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1947 में भारत छोड़ने के बाबजूद अपनी अंग्रेजी भाषा के माध्यम से अंग्रेजों ने बनाया हुआ है भारत को गुलाम

देश को अंग्रेजी का गुलामी थोपकर जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए मनाया जाता है हिंदी दिवस के पाखण्ड

देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने व भारतीय भाषाओं को लागू करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को दिया रौष युक्त ज्ञापन

नई दिल्ली(प्याउ)। अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी भारत में बेशर्मी से चल रहे अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी के राज,  भारत की आजादी, लोकशाही, संस्कृति व मानवाधिकारों का गला घोंटने वाला देशद्रोही षडयंत्र है। जिस देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के लिए शताब्दियों का संघर्ष किया। देश की आजादी के लिए लाखों सपूंतों ने अपनी शहादतें दी। करोड़ों लोगों ने अमानवीय अत्चाचार व दमन सहे। भारत की उस आजादी को अपने पैरों तले रौंदकर अपना ही गुलाम बनाये रखने के षडयंत्र रच कर अंग्रेजों ने बहुत ही धूर्तता से भारतीय भाषाओं के बजाय अपनी ही भाषा अंग्रेजी का राज चलाये रखा है। इसी कारण स्वाभिमानहीन अंग्रेजीयत के मानसिक गुलाम बने हुक्मरानों ने 1947 में अंग्रेजों के जाने के 71 साल तक देश को आजादी संवाहिका भारतीय भाषाओं से संचालित करने के बजाय बलात अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी को थोप रखा है। देश में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन बेशर्मी से अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी के द्वारा संचालित की जा रही है। वहीं देश की जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए हिंदी भाषा को कागची राजभाषा बना कर हर साल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाने का पाखण्ड  किया जाता है। अगर देश के हुक्मरानों को जरा सा भी देश व भारतीय भाषाओं को भान होता या प्रेम होता तो वह देश में 1947 से ही शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन को अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषा में प्रदान करते।
देश में यह सबसे बडा  रहस्योद्घाटन भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री मोदी को हिंदी दिवस के अवसर पर दिये ज्ञापन में किया।  देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर भारतीय भाषायें लागू करने के लिए संसद की चैखट पर विगत 53 महीने से आजादी की जंग छेडे हुए भारतीय भाषा आंदोलन ने 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भेजे ज्ञापन में कही। भारतीय भाषा आंदोलन ने कहा कि एक तरफ सरकार देश में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन विगत 71 साल से भारतीय भाषाओं के बजाय अंग्रेजी में ही प्रदान कर रही है। वहीं देश की जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए राजभाषा हिंदी के नाम पर हिंद दिवस मनाने का पाखण्ड कर रही है।  
14 सितम्बर को हिंदी दिवस के अवसर पर भारतीय भाषा आंदोलन ने संसद की चैखट, राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर देश में बलात चल रहे अंग्रेजी राज में भारतीयों की आंखों में धूल झोंकने के लिए शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन में जमीदोज व तिरस्कृत की गयी भारतीय भाषा हिंदी को हवाई रूप से राजभाषा के रूप में आसीन कर 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने का षडयंत्र किया गया। इसके पीछे तर्क दिया गया कि 14 सितम्बर को हिंदी दिवस इसलिए मनाया जाता है कि क्योंकि इसी तारीख को 1949 में हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला था।बाद में जवाहरलाल नेहरू सरकार ने इस ऐतिहासिक दिन के महत्व को देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। पहला आधिकारिक हिन्दी दिवस 14 सितंबर 1953 में मनाया गया। परन्तु देश में 71 साल से देश में केवल अंग्रेजी का राज है और भारतीय भाषायें अंग्रेजी की चरणों में दम तोड़ रही है। देश के हुक्मरानों ने 71 साल से देश को अपनी भाषा, अपना नाम तक नहीं दे पाये। उल्टा देश के माथे पर अंग्रेजों ंकी भाषा अंग्रेजी का कलंक लगाया गया।
देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कराने व भारतीय भाषाओं को लागू करने के लिए 53 महीने से छेडी गयी आजादी की जंग में 14 सितम्बर को पाखण्ड दिवस के रूप मनाया। इस अवसर पर भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री मोदी को देश को अंग्रेजी गुलामी से मुक्त कर भारतीय भाषायें लागू करने के लिए एक रौषयुक्त ज्ञापन दिया।
भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी को प्रेषित ज्ञापन में भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री का ध्यान देश के साथ हुए षडयंत्र की तरफ दिलाते हुए लिखा कि 14 सितंबर, को भारत सरकार सहित भारत सरकार के तमाम विभाग हिंदी दिवस के रूप में मना रहे है। इसे राजभाषा के रूप में भी गौरवान्वित किये जाने का बखान कर रहे है। परन्तु हकीकत यह है कि अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी बेशर्मी से अंग्रेजी इस देश की भाषा बनी हुई है और हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाये गुलामी के पिंजरे में जकड़ी हुई है। इस देश में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन सब अंग्रेजी में हो रहा है। यह जग जाहिर है कि 1918 में महात्मा गांधी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था.। इसे गांधी जी ने जनमानस की भाषा भी कहा था। परन्तु संसार के सारे देश जहां अपनी अपनी देश की भाषा में अपने देश में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन संचालित कर विश्व में अपना परचम लहरा रहे है। वहीं भारत उन्हीं अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी का गुलाम बन अपने देश के नाम, संस्कृति, सम्मान, लोकशाही, मानवाधिकार, प्रतिभाओं का निर्ममता से गला खुद बेशर्मी से घोंट रहा है। भारतीय भाषा आंदोलन का मानना है किसी भी स्वतंत्र देश की भाषाओं को रौंदकर विदेशी भाषा में बलात शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन देना किसी देशद्रोह से कम नहीं है।
14 सितम्बर को हिंदी दिवस इसलिए मनाया जाता है कि क्योंकि इसी तारीख को 1949 में हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला था। संविधान में विभिन्य नियम कानून के अलावा नए राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का मुद्दा अहम था। काफी विचार-विमर्श के बाद हिन्दी और अंग्रेजी को नए राष्ट्र की आधिकारिक भाषा चुना गया। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी को अंग्रेजी के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया था। बाद में जवाहरलाल नेहरू सरकार ने इस ऐतिहासिक दिन के महत्व को देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। पहला आधिकारिक हिन्दी दिवस 14 सितंबर 1953 में मनाया गया।
अंग्रेजी का सम्राज्य भारत में बना रहे इसके लिए अंग्रेजों ने इस देश से अंग्रेजी को हटाने से रोकने के लिए तमिलनाडू सहित कई राज्यों में प्रायोजित विरोध करा कर आजादी के बाद हिन्दी को देश की राजभाषा घोषित नहीं करने दिया। इसी षडयंत्र के तहत अंग्रेजी को 15 साल तक के लिए देश में अंग्रेजी को राजकाज की भाषा बनाये रखा। ऐसा कहा गया कि तब तक केन्द्र सरकार हिंदी का व्यापक प्रचार प्रसार कर देश की राज भाषा के रूप में स्थापित कर दी। इसके साथ अंग्रेजी को बनाये रखने के लिए ऐसा अवरोधक हिंदी को रोकने के लिए बनाया गया कि जब ये पूरे देश में आम सहमति से स्वीकृति हो जाएगी तब इसे राजभाषा घोषित किया जा सकता है। इसी फांस के कारण अंग्रेजी की गुलामी बेशर्मी से बनी हुई है। इसी लिए देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने के लिए भारतीय भाषा आंदोलन संसद की चैखट राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर विगत 53 महीने से आजादी की जंग छेड़ हुए है। संविधान के अनुच्छेद 351 के तहत हिन्दी को अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों के रूप में विकसित औ प्रचारित करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है।
भारतीय भाषा आंदोलन को आशा है कि आशा है मोदी जी, योगमय भारतीय संस्कृति की कल्याणकारी गंगा को संचारित करने वाली भारतीय भाषाओं व भारत को भी अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी की बैेडियों से मुक्ति दिला कर भारत को आजादी का परचम लहरायेंगे।
ज्ञापन में भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री को लिखा कि जहां पूरा भारत पूरे विश्व में अपनी 71वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। वहीं संसद की चैखट पर देश को अंग्रेजों के बाद अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कराकर भारतीय भाषाओं को लागू करने के लिए भारतीय भाषा आंदोलन के जांबाज ( भारत को अंग्रेजी का गुलाम बना कर, हिंदी दिवस का पाखण्ड बंद करो, बंद करो/अंग्रेजी की गुलामी थोप कर,देश की आजादी व संस्कृति रौंदने वाले हुक्मरानों, शर्म करो शर्म करो
/अंग्रेज गये अंग्रेजी जाये, भारतीय भाषा राज चलाये/वही अंग्रेजी भाषा, इंडिया नाम, आज भी भारत है गुलाम/अंग्रेजी के दलालों भारत छोड़ा, भारतीय भाषा लागू करोध् अंग्रेजी में काम न हो, फिर से देश गुलाम न हो व देश के हुक्मरानों शर्म करो) अंग्रेजी की गुलामी बंद करो के गगनभेदी नारे लगा कर 15 अगस्त सहित विगत 52 माह से आजादी की अलख जगाये हुए है।
प्रधानमंत्री का ध्यान अंग्रेजी की गुलामी के कलंक की तरफ आकृष्ठ करते हुए भारतीय भाषा आंदोलन ने ज्ञापन में लिखा कि संसार के चीन, जापान, जर्मनी, रूस, फ्रांस, इस्राइल, टर्की, इंडोनेशिया सहित तमाम देश अपनी अपनी भाषाओं में व्यवस्था संचालित कर पूरे विश्व में अपना परचम लहरा रहे हैं। परन्तु भारत के हुक्मरानों ने अंग्रेजों से मुक्ति होने के बाद से 71 सालों से देश को अंग्रेजी का बेशर्मी से गुलाम बना रखा है। भारतीय भाषाओं की शर्मनाक उपेक्षा कर देश की लोकशाही व संस्कृति को रौंदने का कृत्य कर रही है। लोकशाही के नाम पर देश की सरकारों ने देश की सवा सौ करोड़ जनता को 15 अगस्त 1947 के बाद बैशर्मी से विदेशी भाषा को बलात थोप कर व भारतीय भाषाओं को तिरस्कार कर पूरे देश को गूंगा बहरा बना कर लोकशाही, स्वाभिमान व मानवाधिकार का गला ही घोट रखा है। यही नहीं इन 70 सालों में देश की सरकारें देश का नाम ‘भारत’ तक विश्व को नहीं बता पाये। भारतीय भाषा आंदोलन को देश के प्रधानमंत्री से आशा करती है कि जैसे आपने अंग्रेजों के जाने के 70 वर्षों तक भारतीय संस्कृति की आत्मा योग को देश व विश्व से वंचित करने के षडयंत्र को तोड़ कर विश्व भर में योग से आलोकित करने का सराहनीय कार्य करने का सराहनीय कार्य किया। उसी प्रकार आप मोदी जी, योगमय भारतीय संस्कृति की कल्याणकारी गंगा को संचारित करने वाली भारतीय भाषाओं व भारत को भी अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी की बैेडियों से मुक्ति दिला कर भारत को आजादी का परचम लहराने का यथाशीघ्र ऐतिहासिक कार्य करेंगे। 21 जून को भारतीय भाषा आंदोलन में आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत, महासचिव अभिराज शर्मा, कोषाध्यक्ष सुनील कुमार सिंह, धरना प्रभारी रामजी शुक्ला, सचिव मनु कुमार, वरिष्ठ आंदोलनकारी पुरषोत्तम कपूर, स्वामी श्रीओम,शंकर सिंह तौमर, कमल किशोर नौटियाल, मनमोहन शाह, वेदानंद, राकेश बसवाला ,अनिल पंत आदि ने भाग लिया।

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