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कर्ज व माफी में व्याप्त भ्रष्टाचार से देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने को तुले हैं सरकार व राजनैतिक दल

70 सालों में भारत के सबसे बडे घोटाले कर्ज देने व कर्ज माफी (किसानों व उद्योगों)की हो सीबीआई जांच

देवसिंह रावत
सरकार ने संसद में दावा किया था कि 30 नवम्बर 2016 तक देश के किसानों पर 12, 60, 26,450.46 लाख यानी 12 लाख 60 हजार करोड़ का कर्ज बकाया है। वहीं औद्योगिक कर्ज भी लाखों करोड़ का है। देश में ऐसे अरब खरबपति उद्यमी है जो कर्ज वापसी को तैयार नहीं। इन पर करीब 40528 करोड़ रूपये का बसूल न हो पाने वाला कर्ज है। ऐसे कर्जदारों में किंगफिसर एयर लाइंस के प्रमुख विजय माल्या जैसे पंचतारा जीवन जीने वाले प्रमुख खरबपति है। विजय माल्या पर करीब 9000 करोड़ रूपये का कर्ज है। ऐसे कर्जधारियों के पास  खरबों की दौलत है परन्तु ये कानून के चक्रव्यूह में फंसा कर कर्ज वापसी कर कर रहे है । औद्योगिक कर्ज ऐसे लोगों को दिया गया जिनके बारे में बैंक पहले से आशंकित थे। यह खेल एक प्रकार से राजनैतिक संरक्षण से पहले भी चलता था और अब भी चल रहा है।
2019 में होने वाले चुनाव को देखते हुए ऐसा अनुमान है कि तब तक सरकारें देश के किसानों पर चढे 2,57,000 करोड़ रूपये के कर्ज माफ कर देगी। देश में सभी बैंक सहमें हुए हैं कि किसानों ने कर्ज की वापसी एक प्रकार से बंद सी कर दी है। किसान करें भी क्यों नहीं जबसे आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, उप्र, व महाराष्ट्र में किसानों के कर्ज माफ होने की खबरे आयी तबसे देश में अधिकांश किसान कर्ज की वापसी करना एक प्रकार से बंद सा कर दिये है। क्योंकि उन्हें विश्वास हो गया है कि देर सबेर सरकार अन्य राज्यों की तरह उनका भी कर्ज माफ कर देगी।
इसी भयावह स्थिति को भांपते हुए  भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर कर्ज माफी करने से देश की अर्थ व्यवस्था को पटरी से उतारने वाला कदम बता कर इससे बचने की दो टूक चेतावानी दे रहे है। रिर्जव बैंक की चेतावनी में सुर मिलाते हुए केन्द्रीय वित्तमंत्री अरूण जेटली ने भी राज्यों को कर्जमाफी के लिए केन्द्र से किसी प्रकार की सहायता देने से साफ मना कर दिया। जेटली ने कहा राज्यों को यह इंतजाम खुद अपने संसाधनों के दम पर करना चाहिए।

देश की सत्ता में आसीन भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश सरकारें किसानों पर कर्ज की माफ कर रही है। ऐसा भी नहीं है कि यह काम केवल भाजपा ने ही किया। कांग्रेस की जब  केन्द्र में सप्रंग सरकार सत्तासीन थी तब उसने भी करीब 71600  करोड़ रूपये के किसान कर्ज माफ कर इस कर्ज माफी प्रवृति को शुरूआत की थी।
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने मात्र राजनैतिक फायदे के लिए राज्य सरकारों द्वारा कर्जमाफी के इस अभियान को आत्मघाती बताते हुए दो टूक चेतावनी दी कि इससे देश में राजकोषीय स्थिति बिगड़ सकती है। ऐसा नहीं कि भारतीय रिजर्व बैंक ने पहली बार यह चेतावनी दी हो। इससे पहले भी वह सरकारों द्वारा कर्जमाफी के अभियान पर सवालिया निशान लगा चूके हैं।
देश के हुक्मरानों ने अपनी सत्ता के लिए देश की अर्थ व्यवस्था से कितना खतरनाक खिलवाड कर रहे है। चुनावों में मजबूत तबके को अपने पक्ष में करने के लिए किसानों को कर्जमाफी जैसी योजनाओं को लागू किया जा रहा है। जिससे देश की अर्थव्यवस्था डगमगाने की पूरी संभावनायें है। एक तरफ सरकारें किसानों का कर्ज माफ करने का ऐलान कर रही है वहीं दूसरी तरफ देश में लाखों करोड़ के डूबते हुए औद्योगिक कर्ज की वसूली तक नहीं कर पा रही है। चुनाव आयोग भी दलों द्वारा चुनाव के समय मतदाताओं को रिझाने के लिए जो देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पंहुचाने वाले प्रलोभन देते हैं उन पर तुरंत कठोरता से रोक लगानी चाहिए। चुनाव आयोग की लापरवाही व कमजोर रवैये से राजनैतिक दल चुनाव के समय लेपटोप, साइकिल, मोटर साइकिल, घड़ी, टीबी, धोती, मकान, इत्यादि सीधी घुस देते हैं, जाति व धर्म के आधार पर तुष्टिकरण वाली घोषणा करते है। मतदाताओं को रिझाने के लिए बिजली, पानी, कर्ज माफ जैसे सीधे प्रलोभन देने वाले चुनावी वादे विकास व लोकशाही को मजबूत करने के लिए नहीं अपितु यह सीधे सीधे मतदाताओं को घूस देने वाला हथकण्डा ही है। इनको रोकने का दायित्व चुनाव आयोग का है पर चुनाव आयोग अपनी संवैधानिक दायित्व का निर्वहन तक नहीं करता है।
एक तरफ देश में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उप्र और महाराष्ट्र की सरकारें किसानों का हजारों करोड़ का कर्ज माफ कर रही है। 2014 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू ने 40,000 करोड़ रुपये का लोन माफ कर दिया था।
उत्तर प्रदेश पहला राज्य है जिसने इस 2017 में छोटे एवं सीमांत किसानों के लिये 36,359 करोड़ रुपये के कर्ज माफी की घोषणा की।
इसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने भी मध्य प्रदेश में चल रहे बेकाबू हुए हिंसक आंदोलन से प्रेरणा लेकर उप्र की तरह अपने यहां किसानों का कर्ज माफ करने का ऐलान कर दिया। महाराष्ट्र में एक लाख सीमान्त किसानों पर 30000 करोड़ का कर्ज था। इसको देखते हुए मध्य प्रदेश में आंदोलन और तेज हो गया। वहीं पंजाब, तमिलनाडू, राजस्थान सहित अन्य राज्यों में किसान कर्ज माफी का आंदोलन तेज करने के लिए कमर कस चूके है।
पंजाब में किसानों पर कर्ज सत्ता परिवर्तन के पहले एक अनुमान के तहत 72770 करोड़ रूपये का कर्ज माना जा रहा था। वह वर्तमान सरकार द्वारा सर्वे किये जाने पर करीब 85000 करोड़ रूपये का कर्ज है। पंजाब में इस  85.9 प्रतिशत किसान कर्जे में डूबे हुए हैं।  हैरानी वाली बात यह है कि पंजाब में खेतीहर मजूदर पर भी 66330 रूपये का कर्ज चढ़ा है। पंजाब की स्थिति बडी भयानक है। इसीलिए किसानों की आत्महत्या भी पंजाब में चैकान्ने वाली है।
ऐसा नहीं कि कर्ज माफी केवल भाजपा की सरकार ही कर रही है। देश में बडे स्तर पर किसानों की कर्ज माफी योजना 2008 में तत्कालीन कांग्रेस गठबंधन वाली सप्रंग सरकार ने बजट में ही छोटे और सीमांत किसानों के लिए 60,000 करोड़ रुपये के ऋण की छूट की घोषणा की थी। इसे बाद में बड़े किसानों के साथ बढ़ाया गया और यह राशि 71,600 करोड़ रुपये हो गई। इस कर्ज माफी के प्रति देश के किसानों के बढ़ते हुए रूझान को भुनाने के लिए भाजपा ने भी विधानसभा चुनावों में किसानों का कर्ज माफ करने का वादा करके बड़ी संख्या में किसानों का समर्थन अर्जित किया था। इसके बाद अगर कोई दल किसी एक राज्य में सत्तासीन हो कर किसानों का कर्ज माफी करता है तो उसी दल की सरकारों द्वारा शासित राज्यों में यह मांग मजबूती से उठनी स्वाभाविक है। यही हुआ मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र में। इसकी चपेट में 12 जून से पंजाब आ गया है और अब अन्य राज्य भी देर सबेर आ ही जायेगे।
अब तक आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, यूपी और महाराष्ट्र की सरकारों ने किसानों का कर्ज माफ करने का ऐलान किया है। इसके बाद देश के अन्य  राज्यों में भी यह मांग मजबूती व हिंसक ढंग से उठ रही है।

इसका ताजा उदाहरण मध्यप्रदेश है। जहां इसी मांग को लेकर आंदोलन कर रहे किसानों के हिंसक प्रदर्शनों ने मध्य प्रदेश की सरकार को ही नहीं अपितु केन्द्र सरकार के भी पसीने छूडा दिये है। भले ही मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार, मध्य प्रदेश के किसान आंदोलन के पीछे कांग्रेस का हाथ बताये परन्तु यह हकीकत है कि जब मध्य प्रदेश से लगे उप्र की भाजपा सरकार ही उप्र के किसानों को बिना आंदोलन के ही कर्ज माफी का ऐलान करे तो उसे देख कर मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों का किसान इसी प्रकार की मांग को लेकर आंदोलन करे तो इसके लिए कांग्रेस या अन्य किसी को दोष नहीं देना चाहिए। अगर सही अर्थो में अगर कोई दोषी है तो किसानों का कर्ज माफी करने वाली सरकारें। यह काम सरकार ने भी अपने आप नहीं किया अपितु चुनाव में भाजपा ने जब यह वादा किया हुआ था तो सत्तासीन होते ही अमल में ला दिया तो इसके लिए विरोधी दल कैसे दोषी होगा। हाॅं आंदोलन को तेज करने के लिए कांग्रेस लामबंदी कर सकती है। वैसे भी विपक्ष से कोई भी सरकार आंदोलन तेज न कराने की आश लगाना भी मूर्खतापूर्ण ही कदम होगा। हाॅं हिंसक बनाने में राजनेताओं का हाथ तो होगा ही। परन्तु किसान इतने मूर्ख नहीं है कि कांग्रेस ने भड़का दिया और वे सडकों पर उतर गये, तोड़फोड करने लगे। चंद लोग ऐसे कर भी सकते हैं परन्तु किसानों का विशाल जमात है उन पर ऐसे आरोप लगाना भाजपा के लिए शोभा नहीं देता। वहीं इस आंदोलन में संघ की भारतीय किसान संघ भी बड़ी प्रमुखता से आंदोलन में सम्मलित है और वह मध्य प्रदेश की 15 सालों से सत्तासीन शिवराज सरकार को किसानों ंकी उपेक्षा करने के लिए गुनाहगार मानते हुए मध्य प्रदेश में ही नहीं देश व्यापी आंदोलन की भी हुंकार भर रही है। ऐसे में भाजपा का किसानों के आंदोलन के पीछे कांग्रेस कहने से उनकी जिम्मेदारी कम नहीं होती।
छोटे और सीमांत किसानों (दो हेक्टेयर तक की भूमि अधिग्रहण) के फार्म कर्ज की छूट उत्तर प्रदेश सरकार को करीब 36,000 करोड़ रुपये का खर्च करेगी। उत्तर प्रदेश में किसानों के लिए कुल ऋण राशि सहकारी बैंकों और प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों से 8,400 करोड़ रुपये के आदेश और वाणिज्यिक बैंकों से 27,419 करोड़ रुपये के ऑर्डर है।देश में अधिकांश किसान कर्ज की वापसी करना एक प्रकार से बंद सा कर दिये है। क्योंकि उन्हें विश्वास हो गया है कि देर सबेर सरकार अन्य राज्यों की तरह उनका भी कर्ज माफ कर देगी।
सवाल यह नहीं है कि सरकार कर्जमाफी कर रही है। असल बात यह है कि सरकारी कर्ज देने व औद्योगिक कर्ज देने व माफ करने में जो भ्रष्टाचार फैला हुआ है। उससे इस कर्ज व माफी का एक भाग भ्रष्टाचार के गटर में घुस जाता है। जिससे इस कर्ज देने व माफ करने का उदेश्य ही पूरा नहीं होता। सरकारी योजनाओं से कर्ज लेने की इतनी पेचदी होती है कि आम आदमी सरकार से कर्ज लेने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता है। सरकारी योजनायें चाहे कर्ज की हो या अन्य कल्याणकारी अधिकांश में भ्रष्टाचार का ऐसा ग्रहण लगा है कि लगता है यह योजनाये क्या सरकारी अधिकारियों व दलालों की तिजोरी भरने के लिए ही बनी है।  इन योजनाओं में भ्रष्टाचार के कारण आम व्यक्ति न तो बैंकों की तरफ रूख करता है व नहीं इन योजनाओं से लाभान्वित होने का प्रयास करता है। सही ढंग से काम करने वाले आम आदमी को सरकारी तंत्र इतना परेशान कर देता है कि वह इन योजनाओं से तोबा कर देता है। इस प्रकार से सरकारी कर्ज व माफी की योजनाओं का आम जनता को कहीं दूर दूर तक लाभ नहीं मिलता। हाॅं दलों व अधिकारियों से जुडे अधिकांश लोग ही इस प्रकार की योजनाओं से लाभान्वित होते है। अपवाद के रूप में चंद लोग ही इस योजनाओं में सम्मलित होने में सफल रहते है। अब कर्ज माफी होने के बाद अधिक से अधिक लोग कर्ज लेने में जुटे हुए है। बिहार, झारखण्ड से लेकर अधिकांश राज्यों में किसानों द्वारा कर्ज लेने की होड़ सी लग गयी है। इस प्रकार से यह योजनायें लूट खसोट की भैंट चढ़ गयी है। इन योजनाओं से आम जरूरतमंद किसान या उद्यमी न उठा कर तिकडमी अधिकांश उठा रहे है। इस प्रकार से देश के विकास का अधिकांश पैसा कर्ज देने व माफी करने के खेल में बर्बाद हो रहा है। सरकारों के इस राजनैतिक खेल को हवा दे रही है सभी राजनैतिक दल। सभी दल न तो किसानों व चंदा देने वाले उद्यमियों को नाखुश नहीं करना चाहती। इसलिए यह गौरख धंधा जौरों पर चल रहा है। इससे देश को कितना नुकसान होता है इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। देश की सरकारों व राजनैतिक दलों को गंभीरता से इस प्रकार की कर्ज माफी, मुफ्त की चुनावी तौफों पर पाबंदी लगानी चाहिए। तभी देश में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा और देश में विकास का रथ आगे बढ़ेगा नहीं तो देश में इसी प्रकार की लूटखसौट में लोग लगे रहेंगे। जिससे भ्रष्टाचार के साथ देश में आर्थिक व चरित्र का घोर पतन हो जायेगा। शेष श्रीकृष्ण। हरि ओम तत्सत। श्रीकृष्णाय नमो।

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