उत्तराखंड

‘गैरसैंण राजधानी ’ बनाने के लिए जरूरत है फिर एक बार दिल्ली से उत्तराखण्ड तक आंदोलित होने की

प्यारा उत्तराखण्ड की विषेश रिपोर्ट-
जिस प्रकार से उत्तराखण्ड राज्य गठन के 17 सालों की सरकारों ने प्रदेश की जनांकांक्षाओं को रौंदने के कृत्य किये उससेे राज्य गठन की मांग के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाले अग्रणी आंदोलनकारियों व इस आंदोलन में समर्पित प्रदेश की लाखों लाख जनता ठगा सा महसूस कर रही है।इसी को भांपते हुए राज्य गठन से लेकर अब तक इस पर निंरंतर आंदोलन करने वाले आंदोलनकारियों ने अपना आंदोलन तेज करने का मन बना लिया। इसके तहत सभी आंदोलनकारी ताकतों, उक्रांद, भाजपा, कांग्रेस,वामपंथी आदि जो दलगत लक्ष्मण रेखाओं को दर किनारा करके गैरसैंण राजधानी बनाने के लिए एकजूट हो कर आंदोलन में भाग ले सकते है, उनका साथ भी राज्य का नाम बदलने की तर्ज पर चले आंदोलन की तरह ही लिया जायेगा।
इस आंदोलन में महिला, छात्र व पूर्व सैनिक संगठनों के अलावा काशी सिंह ऐरी, दिवाकर भट्ट,,  हरीश रावत, सभी सांसदों, भाजपा के मोहन सिंह ग्रामवासी,सहित सभी आंदोलनकारी ताकतों व गैरसेंण समर्थक राजनैतिक दलों को लामबद हो कर गैरसेंण के लिए एक संयुक्त दवाब बनाना होगा। इस आंदोलन को संसद की चैखट से उत्तराखण्ड की सडकों पर उतारने के लिए आंदोलनकारी मन बना चूके है।
इसी मांग को लेकर दिल्ली में उत्तराखण्ड आंदोलनकारी संगठनों की समन्वय समिति निरंतर 23 साल से आंदोलन कर रही है। आंदोलन की इसी प्रेरणा से उत्तराखण्ड एकता मंच ने 2016 में दिल्ली से गैरसैंण राजधानी बनाओं लम्बी यात्रा निकाली थी। जो जंतर मंतर से चल कर मुजफ्फरनगर षहीद स्थल, कोटद्वार, सतपुली, पौड़ी श्रीनगर, रूद्रप्रयाग,  गौचर, कर्णप्रयाग, गैरसैंण -विधानसभा भवन, चैखुटिया, द्वाराहाट, रानीखेत, बेतालघाट व रामनगर होते हुए 2 अक्टूबर को संसद की चैखट जंतर मंतर पर शहीदों को श्रद्धांजलि देकर समापन हुई। यह आंदोलन व्यापक जन सम्पर्क आदि के रूप में जारी है। उक्रांद, उपपा, माले आदि दल भी निरंतर इसी मांग को लेकर आंदोलन कर रहे है।
इसी क्रम में दिल्ली में उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत द्वारा दिये गये पत्रकार भोज में राज्य आंदोलन के अग्रणी आंदोलनकारी देवसिंह रावत व वरिष्ठ पत्रकार व्योमेश जुगरान ने प्रमुखता से गैरसैंण राजधानी की मांग उठायी थी। जिस पर मुख्यमंत्री का जवाब बहुत ही निराशाजनक व अलोकतांत्रिक था। इसके बाबजूद देवसिंह रावत ने प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष अजय भट्ट, कबीना मंत्री प्रकाश पंत, मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट के अलावा पुन्न मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत से गैरसेंण राजधानी बनाने की बात कही। इस अवसर में देवसिंह रावत ने प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष अजय भट्ट से दो टूक शब्दों में कहा कि वे कम से कम गैरसैंण को ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाने की बात न कह कर अपयश का भागी न बने। क्योंकि गैरसैंण राजधानी हर काल में बनेगी और उसकी राह में सहयोग देने के बजाय अवरोधक न बने।
इसी क्रम में 12 जुलाई को दिल्ली में राज्य आंदोलनकारियों ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से भी भैंट कर आंदोलनकारियों के चिन्हिकरण व गैरसैंण आदि मांगों की तरफ ध्यान दिलाया। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी प्रदेश की स्थिति से बहुत आहत थे। जब आंदोलनकारी देवसिंह रावत ने कहा कि आपने चुनाव से पहले राजधानी गैरसैंण घोषित कर देनी चाहिए थी, क्योंकि वर्तामन नेताओं में आप से बेहतर प्रदेश के हितों के बारे में किसी को भान तक नहीं है। इस पर आवेश में आ कर हरीश रावत ने कहा कि मैने गैरसैंण में विधानसभा सत्र, विधानसभा भवन सहित तमाम आवश्यक ऐसे कार्य कर दिये जिसके बारे में करना तो रहा दूर कहने की हिम्मत तक पूर्व व वर्तमान की सरकारों में नहीं है। हरीश रावत ने कहां कि मेरी उम्र निरंतर बढ रही है मै चाहता हॅू कि प्रदेश की राजधानी सहित जनहित के जो भी कार्य शेष रह गये उन की आवाज बनू। बैठक में आये उक्रांद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रताप शाही से निवेदन करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि आओ हम सब प्रदेश के हितों के लिए एकजूट हो कर दवाब बनाये। इस बैठक में हरिपाल रावत, प्रताप शाही, देवसिंह रावत, खुशहाल सिंह बिष्ट, अनिल पंत, रामेश्वर गोस्वामी, नंदन रावत, करण बुटोला, मनमोहन शाह, उमा जोशी, संयोगिता ध्यानी,सुभाष चैहान शंकर रावत, पटवाल, अधिवक्ता वीरेन्द्र नेगी, एस के जैन, जगमोहन रावत, पदमसिंह बिष्ट, राधा आर्य आदि लोग उपस्थित थे।

भले ही राज्य गठन के बाद चहुमुखी विकास के दावे करने वाले नेता व नौकरशाहों के भले में देहरादून सहित देश विदेश में बंगले व अकूत सम्पतियां बना ली हो पर प्रदेश के राज्य गठन के लिए आंदोलन करने वाले अधिकांश क्षेत्रों में चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार व शासन राज्य गठन के बाद बेहतर होने के बजाय पतन के गर्त में जमीदोज हो चूका है। इसी कारण राज्य गठन की मांग करने वाले क्षेत्रों से  गांव के गांव उजड़ने वाला पलायन हो रहा है। परन्तु प्रदेश के विकास के बजट की बंदरबांट करके अकूत सम्पतियां बटारने वाले राज्य गठन से पहले सामान्य जीवन जीने वाले नेता व नौकरशाहों ने देहरादून को पंचतारा ऐशगाह में तब्दील कर यहीं कुण्डली मारे रहना चाहते है।
आखिर यही कारण है देहरादून की पंचतारा ऐशगाह में जीने के लिए अभ्यस्त हुक्मरानों को आम जनता की खुशहाली के लिए गैरसैंण का प्रकृति की गौद में कश्मीर को भी अपनी प्राकृतिक सौन्दर्य से मात देने वाली गैरसैंण क्षेत्र में निर्मित विधानसभा भवन, विधायक, नौकरशाहों के लिए बने सुन्दर भवन भी आफत लग रही है। ये यहां पानी, हवाई अड्डे, रेल, वातानुकुलित बंगले, पंचतारा होटल व क्लब  आदि के अभाव का बहाना बना कर देहरादून की ऐशगाह में ही कुण्डली मार के रहना चाहते है। विकास के संसाधनों की बंदरबांट करने वाले इन नेता व नौकरषाहों की लोकशाही के इन नबाबों को गैरसैंण का नाम सुनते ही नानी याद आ जाती है। ये भूल जाते है कि यह राज्य गठन ही जनता ने उत्तराखण्ड की संस्कृति, सम्मान व चहुमुखी विकास के लिए किया। नहीं तो लखनऊ तो देहरादून से बेहतर रहा। कम से कम लखनऊ रहते उत्तराखण्ड की मांग करने वाले जनपद मुख्यालयों में ही नहीं दूरस्थ गांवों के चिकित्सालय में चिकित्सक, विद्यालयों में शिक्षक, सरकारी कर्मचारी तैनात थे। अब तो देहरादून में प्रदेश को बर्बादी के गर्त में धकेलने वाले हुक्मरानों ने सब उजाड़ कर देहरादून व उसके आसपास के दो तीन जनपदों को ही उत्तराखण्ड समझ लिया है।
 आंदोलनकारी व समर्पित जनता निराश क्यों न हो जिस प्रकार से प्रदेश गठन के नाम पर देश के हुक्मरानों ने प्रदेश के शकुुनियों की सलाह पर प्रदेश का भूगोल को बदलने का शडयंत्र किया गया, राज्य की राजधानी गैरसैंण बनाने के बजाय बलात देहरादून ने का अलोकतांत्रिक कृत्य किया गया, प्रदेश को बंगलादेशी, अपराधियों व भू माफियाओं की ऐशगाह बनाने के लिए राज्य गठन की प्रदेश में हिमालयी राज्यों व हिमाचल की तरह भू कानून को लागू नहीं किया गया। मुजफ्फरनगर काण्ड आदि के गुनाहगारों को शर्मनाक संरक्षण देने व प्रदेश के हितों को विधानसभाई क्षेत्रों में जनसंख्या के आधारित परिसीमन कराकर रौंदने का जघन्य कृत्य यहां के तथाकथित विकास पुरूष व ईमानदार मुख्यमंत्रियों ने बेशर्मी से किया। प्रदेश में स्थाई व मूल निवास का जनाजा निकाल कर यहां अपराधियों, घुसपेटियों व भू माफियाओं का ऐशगाह बना दिया है।
ये नेता भूल गये कि वे जनसेवक है और लोकशाही में नेता या नौकरषाह नहीं अपितु सबसे बडी होती है जनता व जनभावना। प्रदेश में गैरसैंण की सुध लेने का काम पिछली कांग्रेस सरकार ने की थी। इसका शुभारंभ सतपाल महाराज की सलाह पर तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने किया। पर गैरसैंण की दिशा में मील का काम किया बहुगुणा के बाद बने मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जिन्होने  मंत्रीमण्डल की बैठके, विधानसभा के सत्र आयोजित करके व विधानसभा भवन बना कर। नहीं तो इससे पहले 12 सालों तक किसी मुख्यमंत्री को इतनी सुध नहीं रही कि वे प्रदेश की लोकशाही, जनभावनाओं व विकास के प्रतीक राजधानी गैरसैंण की सुध तो ले। परन्तु गैरसैंण में विधानसभा भवन व विधानसभा सत्रों का आयोजन करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी चुनावी मोह में गैरसैंण राजधानी घोशित का ऐलान न कर पाये। जिसका दण्ड प्रदेश को न जाने कब तक भुगतना पडेगा।
अन्य मुख्यमंत्री स्वामी,कोश्यारी, तिवारी, खण्डूडी, निशंक ने जनभावनाओं को ही रौदने का काम किया। उस तरफ झांकना तो रहा दूर इनके उत्तराखण्ड विरोधी कृत्यों के कारण गैरसैंण के लिए आमरण अनशन कर रहे बाबा मोहन उत्तराखण्डी को अपनी शहादत देनी पड़ी। परन्तु इन हुक्मरानों के कान में जूं तक नहीं रेंगी।
वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत को तो गैरसैंण में पानी व सचिवों को बडे कमरे आदि सुविधायें न होने का मलाल है। वे भूल गये कि इन्हीं काम करने के लिए जनता ने जनादेश दिया है भाजपा को।
वर्तमान सरकार की गैरसैंण की शर्मनाक उपेक्षा करने की मनोवृति को देख कर आंदोलनकारियों व उत्तराखण्ड की हितैशी जनता को गहरा धक्का लगा। सरकार की स्थिति इतनी हास्यास्पद है कि वह पलायन के कारणों को दूर करने के बजाय एक आयोग /कमेटी बना रही है। जबकि पलायन के कारण जग जाहिर है कि गैरसैंण राजधानी न बनाने व देहरादून में कुण्डली मारने के कारण प्रदेश के राज्य गठन की मांग करने वाले जनपदों में शिक्षक, चिकित्सक, शासन व रोजगार से वंचित हो गये है। लोग शिक्षा, रोजगार व चिकित्सा के लिए गांवों को छोड रहे है। ऐसे में जब सरकार प्रदेश की संस्कृति, हितों व सम्मान की रक्षा करने के बजाय उसका तमाशा बनाने पर उतारू हो तो जागरूक जनता मूक दर्शक बन कर अपनी बर्बादी को निमंत्रण नहीं दे सकती है।

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