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भारतीय भाषा आंदोलन के धरने में सम्मलित हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री आस्कर फर्नाडिस सहित अनैक प्रबुद्ध लोग

देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन भारतीय भाषाओं में प्रदान कराने के लिए 51 माह से संसद की चैखट जंतर मंतर पर निरंतर आंदोलन कर रहा है भारतीय भाषा आंदोलन

नई दिल्ली(प्याउ)। जून महिने की तीसरे  सप्ताह देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने व भारतीय भाषाओं को लागू करने की मांग को लेकर 51 महिने से निरंतर संसद की चैखट, जंतर मंतर पर आंदोलन कर रहे ‘भारतीय भाषा आंदोलन‘ के धरने में समर्थन देने के लिए देश के विभिन्न भागों से बड़ी संख्या में राजनेता, समाजसेवी, साहित्यकार, पत्रकार, चिकित्सक व आम जागरूक लोग पंहुचे । गौरतलब है कि 51 महिने से भारतीय भाषा आंदोलन रूपि आजादी की जंग को छेडने वाले भारतीय भाषा आंदोलन के प्रमुख  देवसिंह रावत,, रामजी शुक्ला, सुनील कुमार सिंह, अभिराज शर्मा, मन्नु कुमार, मनमोहन शाह व पदमसिंह बिष्ट आदि आंदोलनकारियों ने विगत 51 महीने से निरंतर भारतीय भाषा आंदोलन की पताका संसद की चैखट पर पुलिस प्रशासन के दमन, धूप, वर्षा, सर्दी व मीडिया की उपेक्षा के बाबजूद जारी रखे हुए है।
जून महिने के तीसरे सप्ताह में  तपती धूप व वर्षा में भारतीय भाषा के आंदोलन को समर्थन देने वालों में देश में जन सामान्य को गले लगाने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री आस्कर फर्नाडिस, केरल से नैतिक शिक्षा के ध्वजवाहक संत नारायण दास जी,  बागवत से अग्रणी समाजसेवी व भगत मिष्ठान भण्डार वाले देवेन्द्र भगत, उप्र के पूर्व दर्जाधारी मंत्री बसपा नेता यशवंत निकोसे, समाजवादी नेता श्याम गंभीर, प्रो. प्रेमसिंह, बलदेव सिंह, युवा नेता नीरज कुमार, लखनऊ से लोक जिम्मेदार पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव दानसिंह रावल, इंडिया अगेंस्ट करपशन के स्वामी श्रीओम, राष्ट्रपति के चुनाव में ताल ठोकने वाले समाजवादी नेता आत्म प्रकाश,  विश्व हिंदू परिषद के दिल्ली प्रदेश प्रवक्ता महेन्द्र सिंह रावत, आप नेता अभिराज शर्मा, राष्ट्रीय लोक दल के दिल्ली प्रदेश महासचिव मनमोहन शाह, कांग्रेसी नेता हरी बाबू कौशिक, अधिवक्ता त्रिलोक सिंह मेहता, मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल से मेधा मिश्रा, डालिमा अग्रवाल, निधि शंकर, वरिष्ठ भाषा आंदोलनकारी बीएन मिश्रा, योगाचार्य राकेश त्रिपाठी, समाजसेवी डी के चोपड़ा, मजदूर नेता हरि राम तिवारी, डा. आर सहाय, समाजसेवी दिगमोहन नेगी, कवि स्वाप्निल, आर्य समाजी रमेश कुमार आर्य,पत्रकार अनिल कुमार पंत,  टीवी सिरियलों के कलाकार व भाजपा नेता लक्ष्मण कुमार आर्य, रंगमंच के मंझे हुए कलाकार खुशहाल सिंह बिष्ट, उद्यमी दिनेश शर्मा, मुकेश पांचाल,गुलाब सिंह, अनिल पुनिया, पूर्व कर्मचारी नेता तेजा सिंह बिष्ट,आनंद गौतम, अशोक योगी, उदय सिंह रावत, चंद्र किशोर रावत,  पहलवानी ने राष्ट्रीय खिलाड़ी रहे रमेश पहलवान व शूरवीर सिंह नेगी आदि प्रमुख थे।
21 जून 2017 को जहां पूरा विश्व प्रधानमंत्री मोदी की ऐतिहासिक पहल पर भारतीय संस्कृति की आत्मा समझी जाने वाले योग को आत्मसात करके विश्व योग दिवस मना रहा है। वहीं दूसरी तरफ भारतीय भाषा आंदोलन संसद की चैखट राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर देश को अंग्रेजों के जाने के 70 साल बाद भी देश के हुक्मरानों द्वारा बलात अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी व इंडिया नाम की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए ऐतिहासिक आंदोलन छेड़े हुए है।
ऐसा नहीं है कि भारतीय भाषा आंदोलन में पहली बार कोई बड़ा नेता आये। भारतीय भाषा आंदोलन में संघ लोक सेवा आयोग के समक्ष धरने में ज्ञानी जेल सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चतुरानंद मिश्र से लेकर चार दर्जन से अधिक दिग्गज नेता धरने में सम्मलित हुए थे। देश के प्रमुख सम्पादक भी धरने में सम्मलित हो चूके है। संसद में भाषा आंदोलनकारियों ने नारेबाजी व सदन में कूदने का भी कार्य किया।
भारतीय भाषा आंदोलन के प्रमुख देवसिंह रावत के अनुसार  भारतीय भाषा आंदोलन देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करके भारतीय भाषाओं को लागू करने की मांग को लेकर संसद की चैखट, राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर आजादी की जंग छेड़ने वाला भारतीय भाषा आंदोलन,  देश में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन में अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कराने व भारतीय भाषायें लागू कराने के लिए आंदोलनरत है। परन्तु अफसोस है कि भारतीय भाषा आंदोलन के शांतिपूर्ण व देश में लोकशाही स्थापित करने के लिए ऐतिहासिक आंदोलन की मांगे स्वीकार करने बजाय शासन प्रशासन ने तीन चार बार इसको उजाडने का राष्ट घाती कृत्य किया।
संसार के चीन, जापान, जर्मनी, रूस, फ्रांस, इस्राइल, टर्की, इंडोनेशिया सहित तमाम देश अपनी अपनी भाषाओं में व्यवस्था संचालित कर पूरे विश्व में अपना परचम लहरा रहे हैं। परन्तु भारत के हुक्मरानों ने अंग्रेजों से मुक्ति होने के बाद से 70 सालों से देश को अंग्रेजी का बेशर्मी से गुलाम बना रखा है। भारतीय भाषाओं की शर्मनाक उपेक्षा कर देश की लोकशाही व संस्कृति को रौंदने का कृत्य कर रही है। देश को विगत 70 सालों से बलात अंग्रेजी का गुलाम बनाये रखने पर सरकार सहित पूरी व्यवस्था ने जो शर्मनाक मौन साधा हुआ है। इसी से आहत हो कर भारतीय भाषा आंदोलन ने देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए संसद की चैखट जंतर मंतर पर 51 महीने से आजादी की जंग छेडकर देश के हुक्मरानों को धिक्कार रहे है। भले ही देश के हुक्मरान देश को आजाद कहें पर हकीकत यह है कि लोकशाही के नाम पर देश की सरकारों ने देश की सवा सौ करोड़ जनता को 15 अगस्त 1947 के बाद बैशर्मी से विदेशी भाषा को बलात थोप कर व भारतीय भाषाओं को तिरस्कार कर पूरे देश को गूंगा बहरा बना कर लोकशाही, स्वाभिमान व मानवाधिकार का गला ही घोट रखा है। यही नहीं इन 70 सालों में देश की सरकारें देश का नाम ‘भारत’ तक विश्व को नहीं बता पाये।
तमाम दमन व उपेक्षा के बाबजूद भारतीय भाषा आंदोलन को देश के प्रधानमंत्री से आशा  है कि जैसे प्रधानमंत्री ने अंग्रेजों के जाने के 67 वर्षों तक भारतीय संस्कृति की आत्मा योग को देश व विश्व से वंचित करने के षडयंत्र को तोड़ कर विश्व भर में योग से आलोकित करने का सराहनीय कार्य करने का सराहनीय कार्य किया। उसी प्रकार  मोदी जी, योगमय भारतीय संस्कृति की कल्याणकारी गंगा को संचारित करने वाली भारतीय भाषाओं व भारत को भी अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी की बैेडियों से मुक्ति दिला कर भारत को आजादी का परचम लहराने का यथाशीघ्र ऐतिहासिक कार्य करेंगे। भारतीय भाषा आंदोलन तब तक अपना आंदोलन जारी रखेगी।

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