है।
सरकारी तंत्र की आशंका केवल हवाई नहीं। देहरादून सत्र के प्रारम्भ होने से पहले ही देहरादून में बडे स्तर पर आंदोलन की तैयारी थी। जिसे रणनीति के तहत गैरसैंण अधिवेशन में सरकार की पहल को देखने के लिए स्थगित कर दिया गया। इसके बाद जैसे गैरसैंण में एक सप्ताह के लिए आहुत शीतकालीन सत्र को सरकार ने ऐसी ही आशंका के कारण दो दिन में समाप्त कर दिया।
गैरसैंण में आहुत शीतकालीन सत्र के समाप्ति होते ही देहरादून में गैरसैंण में मजबूत आंदोलन की रणनीति बनाने के लिए 9 दिसम्बर को राज्य गठन आंदोलन के अग्रणी आंदोलनकारियों, पत्रकारों, समाजसेवियों  व पूर्व सैनिक संगठन के सूत्रधार सहित अनैक सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठक हुई। इस बैठक की भनक लगते ही खुफिया तंत्र ने इस बैठक पर नजर गढ़ाये रखी।
इस बैठक का आवाहन उत्तराखण्ड आंदोलन के लिए निर्णायक आंदोलन में समर्पित रहे रघुवीर बिष्ट व लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल ने किया। इस बैठक में राज्य गठन आंदोलन के वरिष्ठ आंदोलनकारी रवीन्द्र जुगरान, पूर्व सैनिक संगठनों के सूत्रधार पीसी थपलियाल, अपना परिवार सामाजिक संगठन के पुरूषोत्तम भट्ट, पत्रकार पुष्कर नेगी, कैलाश जोशी, हरि किशन किमोठी,लक्ष्मण रावत, हिल डेपलपमेंट मिशन सहित अनैक अग्रणी संगठनों के चार दर्जन से अधिक शीर्ष समाजसेवी जुडे रहे। इसमें ंसभी ने उत्तराखण्ड की राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने, हक हकूकों व सम्मान की रक्षा के लिए राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए राज्य गठन की तर्ज पर जल्द ही निर्णायक आंदोलन छेड़ने का संकल्प लिया।
इसकी तैयारी के लिए अगली बड़ी बैठक इसी पखवाडे देहरादून में ही आहुत की जायेगी। इसमें राज्य गठन के प्रमुख आंदोलनकारियों, राज्य के हितों के लिए समर्पित रहने वाले पूर्व सैनिक, समाजसेवियों व महिलाओं  और छात्रों को जोड़ा जायेगा। बैठक में इस बात से भी आक्रोश था कि प्रदेश के जनप्रतिनिधी अपनी पंचतारा सुविधाओं में अंधे हो कर जनभावनाओं, प्रदेश के हितों व भविष्य को रौंद कर बलात देहरादून में ही राजधानी थोपने का षडयंत्र रच रहे है। जबकि प्रदेश का विधानसभा भवन गैरसैंण में बना है। वहां पर सरकारों ने विधानसभा सत्रों का आयोजन सर्दी व गर्मी दोनों मौसमों में कर दिया है तो फिर क्यों  जनभावनआों व शहीदों की शहादत का सम्मान करते हुए प्रदेश के चहुमुखी विकास के लिए प्रदेश की राजधानी गैरसैंण नहीं बना रहे है।
गैरसैंण राजधानी निर्माण आंदोलन को शुभकामनाएं देते हुए, राज्य गठन के लिए संसद के दर पर 6 साल तक ऐतिहासिक आंदोलन करने वाले उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने कहा कि  गैरसैंण राजधानी निर्माण आंदोलन के लिए देहरादून, दिल्ली सहित उत्तराखण्ड में हो रही मजबूत लामंबदी की खबरों  प्रदेश की जनता अब जागने लगी है। श्री रावत ने आक्रोश प्रकट किया कि उत्तराखण्ड में अब तक की तमामं सरकारें खुद को जनता का सेवक समझने के बजाय खुद को शहंशाह समझने लगे है। जनभावनओं को साकार करने के बजाय जनहितों को ही रौंदने की धृष्ठता कर रहे है। हकीकत यह है कि  ये राष्ट्रीय दल भी जनता की सेवक है। सेवक का काम है जनता की सेवा करना। जरूरत है हमे कराने का दवाब बनाने की। राज्य गठन की मांग का भाजपा व कांग्रेस दोनों दल विरोधी रहे। जब जनता जागी तो ये दोनों घुटनों के बल तैयार हो गये । इन्हें भय रहा कि अगर जनता की नहीं मानेगे तो जनता विकल्प तैयार कर लेगी। हकीकत यह है कि सत्ता के भूखे होते हैं राजनेता। इसलिए जैसे ही जनता जागेगी तो ये मान जायेगे। गलती राष्ट्रीय दलों की नहीं अपितु गलती इस समय इन दलों के कहार बने हमारे नालायक जनप्रतिनिधियों का है जिन्होने अपने अपने नेतृत्व को जनभावनाओं से रूबरू नहीं कराया। इसलिए  ये तो क्या इनके साया भी गैरसैंण राजधानी बनाने के लिए मजबूर होना पडेगा। जरूरत है जनता के जागने की। अपने सम्मान व हक हकूकों के लिए एकजूट होने की। शहीदों के सपनों के लिए अपने अहं त्यागने की। अब वह समय आ गया है। हमारे पास अब मजबूुत आधार है गैरसैंण में बना विधानसभा भवन। शहीदों की शहादत का आशीवार्द और मातृभूमि के लिए मर मिटने वाले नौंजवान, महिला, छात्र, पूर्व सैनिक , जागरूक लोग व राज्य गठन के लिए समर्पित आंदोलनकारियों का साथ। अब हम सबने मिल कर राज्य गठन आंदोलन की तर्ज पर राजधानी आंदोलन पर जनता जागृत करने का काम करने के लिए कमर कस चूके है। जेता एक दिन तो. ओलो दिन य दुनि मां………………

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