उत्तराखंड

उत्तराखण्ड की जनांकांक्षाओं के साथ मेट्रों पर भी ग्रहण लगा दिशाहीन नेतृत्व व बेलगाम नौकरशाही

उत्तराखण्ड में मैट्रो के प्रबंध निदेशक त्यागी ने दिया इस्तीफा

गैरसैंण राजधानी बनाने से रोकने के पीछे उत्तराखण्ड विरोधी नेता व नौकरशाही का षडयंत्र

देवसिंह रावत
भले ही उत्तराखण्ड के शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक दावा कर रहे हैं कि उनकी सरकार इसी कार्यकाल में उत्तराखण्ड की जनता को मेट्रो की सौगात देगी। मदन कोशिक ने दावा किया कि उत्तराखण्ड मेट्रो कारपोरेशन  के प्रबंध निदेशक जितेन्द्र त्यागी के इस्तीफे से उत्तराखण्ड में मेट्रों को साकार करने में कोई प्रभाव नहीं पडेगा।
परन्तु खबरे जो छन कर आ रही है कि प्रदेश में अन्य राज्यों की तरह मेट्रो में अन्य राज्यों में संचालित हो रही मेट्रों के प्रबंध निदेशकों के समान अधिकार तक नहीं है।

वहीं प्रदेश सचिवालय में ऐसी नौकरशाही काबिज है जिनके बार बार चक्कर काटने से वे आहत है। प्रदेश में कार्य करने के लिए जो शासन प्रशासन के स्तर पर जो सहयोग उत्तराखण्ड में मेट्रो को साकार करने के लिए मिलना चाहिए था वह यहां नदारत है। हालांकि मेट्रो के प्रबंध निदेशक ने अपने इस्तीफे का कोई कारण नहीं बताया पर प्रदेश में जिस प्रकार का जड़ता का माहौल है उससे वे बेहद आहत थें
ऐसा नहीं कि यह केवल मेट्रों के विकास के साथ हो रहा है। हकीकत यह है कि प्रदेश के गठन के बाद उत्तराखण्ड में ऐसी नौकरशाही काबिज हो गयी जिसको प्रदेश व प्रदेश के विकास से कहीं दूर दूर तक लेना देना नहीं है। प्रदेश के गठन के बाद जिस प्रकार से राज्य गठन जनांदोलन से पहले उप्र की सरकार व राज्य गठन आंदोलनकारियों ने एकमत से प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाने, प्रदेश में हिमालयी राज्यों की तरह भू कानून लागू करन,े मुजफ्फरनगर काण्ड-94 सहित राज्य गठन जनांदोलन को अमानवीय ढंग से रौंदने वाले गुनाहगारों को सजा दिलाने व प्रदेश में विकासोनुमुख व भ्रष्टाचार रहित सुशासन स्थापित करना जैसा राज्य बनाने का संकल्प था।
परन्तु प्रदेश गठन के बाद अब तक प्रदेश में थोपे गये भाजपा व कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों ने जनांकांक्षाओं को साकार करने के बजाय अपने निहित स्वार्थ व दलीय चम्पुओं की तरह कार्य किया। प्रदेश के हितों को दर किनारे करके प्रदेश के संसाधनों की जो बंदरबांट हुई उसके खिलाफ बने दर्जनों आयोग हर सरकार के कृत्यों को खुद ही बेनकाब करता है। प्रदेश की जनांकांक्षाओं व  हक हकूकों के प्रति उदासीन मुख्यमंत्रियों ने अपने निहित स्वार्थ में अंधे हो कर या अपने दलीय आकाओं के दवाब में प्रदेश में नौकरशाही में ऐसे अधिकारियों को वरियता दी जिनको प्रदेश  व प्रदेश की जनांकांक्षाओं से कोई लेना देना नहीं है। ऐसे उत्तराखण्ड विरोधी नौकरशाही को जब प्रदेश के हितों को नजरांदाज करने वाले मुख्यमंत्रियों का संरक्षण मिला तो उन्होने उनको गुमराह कर दिया।
प्रदेश के नेतृत्व का शर्मनाक पतन इतना हो गया कि जिस उत्तराखण्ड राज्य गठन व  गैरसैंण राजधानी बनाने के लिए प्रदेश की लाखों जनता ने राव -मुलायम सरकारों के अमानवीय दमन सह कर भी राज्य गठन करने के लिए केन्द्र को मजबूर किया। उस प्रदेश का मुखिया बडे ही बेशर्मी से कहता है कि  गैरसैंण में प्रदेश के सचिव /अधिकारियों के लिए रहने लायक कमरे नहीं है, पानी इत्यादि नहीं है। शायद इन नेताओं को यह भ्रम हो गया है कि प्रदेश की जनता ने राज्य नेताओं व नौकरशाहों की ऐशगाह के लिए बनाया है। इन कुंये के मेंढकों को देहरादून के पंचतारा सुविधाओं में रह कर ऐसा भ्रम हो गया। ये भूल गये कि हिमाचल के मुख्यमंत्री परमार व वीरभद्र ने कैसे एक उत्तराखण्ड से बदहाल हिमाचल को आज देश का विकसित व जनहितों को साकार करने वाला शासन बना दिया है।

वहीं उत्तराखण्ड के नेतृत्व ने प्रदेश की जनता द्वारा अर्जित राज्य की ताकत को अपनी नालायकी के कारण जनसंख्या पर आधारित विधानसभा परिसीमन को थोपवा कर बर्बाद कर दिया है। अगर प्रदेश के नेतृत्व में जरा सी भी दूरदर्शिता रहती या प्रदेश के हक हकूकों से लगाव रहता तो ये तत्काल गैरसैंण में टेंट में रह कर शासन वहीं से संचालित करते। इससे प्रदेश के सीमान्त व पर्वतीय जनपदों में हो रहा शर्मनाक पलायन रूक जाता और प्रदेश हिमाचल की तरह फलों का राज्य बन कर आत्म निर्भर बनता।

वहीं प्रदेश की जनता के विकास के पैसों को देहरादून में उडाया जा रहा है। वहां पर बलात विधानसभा भवन, राजभवन, सचिवालय सहित अन्य भवनों का निर्माण कर जनांकांक्षाओं का गला घोंटा जा रहा है। वहीं जनांकांक्षाओं व शहीदों के सपनों को साकार करने के लिए निर्मित गैरसैंण में करोड़ों रूपये के लागत से बने विधानसभा भवन, विधायक व सचिव आवास इत्यादि को नजरांदाज करके उसे खण्डर में तब्दील करने का षडयंत्र रचा जा रहा है। अपने संकीर्ण मानसिकता, निहित स्वार्थो व दिशाहीनता के कारण गैरसैंण की उपेक्षा कर प्रदेश को बर्बादी के गर्त में्र धकलने का षडयंत्र रचा जा रहा है। राज्य गठन के बाद प्रदेश की नौकरशाही व राजनेताओं के पास रातों रात आयी अरबों की दौलत की अगर निष्पक्ष जांच हो तो इनके चैहरे बेनकाब हो जायेंगे।
दुर्भाग्य से राज्य गठन के बाद यहां की 17 साल की सरकारों ने जो कृत्य किये उससे प्रदेश का पूरा शासन तंत्र जनता से विमुख हो कर देहरादून केन्द्रीत हो गया है। प्रदेश में अब तक की परिपाटी यही रही कि प्रदेश के नेतृत्व को न तो प्रदेश के हितों की लगी व नहीं प्रदेश के विकास की। जनांकांक्षाओं को साकार करना तो ये अपनी शान के खिलाफ समझते है। इसी लिए प्रदेश में ईमानदारी से काम करने वाले मेट्रो के प्रमुख इस्तीफा देते है तो कभी यहां विकास की गंगा बहाने के लिए आये निवेशक मुंह मोडते है। प्रदेश में ईमानदार व प्रदेश के हितों के लिए काम करने वाली नौकरशाही के बजाय नेताओं के हितों के लिए समर्पित नौकरशाही को ही वरियता मिलती है। प्रदेश के पतन का यही कारण मुख्य रहा। इस पर अंकुश लगाने के लिए जनता को आगे आना होगा।

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