उत्तराखंड देश

देश की सुरक्षा व उत्तराखण्ड के समग्र विकास के लिए नितांत जरूरी है गैरसैंण राजधानी बनाना

गंगटोक में हुये चीन से लगे राज्यों के सम्मेलन में उत्तराखण्ड के सीमावर्ती जनपदों से हो रहे पलायन पर गृहमंत्री व उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री भी चिंतित
देवसिंह रावत
20 मई को देश के सीमावर्ती राज्य सिक्किम की राजधानी गंगटोक में केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में सम्पन्न हुए चीन से लगे सीमावर्ती राज्यों के सम्मेलन में उत्तराखण्ड के सीमावर्ती जनपदों में पलायन होने से देश की सुरक्षा की दृष्टि से चिंता प्रकट की गयी । उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने भी सीमावर्ती जनपदों में चीनी घुसपेट रोकने के लिए वहां पर आबादी बसी रहने पर जोर देते हुए सीमावर्ती जनपदों में विकास की गति बढ़ाने की बात की हो पर हकीकत यह है कि उत्तराखण्ड की चीन से लगी 375 किमी लम्बी सीमा के तीनों सीमावर्ती जनपदों के साथ पूरे पर्वतीय जनपदों से प्रदेश सरकार की देहरादून केन्द्रीत मानसिकता के कारण प्रदेश में खतरनाक पलायन हो रहा है जिससे देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है।
इसका मूल कारण है कि उत्तराखण्ड के अब तक के मुख्यमंत्रियों  व दिल्ली में आसीन केन्द्र सरकार को उत्तराखण्ड की राजधानी गैरसैंण बनाने के बजाय बलात देहरादून थोपे जाने से चीन सीमा से लगे उत्तराखण्ड के सीमावर्ती  जनपदों सहित पर्वतीय जनपदो में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार व शासन तंत्र मृतप्रायः होने के कारण लोगों के पलायन करन से प्रदेश के अस्तित्व व देश की सुरक्षा पर उमडे गंभीर संकट मंडराने लगा है। नेताओ व नौकरशाहों ने इस समस्या का स्थाई निदान करने के बजाय  केवल भाषणों व बैठकों में ही घडियाली आंसू बहा कर अपना दायित्व इति समझ रहे है। इसी गंभीर समस्या के स्थाई निदान पर गंभीर चिंतन मनन करने के बाद ही लखनऊ केन्द्रीत उप्र शासन की मानसिकता के दंश से उबरने के लिए प्रदेश के शुभचिंतकों ने अलग उत्तराखण्ड राज्य गठन व नये राज्य की राजधानी गैरसैंण बनाने का निर्णय लिया था। जिस पर प्रदेश गठन से पहले ही सरकार की समिति ने जनता की भावना पर मुहर लगा कर गैरसैंण को ही राजधानी बनाने पर मुहर लगायी थी। परन्तु राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड की सत्ता पर काबिज सत्ता की बंदरबांट करने वाले उत्तराखण्ड विरोधी व पंचतारा सुविधा भोगी मुख्यमंत्रियों व नौकरशाहों ने मिल कर देहरादून में ही प्रदेश की राजधानी थोपने का षडयंत्र रच कर प्रदेश के चहुमुखी विकास व देश की सुरक्षा पर ग्रहण लगा दिया है। इस षडयंत्र को राजधानी चयन आयोग के गठन कर करोड़ों रूपये प्रदेश के बर्बाद किये गये। ऐसे व्यक्ति को इसका प्रमुख बनाया गया जिसको उत्तराखण्ड से एक रत्ती भर भी लगाव नहीं था। दस साल तक इस आयोग को जारी रखा गया और जनता से विश्वासघात करके देहरादून में गुपचुप तरीके से तमाम भवन बनाये गये। केवल पिछली कांग्रेस सरकार ने गैरसैंण की सुध ली। परन्तु पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गैरसैंण में विधानसभा भवन सहित तमाम आवश्यक भवन बनाने के सराहनीय कार्य करने के बाबजूद चुनावी मोह में गैरसैंण राजधानी घोषित न करने की हिमालयी भूल कर दी।
उसके बाद विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भाजपा ने गैरसैंण राजधानी बनाने का वादा किया था परन्तु गैरसैंण को राजधानी घोषित करने हेतु विधानसभा में प्रस्ताव लाने वाली भाजपा अब गैरसैंण में राजधानी बनाने की वादा खिलाफी कर रही है। जिसके कारण लोग हैरान हे।

प्रदेश के हुक्मरानों को समझ लेना चाहिए कि गैरसैंण राजधानी बनने से ही प्रदेश के चीन से लगे सीमावर्ती जनपदों सहित पर्वतीय जनपदों में शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व शासन जीवंत होगा। अभी देहरादून व उससे आसपास की तीन जनपदों तक ही विकास व पूरा तंत्र सिमट कर रह गया है। कोई कर्मचारी, नेता, नौकरशाह प्रदेश के तीन चैथाई पर्वतीय जनपदों में रहना ही नहीं चाहते। इससे पूरा तंत्र पटरी से उतर गया है लोग बेहतर शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा व बेहतरी के लिए देहरादून सहित मैदानी जनपदों में पलायन करने के लिए मजबूर हो गये है।  प्रदेश के नेताओं व नौकरशाहो को समझ लेना चाहिए कि प्रदेश की जनता ने राज्य का गठन प्रदेश के विकास व जनांकांक्षाओं को साकार करने के लिए किया न की इन बजट की बंदरबांट करने वालों के लिए। जिसे प्रदेश की जनभावनाओं को सम्मान करना नहीं आता है उसकी प्रदेश में एक पल के लिए भी जरूरत नहीं है। लोकतंत्र में जनता सर्वोच्च है। प्रदेश के हित व देश की सुरक्षा सर्वोच्च है। जो केवल गैरसैंण से ही साकार हो सकती।
वहीं दूसरी तरफ उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, 20 मई को गंगटोक, बैठक के दौरान अपने सम्बोधन में मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि उत्तराखण्ड के तीन जनपदों पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी की 375 कि0मी0 लम्बी सीमा, सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। राज्य के दूरस्थ एवं अति दुर्गम क्षेत्र होने के कारण भी तिब्बत से लगी उत्तराखण्ड की सीमा सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है।
मुख्यमंत्री श्री  रावत ने कहा कि भारत-चीन सीमा की सुरक्षा का उत्तरदायित्व आई.टी.बी.पी. पर है। सीमा क्षेत्र में आई.टी.बी.पी., सेना, आई.बी., राज्य पुलिस आदि सुरक्षा एजेंसियों द्वारा समन्वय बनाकर सुरक्षा व्यवस्था की जाती है।..मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार दूरस्थ क्षेत्रों में अवस्थापना सुविधाओं के विकास के लिये प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि चीनी घुसपैठ को रोकने हेतु आवश्यक है कि इन दूरदराज के क्षेत्रों में आबादी बसी रहे। राज्य सरकार द्वारा पलायन रोकने के लिये इन दूरदराज के क्षेत्रों में सड़कों एवं दूरसंचार व्यवस्थाओं का विकास किया जा रहा है।
ऐसे क्षेत्रों में रोजगार सृजन हेतु योजनाएं बनायी जा रही हैं। स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने हेतु अस्पतालों में चिकित्सकों की तैनाती और विद्यालयों में शिक्षकों की तैनाती सरकार की प्राथमिकता है। सीमान्त क्षेत्रों में भेड-बकरी पालन और ऊन विपणन को प्रोत्साहित करने के लिये राज्य सरकार द्वारा 01 करोड़ रूपये के कोष की व्यवस्था की गई है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 1962 से पूर्व भारत तिब्बत के मध्य व्यापार खुले रूप में चल रहा था। परन्तु 1962 में भारत चीन युद्ध के बाद यह व्यापार बन्द कर दिया गया। वर्ष 1991 में चीनी प्रधानमंत्री के भारत आगमन पर एक मसौदे के तहत 1992 से व्यापार शुरू किया गया। वर्तमान में उक्त व्यापार की व्यवस्था वाणिज्य मंत्रालय भारत सरकार के निर्देशानुसार जिला प्रशासन पिथौरागढ़ द्वारा की जाती है। पिछले वर्ष 6 करोड़ रूपये का व्यापार दर्ज किया गया। गुंजी में ट्रेड ऑफिसर द्वारा भारतीय व्यापारियों का रजिस्ट्रेशन कर उन्हें ट्रेड पास जारी किये जाते हैं।
इस क्षेत्र में राज्य सरकार द्वारा व्यापारियों की समस्याओं को सुनकर उनके समाधान हेतु रास्ता निकाला जा रहा है। उन्होंने भारतीय व्यापारियों द्वारा जनपद पिथौरागढ़ के नाभिढांग एवं कालापानी क्षेत्र में व्यापारी भवन का निर्माण तथा स्थाई ट्रेड अधिकारी की नियुक्ति सहित क्वारनटाईन कार्यालय खोले जाने की मांग का उल्लेख भी किया।
भारत सरकार की ओर से चमोली के सिविल अधिकारियों क दल द्वारा लगभग प्रत्येक वर्ष में 04 बार (जून से अक्टूबर माह) बाड़ाहोती में भ्रमण कर उपस्थिति दर्ज करायी जाती है। मुख्यमंत्री  त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तिब्बत सीमा क्षेत्र से बाड़ाहोती में पिछले वर्षों में चीनी गतिविधियां बढ़ने पर चिंता व्यक्त की।
मुख्यमंत्री  त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि चमोली में घस्तौली-रत्ताकोना(लगभग 51 किमी), नीति-ग्याढुंग(लगभग 33 किमी), मलारी-अपर रिमखिम(लगभग 40 किमी) एवं पिथौरागढ़ में मुनस्यारी-बुगड्यार-मिल्लम मोटर मार्ग(लगभग 62.31 किमी), घटियाबगड़-लिपुलेख मोटरमार्ग(लगभग 75 किमी), गुंजी-जौलीग्कांग मोटर मार्ग(लगभग 32 किमी) बी.आर.ओ. द्वारा बनाया जा रहा है। इसके साथ ही जनपद उत्तरकाशी में भैरोंघाटी-नेलांग मार्ग(लगभग 23.6 किमी), नागा-सोनम मार्ग(लगभग 11.65 किमी), नागा-नीलापानी(लगभग 11 किमी) एवं नेलांग-नागा रोड़(लगभग 8.10 किमी) बनाया जाना प्रस्तावित है।
सिक्किम में चीन की सीमा से सटे राज्यों के मुख्यमंत्रियों/गृहमंत्रियों की बैठक की अध्यक्षता केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा की गयी। बैठक में सीमा पर अवस्थापना सुविधाओं, राज्य और आई.टी.बी.पी. के मध्य समन्वय, बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम आदि मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गयी।.
प्रदेश व देश की सरकारों को समझ लेना चाहिए कि इन बैठकों से भले ही देश की वर्तमान स्थिति से देश रूबरू होगा परन्तु मात्र चिंता प्रकट करने या कागची योजनायें बनाने से न तो देश का विकास होगा व नहीं देश की सुरक्षा। देश की सुरक्षा तब तक नहीं होगी जब तक सरकारें गैरसैंण जैसे चहुमुखी विकास व देश की सुरक्षा के मूल मंत्र को साकार नहीं करेंगे। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

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