उत्तराखंड

डा हरक सिंह रावत की हुंकार में छुपे है उत्तराखण्ड में भावी सुनामी का संकेत!

मुख्यमंत्री की कुर्सी में नहीं नेताओं की नियत में है खोट हरक सिंह रावत

असफल मुख्यमंत्रियों की ढाल बनने हुए कबीना मंत्री हरक सिंह रावत ने उछाला केजरीवाल वाला डायलोग ‘कुर्सी मे ही खोट ।  नौकरशाही को सुधारना सरकार का फर्ज होता।

देहरादून(प्याउ)। उत्तराखण्ड के तीनों प्रमुख दलों भाजपा, बसपा व कांग्रेस के प्रमुख नेता रहे व राज्य गठन जनांदोलन के प्रमुख संगठन उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष रहे प्रदेश के एकमात्र नेताा व उत्तराखण्ड सरकार के कबीना मंत्री डा हरक सिंह रावत ने प्रदेश के अब तक की तमाम सरकारों कटघरे में खड़ा करते हुए अपने मिशन को आगे बढ़ाया। डा रावत ने 15 मई को उत्तराखण्ड मेडिकल एंड पब्लिक हेल्थ मिनिस्टीयरियल एसोसिएशन के द्विवार्षिक अधिवेशन में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए जो बातें कही, उसकी गूंज प्रदेश में ही नहीं दिल्ली में बेठे भाजपा व कांग्रेस के मठाधीशों को भी सुनाई दी। डा हरक सिंह रावत ने दो टूक शब्दों में कहा कि
राज्य में मुख्यमंत्री की कुर्सी में ही कुछ गड़बड़ है। इस कुर्सी पर बैठकर ही व्यक्ति की मनस्थिति बदल जाती है। नौकरशाह सर-सर कहकर व्यक्ति का मन-मस्तिष्क ही खराब कर देते हैं। पूर्व में यही हुआ भी है। भाजपा सरकार में पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक में प्रदेश के विकास की भरपूर काबिलियत थी, पर हुआ क्या? यह सभी ने देखा है। कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार में मेरे सीएम हरीश रावत से लाख मतभेद रहे, लेकिन इस बात में कोई शंका नहीं कि वह भी जमीन से निकले नेता थे। राज्य के विकास की काबिलियत उनमें भी थी, पर परिणाम जगजाहिर हैं। जो लोग पहले हाशिये पर थे, वह अब भी हाशिये पर ही हैं। राज्य की बड़ी आबादी शिक्षित, जानकार व प्रशिक्षित है, बावजूद इसके अपेक्षित विकास नहीं हुआ है।
मैं इस बात को पूर्व सीएम निशंक को भी समझाता रहा, खंडूड़ी जी व बहुगुणा जी को भी समझाई। हरदा से भी कही और अब सीएम त्रिवेन्द्र रावत जी से भी कहता हूं।
उप्र में जो शासनादेश एक दिन में होता था, यहां पर वह एक माह बीत जाने के बाद भी नहीं होता है। वह भी तक जबकि विभागों में अफसरों की फौज है।
जनसमर्थन जुटाना आसान है पर उस जनसमर्थन का ग्राफ बनाये रखना मुश्किल होता है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के पास बहाना था कि विकास कायरे के लिए केंद्र से बजट नहीं मिल रहा है लेकिन हमारी सरकार के पास कोई बहाना नहीं है। जनता के सामने अब बहानेबाजी नहीं चलेगी।
इस राज्य का भला वही व्यक्ति कर सकता है जो छोटे से छोटे विरोध की परवाह किये बिना अपने कार्य को आगे बढ़ाता रहे।

उपरोक्त बातें डा हरक सिंह रावत ने कह कर प्रदेश की राजनीति में भावी तूफान का संकेत है। हरक सिंह रावत ही प्रदेश में एक मात्र ऐसा नेता है जो किसी दल, नेता या विधानसभा क्षेत्र की लक्ष्मण रेखाओं में नहीं बंधता है। तमाम विवादों में घिरे रहना उनकी आदत में सुमार हो गया है। उन पर उनके विरोधी चरित्र व भ्रष्टाचार का निरंतर आरोप लगाते रहे। कई मामलों में वे घिरे भी परन्तु वे हरबार बचते रहे। प्रदेश के हर बडे नेता हरीश रावत, सतपाल महाराज, खण्डूडी, निशंक व बहुगुणा से उनके रिश्ते में समय समय पर छत्तीस का आंकडा रहा परन्तु वे सबके बाबजूद अपना राजनैतिक अस्तित्व बचाने में सफल रहे।
ऐसा नहीं है कि हरक सिंह रावत प्रदेश में कोई नौशिखिये नेता है। वे प्रदेश मुख्यमंत्री के दावेदार राज्य गठन से पहले से है। 1996 में प्रधानमंत्री देवगोड़ा के प्रधानमंत्री काल में हुए विधानसभा चुनाव में पौड़ी विधानसभा से अगर सतपाल महाराज ने उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के प्रत्याशी के रूप में हरक सिंह को लड़ने के मार्ग में अवरोध खड़ा नहीं करते तो राज्य की राजनीति में नया मोड़ आता। पौड़ी विधानसभा सीट को जद के खाते में डालवा कर हरक सिंह रावत जो उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष के रूप से चुनाव में उतरने जा रहे थे। मोर्चा के ‘ सीटों पर अन्य प्रत्याशी मसूरी से वर्तमान भाजपा नेता प्रकाश सुमन ध्यानी, जनपद उत्तरकाशी से बफिर्यालाल जुआंठा व रानीखेत से दिनेश बिष्ट सहित अनैक प्रत्याशी चुनावी दंगल में उतरे थे। महाराज ने तिवारी कांग्रेस की राह में मोर्चा को अवरोधक समझते हुए हरक सिंह रावत को जद से लडने के लिए मजबूर कर दिया। जिससे मोर्चा बिखर गया। जद को एक सीट भी नहीं मिली। देवगोड़ा ने 1996 में राज्य गठन करने की मंशा को चुनावी परिणाम व अपने सहयोगी के दवाब में टाल दिया। उस समय अगर पौड़ी सीट पर हरक सिंह रावत को जीत मिलती तो हरक सिंह रावत को प्रदेश की कमान सौंपी जा सकती थी।
उसके बाद हरक सिंह के मन में रह रह कर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की प्रबल इच्छा हुए पर विषम राजनैतिक परिस्थितियों को देखते हुए वे दिल में जमीदोज करते रहे। उनसे कनिष्ठ खण्डूडी, निशंक, बहुगुणा व अब त्रिवेन्द्र को मुख्यमंत्री बनते देख कर वे परेशान रहते हैं। हरक सिंह रावत को कमान कोई भी राजनैतिक दल (बसपा के अलावा ) कमान सौंपेगा नहीं। प्रदेश में कैसे मुख्यमंत्री बने यह हरक सिंह रावत के लिए भी एक पहेली बन गयी है।
कोई नेता उन पर भरोसा नहीं कर सकता परन्तु उनके संघर्षशील तेवर से वे विरोधियों के चक्रव्यूह को तौड कर अपना राजनैतिक अस्तित्व बचाने में सफल रहते है।
प्रदेश में पूर्व हरीश रावत सरकार को अपदस्थ होने के पीछे हरक सिंह का ही हाथ रहा। अगर हरीश रावत हरक सिंह रावत से दूरी नहीं बनाते तो विजय बहुगुणा चाह करके भी विद्रोह नहीं कर सकते। न हीं कोई सीडी बना सकता। अब हरक सिंह रावत के तूफान को त्रिवेन्द्र रावत कैसे सामना करते यह तो आने वाला समय बतायेगा। परन्तु राजनीति के मर्मज्ञों को हरक सिंह की 15 मई की हुंकार प्रदेश की राजनीति में आने वाली सुनामी की गूंज सुनाई दे रही है। परन्तु यह निश्चित है कि भाजपा में हरक सिंह रावत को विद्रोह करना अब उतना आसान नहीं जितना कांग्रेस की सरकार के खिलाफ था। पर हरक सिंह भले ही राजनैतिक जीवन भाजपा से प्रारम्भ किया हो और वे कल्याणसिंह के मंत्रीमण्डल में राज्यमंत्री भी रहे परन्तु अब वह भाजपा नहीं रही जो कल्याण के समय थी। आज की भाजपा मोदी व शाह की है जो विरोधियों को सर उठाने की इजाजत नहीं देती है।

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